वास्तु शास्त्र को गृह निर्माण , महल निर्माण, पूल, तालाब आदि के निर्माण और शहर के निर्माण की विद्या माना गया है। प्राचीन भारत के प्रमुख वास्तुशास्त्री महर्षि विश्वकर्मा और मयदानव थे ।
 
 
भारतीय वास्तुशस्त्र में गृह निर्माण से संबंधित कई तरह के रहस्यों को उजागर किया गया है। मसलन भूमि कैसी हो, घर का बाहरी और भीतरी वास्तु कैसा हो। इसके साथ  घर के निर्माण के वक्त आने वाली बाधा के संकेत क्या  हैं। भारतीय वास्तुशास्त्र एक चमत्कारिक विद्या है। इंद्रप्रस्थ और द्वारिका नगरी के निर्माण से यह सिद्ध होता है। बगैबिना  किसी मशीनरी के वास्तु के माध्यम से जल को पहाड़ी पर चढ़ाया जाता था। इसके अलावा महल में सिर्फ एक जगह ताली बजाने पर उस ताली की आवाज महल के अंतिम कक्ष और बाहरी दरवाजे तक भी पहुंच सकती थी।कहते हैं कि किसी  भवन-निर्माण के समय यदि कारीगर पागल हो जाए  तो  गृहपति और घर का विनाश हो जाता है इसलिए उस घर में रहने का विचार त्याग ही देना चाहिए। इसके अलावा वास्तु के अनुसार ही धरती में जल और ऊर्जा की स्थिति का भी आंकलन किया जा सकता है। 

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