यह संस्कार गर्भ के चौथे, छठवें और आठवें महीने में किया जाता है। इस समय गर्भ में पल रहा बच्चा सीखने के काबिल हो जाता है। उसमें अच्छे गुण, स्वभाव और कर्म का ज्ञान आए, इसके लिए मां उसी प्रकार आचार-विचार, रहन-सहन और व्यवहार करती है।
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