हिमाचल और उत्तराखंड में बहने वाली निर्मल टौंस नदी की। इस नदी पर 8 हजार करोड़ रुपए की लागत से एक डैम बनाया जा रहा है। जिसे किशाऊ बांध विद्युत परियोजना कहते हैं। इस परियोजना से 660 मैगावॉट बिजली का उत्पादन होना है। डैम के निर्माण से यह भी सपना देखा गया है कि इससे 97 हजार 76 हैक्टेयर भूमि सिंचित होगी। लेकिन सच्चाई यह है कि इस नदी के एक भी बूंद पानी से न तो सिंचाई हो पाई और न ही पेयजल उपलब्ध हो पाया। विद्युत उत्पादन का तो मालूम नहीं। हालांकि नदी की स्वाभाविक गति रुकने लगी है जिसके चलते कई जलचर जंतु की मौत हो चुकी है।
ऐसी धारणा है कि यह एक शापित नदी है। इसका पानी हिमाचल में इस्तेमाल आज तक नहीं हुआ है। उत्तराखंड की सीमा में यह नदी रूपन व शूपन खड्डों से मिल कर बनती है। त्यूणी नामक स्थान पर यह नदी पब्बर में मिल जाती है। लोकमान्यता अनुसार इस नदी को ‘तमसा’ नदी भी कहा जाता है।
कहते हैं कि यमुना नदी ने टौंस को शाप दिया था कि उसका पानी कहीं पर भी इस्तेमाल नहीं होगा। टौंस नदी पहले डाकपत्थर में जलाशा पीर पहुंची थी, इसी से नाराज यमुना ने उसे शाप दिया था। सदियों से इस नदी को लेकर माना जाता है कि इसका पानी जन उपयोग के काम नहीं आ सकता। हालांकि ये केवल एक अफवाह भी हो सकती है क्योंकि शिमला व सिरमौर जिलों के जिन हिस्सों को यह उत्तराखंड से बांटती है, वहां की भौगोलिक परिस्थितियां भी जटिल है।