जैसे सब लोगों को पता है की युगों का निर्धारित स्थान है
1. सतयुग
2. त्रेतायुग
3. द्वापरयुग
4. कलयुग
लेकिन संस्कृत में द्वापर का मतलब दूसरा और त्रेता का तीसरा होता है तो त्रेतायुग द्वापर से पहले कैसे आ सकता है |इसके पीछे भी कहानी है | सतयुग में अहिल्या नाम की सुन्दर युवती ने गौतम ऋषि से शादी की | अहिल्या देखने में बहुत सुन्दर थी और इंद्र देव का उस पर दिल आ गया | हर सुबह की तरह गौतम नहाने के लिए बाहर गए और उस समय इंद्र कुटिया पर पहुंचे | इंद्र ने गौतम ऋषि का रूप लिया और अहिल्या के पास गए | अहिल्या इंद्र को पहचान नहीं पाई |
इंद्र ने अहिल्या के साथ शारीरिक सम्बन्ध स्थापित किये और जाते समय अपने असली रूप में आ गए , जब गौतम ऋषि ने उन्हें देख लिए | वह अन्दर जा कर अहिल्या पर चिल्लाने लगे | उन्होनें अहिल्या को श्राप दिया की वह पत्थर में बदल जाएँ |
पत्थर में बदलने के बाद अहिल्या ने अपनी व्यथा सुनाई और गौतम से उन्हें छुटकारा दिलाने को कहा | गौतम ऋषि को तरस आ गया और उन्होनें आश्वासन दिया की त्रेतायुग के दौरान विष्णु के अवतार श्री राम इस शिला को अपने पैर से छुएंगे और अहिल्या फिर से परिवर्तित हो जाएँगी | अहिल्या ने कहा अभी सतयुग है जो 1000 साल बाद समाप्त होगा उसके बाद द्वापर युग आएगा जो लाख सालों बड़ा है और उसके बाद त्रेतायुग शुरू होगा | इतने समय तक वह कैसे पत्थर की बनी रह सकती हैं |
उनकी गुहार सुन गौतम ऋषि ने युगों का स्थान बदल दिया | उन्हें समय चक्र को ऐसे घुमाया की त्रेतायुग द्वापर युग से पहले आगया |