कलयुग में धर्म, सत्यवादिता, स्वच्छता, सहिष्णुता, दया, जीवन की अवधि, शारीरिक शक्ति और स्मृति सभी दिन-ब-दिन घटती जाएगी। लोग बस स्नान करके समझेंगे कि वे अंतरात्मा से भी साफ-सुथरे हो गए हैं।
धरती पर रहने वाला कोई व्यक्ति किसी भी तरह से वैदिक और धार्मिक कार्यों में रुचि नहीं लेगा, वह एक स्वच्छंद जीवन व्यतीत करेगा। कलयुग में लोग सिर्फ एक धागा पहनकर अपने को ब्राह्मण होने का दावा करेंगे।
'अपनी तुच्छ बुद्धि को ही शाश्वत समझकर कुछ मूर्ख ईश्वर की तथा धर्मग्रंथों की प्रामाणिकता मांगने का दुस्साहस करेंगे। इसका अर्थ है कि उनके पाप जोर मार रहे हैं।'
'ज्यों-ज्यों घोर कलयुग आता जाएगा त्यों-त्यों सौराष्ट्र, अवन्ती, अधीर, शूर, अर्बुद और मालव देश के ब्राह्मणगण संस्कारशून्य हो जाएंगे तथा राजा लोग भी शूद्रतुल्य हो जाएंगे।'
यहां 'शूद्र' का मतलब उस आचरण से है, जो वेद विरुद्ध है। मांस, मदिरा और संभोगादि प्रवृत्ति में ही सदा रत रहने वाले राक्षसधर्मी को 'शूद्र' कहा गया है। जो ब्रह्म को मानने वाले हैं वही ब्राह्मण हैं। आज की जनता ब्रह्म को छोड़कर सभी को पूजने लगी है।