*एकाक्षर मंत्र : क्रीं – इसे हम चिंतामणि काली का विशेष मंत्र भी कहते हैं |
*द्विअक्षर मंत्र : क्रीं क्रीं - तांत्रिक साधनाएं और मंत्र सिद्धि हेतु।
*त्रिअक्षरी मंत्र : क्रीं क्रीं क्रीं - तांत्रिक साधना के पहले और बाद में जपा जाता है।
*ज्ञान प्रदाता मन्त्र : ह्रीं - दक्षिण काली का मंत्र ज्ञान हेतु।
*चेटक मन्त्र : क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा - दुखों का निवारण करके घन-धान्य की वृद्धि और पारिवारिक क्लेश से बचने के लिए |
*छह अक्षरों का मंत्र : क्रीं क्रीं फट स्वाहा - सम्मोहन आदि तांत्रिक सिद्धियों के लिए।
*आठ अक्षरों का मंत्र : क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा - उपासना के अंत में इस का जप करने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
*नवार्ण मंत्र : ‘ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै:’ - इसका प्रत्येक अक्षर एक ग्रह को नियंत्रित करता है। इस मंत्र का जप नवरात्रों में विशेष फलदायी होता है।
*ग्यारह अक्षरों का यह मन्त्र : ऐं नमः क्रीं क्रीं कालिकायै स्वाहा- ह मन्त्र अत्यंत दुर्लभ और सर्वसिंद्धियों को प्रदान करने वाला है।
ऊपर लिखे सभी पांच ,छह ,आठ और ग्यारह अक्षर के इन मन्त्रों को दो लाख की संख्या में जपना उत्तम रहता है | ऐसा करने पर ही ये मन्त्र सिद्ध होता है |