उत्तरप्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड के बांदा जनपद के एक गांव में ऐसा भी पहाड़ है जिसे देवी 'विंध्यवासिनी' द्वारा शापित पहाड़ माना जाता है। लोक मान्यता है कि देवीजी का भार सहन करने में असमर्थता जताने पर देवी ने उसे 'कोढ़ी' होने का शाप दिया गया था। तभी से इस पहाड़ का पत्थर सफेद है और देवी मां के भक्त नवमी तिथि को लाखों की तादाद में हाजिर होकर मां का आशीर्वाद लेते हैं। लोकमान्यता है कि पहाड़ के उद्धार के लिए मिर्जापुर के विंध्याचल पहाड़ से मां विंध्यवासिनी नवरात्र की नवमी तिथि को यहां आती हैं और भक्तों को दर्शन देती हैं।
बुंदेलखंड के बांदा जनपद में केन नदी के तट पर बसे शेरपुर स्योढ़ा गांव के खत्री पहाड़ की चोटी पर मां विंध्यवासिनी का मंदिर है। आम दिनों के देखे यहां नवरात्र में बड़ा मेला लगता है।
मां विंध्यवासिनी के बारे में यहां एक लोक मान्यता प्रचलित है कि मिर्जापुर में विराजमान होने से पूर्व देवी मां ने खत्री पहाड़ को चुना था। लेकिन इस पहाड़ ने देवी मां का भार सहन करने में असमर्थता जाहिर की थी। जिससे नाराज होकर मां पहाड़ को 'कोढ़ी' होने का शाप देकर मिर्जापुर चली गई। अपने उद्धार के लिए पहाड़ के प्रार्थना करने पर देवी मां ने नवरात्र की नवमी तिथि को पहाड़ पर आने का वचन दिया था। तभी से यहां अष्टमी की मध्यरात्रि से भारी भक्तों का मेला लगने लगा है।
लोकमान्यता अनुसार अष्टमी की मध्यरात्रि के बाद देवी की मूर्ति में अनायास चमक आ जाती है जिससे भक्त देवी के आ जाने की उम्मीद लगाने लगते हैं।