सत्यवती एक निषाद कन्या थी। उसने शांतनु से विवाह के पूर्व ऋषि पराशर के साथ भी संबंध बनाए थे जिसके चलते वेद व्यास का जन्म हुआ था। सत्यवती ने भीष्म से बार-बार अनुरोध किया कि वे अपने पिता के वंश की रक्षा करने के लिए विवाह करके राज-पाट संभालें, लेकिन भीष्म टस से मस नहीं हुए। अंत में सत्यवती ने भीष्म की अनुमति लेकर वेद व्यास के द्वारा अम्बिका और अम्बालिका के गर्भ से यथाक्रम धृतराष्ट्र और पाण्डु नाम के पुत्रों को उत्पन्न कराया।
दरअसल, सत्यवती और शांतनु के पुत्र विचित्रवीर्य की 2 पत्नियां अम्बिका और अम्बालिका थीं। दोनों को कोई पुत्र नहीं हो रहा था तो सत्यवती के पुत्र वेदव्यास माता की आज्ञा मानकर बोले, 'माता! आप उन दोनों रानियों से कह दीजिए कि वे मेरे सामने से निर्वस्त्र होकर गुजरें जिससे कि उनको गर्भ धारण होगा।'सबसे पहले बड़ी रानी अम्बिका और फिर छोटी रानी अम्बालिका गई, पर अम्बिका ने उनके तेज से डरकर अपने नेत्र बंद कर लिए जबकि अम्बालिका वेदव्यास को देखकर भय से पीली पड़ गई। वेदव्यास लौटकर माता से बोले, 'माता अम्बिका को बड़ा तेजस्वी पुत्र होगा किंतु नेत्र बंद करने के दोष के कारण वह अंधा होगा जबकि अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु रोग से ग्रसित पुत्र पैदा होगा।'यह जानकर के माता सत्यवती ने बड़ी रानी अम्बिका को पुनः वेदव्यास के पास जाने का आदेश दिया। इस बार बड़ी रानी ने स्वयं न जाकर अपनी दासी को वेदव्यास के पास भेज दिया। दासी बिना किसी संकोच के वेदव्यास के सामने से गुजरी । इस बार वेदव्यास ने माता सत्यवती के पास आकर कहा, 'माते! इस दासी के गर्भ से वेद-वेदांत में पारंगत अत्यंत नीतिवान पुत्र उत्पन्न होगा।' इतना कहकर वेदव्यास तपस्या करने चले गए।
अम्बिका से धृतराष्ट्र, अम्बालिका से पाण्डु और दासी से विदुर का जन्म हुआ। तीनों ही ऋषि वेदव्यास की संतान थी। धृतराष्ट्र से किसी प्रकार का पुत्र न मिलने पर गांधारी के साथ भी वेदव्यास ने वही किया जो अम्बिका और अम्बालिका के साथ किया था। वेदव्यास की कृपा से ही 99 पुत्र और 1 पुत्री का जन्म हुआ। पांडु तो अपनी पत्नी कुंति और माद्री के साथ जंगल चले गए थे जहां उनकी मृत्यु हो गई थी। कुंति और माद्री ने क्रमश: सूर्य, पवन, इंद्र, और अश्विन कुमारों के साथ संबंध बनाकर पांचों पांडवों को जन्म दिया था।