मैत्रेयी मित्र ऋषि की कन्या और महर्षि याज्ञवल्क्य की दूसरी पत्नी थी। महर्षि याज्ञवल्क्य की पहली पत्नी भारद्वाज ऋषि की पुत्री कात्यायनी थीं। एक दिन याज्ञवल्क्य ने गृहस्थ आश्रम छोड़कर वानप्रस्थ जाने का फैसला किया। ऐसे में उन्होंने दोनों पत्नियों के सामने अपनी संपत्ति को बराबर हिस्से में बांटने का प्रस्ताव रखा।
कात्यायनी ने पति का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, लेकिन बेहद शांत स्वभाव की मैत्रेयी की अध्ययन, चिंतन और शास्त्रार्थ में रुचि थी। वे जानती थीं कि धन-संपत्ति से कभी आत्मज्ञान नहीं मिलता। इसलिए उन्होंने पति की संपत्ति लेने से इंकार करते हुए कहा कि मैं भी वन में आपके साथ जाऊंगी और ज्ञान और अमरत्व की खोज करूंगी। इस तरह कात्यायनी को ऋषि की सारी संपत्ति मिल गई और मैत्रेयी अपने पति के साथ जंगल में चली गई। 'वृहदारण्य उपनिषद्' में मैत्रेयी का अपने पति के साथ बड़े रोचक संवाद का उल्लेख मिलता है।
आज हमारे लिए स्त्री शिक्षा बहुत बड़ा मुद्दा है, लेकिन हजारों साल पहले मैत्रेयी ने अपने ज्ञान से न केवल स्त्री जाति का मान बढ़ाया, बल्कि उन्होंने यह भी सच साबित कर दिखाया कि पत्नी धर्म का निर्वाह करते हुए भी स्त्री ज्ञान अर्जित कर सकती है।
विश्ववारा लोप, मुद्रा, घोषा, इन्द्राणी, देवयानी आदि प्रमुख महिलाओं ने भी वेदों की रचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ये सभी ब्रह्मज्ञानी थीं।