केरल के एदक्कड़ वार्ड जिले में स्थित है मलानद मंदिर जहाँ आज तक दुर्योधन की पूजा करते हैं |

दुर्योधन ने दक्षिण के जंगल की तरफ यात्रा शुरू की और इस स्थान पर पहुंचा | वह इतना थका हुआ था की उसने पास के घर की मालकिन से पानी माँगा | उसने उस वक़्त ये ध्यान नहीं दिया की वह घर शुद्र जाती के सरदार का है | उस औरत ने जल्द ही दुर्योधन को थकावट मिटाने के लिए जड़ी बूटी मिली हुई शराब दी पीने के लिए | जब दुर्योधन उनको शुक्रिया कहने लगा तो उसकी नज़र उनके मंगलसूत्र पर पड़ी जिससे उसके कम दबके का होने का पता चल रहा था | वैसे भी किसी पिछड़ी जाती के व्यक्ति का किसी क्षत्रिय को खाने या पीने की वस्तु देना वर्जित था | उस औरत को लगा की उसे इस गलती की सजा मिलेगी लेकिन दुर्योधन ने कहा , “ माँ भूख और प्यास की कोई जाती नहीं होती”|  

दुर्योधन ने फिर यहाँ के जाती के लोगों को १०१ योजन धरती दी और कहा की वह उन्हें बिना मूर्ति का एक मंदिर दे रहा है | लेकिन इस मंदिर का पंडित एक कुराव शुद्र होना चाहिए |आज तक भी इस मंदिर का पंडित उस बूड़ी औरत के वंशज हैं | लेकिन यहाँ पर पूजे जाने वाले देव हैं दुर्योधन , उसकी पत्नी भानुमती , माँ गांधारी और दोस्त कर्ण |


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