हिंदू धर्म में पीपल का बहुत महत्व है। पीपल के वृक्ष को संस्कृत में प्लक्ष भी कहा गया है। वैदिक काल में इसे अश्वार्थ इसलिए कहते थे, क्योंकि इसकी छाया में घोड़ों को बांधा जाता था। औषधीय गुणों के कारण पीपल के वृक्ष को 'कल्पवृक्ष' की संज्ञा दी गई है। पीपल के वृक्ष में जड़ से लेकर पत्तियों तक तैंतीस कोटि देवताओं का वास होता है और इसलिए पीपल का वृक्ष प्राय: पूजनीय माना गया है। उक्त वृक्ष में जल अर्पण करने से रोग और शोक मिट जाते हैं।

पीपल के प्रत्येक तत्व जैसे छाल, पत्ते, फल, बीज, दूध, जटा एवं कोपल तथा लाख सभी प्रकार की बिमारियों  के निदान में काम आते हैं। हिंदू धार्मिक ग्रंथों में पीपल को अमृत समान माना गया है। सर्वाधिक ऑक्सीजन छोड़ने के कारण इसे प्राणवायु का भंडार कहा जाता है। सबसे अधिक ऑक्सीजन का सृजन और विषैली गैसों को आत्मसात करने की इसमें अकूत क्षमता है।

गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं, 'हे पार्थ वृक्षों में मैं पीपल हूं।'
।।मूलतः ब्रह्म रूपाय मध्यतो विष्णु रुपिणः। अग्रतः शिव रुपाय अश्वत्त्थाय नमो नमः।।
अर्थात इसके मूल में ब्रह्म, मध्य में विष्णु तथा शिव का वास होता है। इसी कारण 'अश्वत्त्थ'नामधारी वृक्ष को नमन किया जाता है।-पुराण


अश्वत्थोपनयन व्रत के संदर्भ में महर्षि शौनक कहते हैं कि मंगल मुहूर्त में पीपल वृक्ष की नित्य तीन बार परिक्रमा करने और जल चढ़ाने पर दरिद्रता, दु:ख और दुर्भाग्य का विनाश होता है। पीपल के दर्शन-पूजन से दीर्घायु तथा समृद्धि प्राप्त होती है। 

पीपल पूजा : शनिवार की अमावस्या को पीपल वृक्ष की पूजा और सात परिक्रमा करके काले तिल से युक्त सरसो के तेल के दीपक को जलाकर छायादान करने से शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलती है। 

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