महाभारत के अनुसार आस्तिक ने ही राजा जनमेजय के सर्प यज्ञ को रुकवाया था। आस्तिक के पिता जरत्कारु ऋषि थे और उनकी माता का नाम भी जरत्कारु था। आस्तिक की माता नागराज वासुकि की बहन थी। जब राजा जनमेजय को पता चला कि उनके पिता की मृत्यु तक्षक नाग द्वारा काटने पर हुई थी तो उन्होंने सर्प यज्ञ करने का निर्णय लिया। उस यज्ञ में दूर-दूर से भयानक सर्प आकर गिरने लगे। जब यह बात नागराज वासुकि को पता चली तो उन्होंने आस्तिक से इस यज्ञ को रोकने के लिए निवेदन किया।

आस्तिक यज्ञ स्थल पर जाकर ज्ञान की बातें करने लगे, जिसे सुनकर राजा जनमेजय बहुत प्रसन्न हुए। जनमेजय ने आस्तिक को वरदान मांगने के लिए कहा, तब आस्तिक ने राजा से सर्प यज्ञ बंद करने के लिए निवेदन किया। राजा जनमेजय ने पहले तो ऐसा करने से इनकार कर दिया, लेकिन बाद में वहां उपस्थित ब्राह्मणों के कहने पर उन्होंने सर्प यज्ञ रोक दिया और आस्तिक की प्रशंसा की।

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