चंद्रगुप्त मौर्य के काल में फिर से भारतवर्ष एक सूत्र में बंधा और इस काल में भारत ने हर क्षेत्र में प्रगति की। सम्राट अशोक (ईसा पूर्व 269-232) प्राचीन भारत के मौर्य सम्राट बिंदुसार का पुत्र और चंद्रगुप्त का पौत्र था जिनका जन्म लगभग 304 ई. पूर्व में माना जाता है। भाइयों के साथ गृहयुद्ध के बाद ही अशोक को राजगद्दी मिली।
उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से 5 किलोमीटर दूर कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार तथा विजित देश की जनता के कष्ट से अशोक की अंतरात्मा को तीव्र आघात पहुंचा। 260 ईपू में अशोक ने कलिंगवासियों पर आक्रमण किया तथा उन्हें पूरी तरह कुचलकर रख दिया। युद्ध की विनाशलीला ने सम्राट को शोकाकुल बना दिया और वे प्रायश्चित करने के प्रयत्न में बौद्ध धर्म अपनाकर एक भिक्षु बन गए। अशोक के भिक्षु बन जाने के बाद भारत के पतन की शुरुआत हुई और भारत फिर से धीरे-धीरे कई जनपदों और राज्यों में बंट गया।
मौर्य वंश के पतन के बाद दीर्घकाल तक भारत में राजनीतिक एकता स्थापित नहीं हो पाई । कुषाण एवं सातवाहनों ने राजनीतिक एकता को लाने का प्रयास किया। मौर्योत्तर काल के उपरांत तीसरी शताब्दी ई. में तीन राजवंशों का उदय हुआ जिसमें मध्यभारत में नाग शक्ति, दक्षिण में बाकाटक तथा पूर्व में गुप्त वंश प्रमुख हैं। इन सभी में गुप्तकाल को भारत का स्वर्णकाल माना जाता है। गुप्तों ने अच्छे से शासन किया और भारत को बाहरी आक्रमण से बचाए रखा।
हर्षवर्धन (606 ई.-647 ई.) : इसके बाद अंत में एक महान राजा हुए हर्षवर्धन जिसने भारत के एक बहुत बड़े भू-भाग कर राज किया। उसी दौर में अरब में ह. मुहम्मद ने एक नए धर्म की स्थापना कर दी थी। हर्षवर्धन ने भारत को विदेशी आक्रमणकारियों से बचाए रखा। हर्ष ने लगभग 41 वर्ष शासन किया।