समुद्र मंथन से नौवे क्रम में निकली वारुणी देवी, भगवान की अनुमति से इस को दैत्यों ने ले लिया। वारुणी का अर्थ है मदिरा यानी नशा। यह एक बुराई है। नशा कैसा भी हो शरीर के लिए बुरा ही होता है। परमात्मा को पाना है तो सबसे पहले नशा छोड़ना होगा तभी परमात्मा से साक्षात्कार संभव है।