द्रौपदी का जन्म महाराज द्रुपद के यहां होने से उन्हें द्रौपदी कहा जाता था। द्रौपदी को यज्ञसेनी इसलिए कहा जाता है कि मान्यता अनुसार उनका जन्म यज्ञकुण्ड से हुआ था। उन्हें पांचाली भी कहा जाता था, क्योंकि उनके पिता पांचाल देश के नरेश थे। उनका एक नाम कृष्णा भी था। द्रौपदी के भाई थे धृष्टद्युम्न जिन्होंने महाभारत के युद्ध में गुरु द्रोण का सिर काट दिया था।
द्रौपदी के स्वयंवर में महाराज द्रुपद ने शर्त रखी कि कि निरंतर घूमते हुए यंत्र के छिद्र में से जो भी वीर एक विशेष धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाकर दिए गए पांच बाणों से, छिद्र के ऊपर लगे, लक्ष्य को भेद देगा, उसी के साथ द्रौपदी का विवाह कर दिया जाएगा।
द्रौपदी के स्वयंवर में कर्ण और कौरव सहित देश-विदेश के आदि राजा पहुंचे। ब्राह्मण वेश में पांडव भी स्वयंवर-स्थल पर पहुंचे। कर्ण ने धनुष पर बाण चढ़ा तो लिया किंतु द्रौपदी ने सूत-पुत्र से विवाह करने इंकार कर दिया, तब कर्ण को प्रतियोगिता से बाहर कर दिया गया। कौरव आदि अनेक राजा तथा राजकुमार तो धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा ही नहीं सके और भूमि पर गिर पड़े। तब ब्राह्मण वेश में अर्जुन ने पहुंचकर प्रत्यंचा चढ़ाई और लक्ष्य को भेद दिया लेकिन कौरवों सहित अन्य राजाओं ने इस बात पर आपत्ति जताई की ब्राह्मण को राजकन्या क्यों दी गई। इस दौरान कृष्ण भी उपस्थित थे, जो जानते थे कि ब्राह्मण वेश में कौन है तो उनकी नीति से समारोह में शांति बनी और द्रौपदी ने अर्जुन को वरमाला पहनाई।
अर्जुन सहित पांडव द्रौपदी को लेकर कुंती के पास पहुंचे। उन्होंने द्वार पर ही खड़े होकर माता कुंती को पुकारा और कहा कि माते हम आपके लिए भिक्षा लाए हैं। उनके यह कहने पर कि वे लोग भिक्षा लाए हैं, उन्हें बिना देखे ही कुंती ने कुटिया के अंदर से कहा कि सभी मिलकर उसे ग्रहण करो। पांचों हैरान रह गए। लेकिन मां कुंती के मुंह से निकला वचन उनके लिए दुविधा का विषय बन गया। पुत्रवधू को देखकर अपने वचनों को सत्य रखने के लिए कुंती ने पांचों पांडवों को द्रौपदी से विवाह करने के लिए कहा।
द्रौपदी के जीवन की कथा यहीं से शुरू होती है, जो इतिहास में आज तक चर्चित है। द्रौपदी ने पांडवों के साथ रहकर पांडवों की हर कदम पर मदद की।
द्रौपदी के पुत्र : द्रौपदी को युवराज युधिष्ठिर से प्रतिविन्ध्य, भीमसेन से सुतसोम, अर्जुन से श्रुतकीर्ति, नकुल से शतानीक और सहदेव से श्रुतवर्मा नामक पुत्र थे।
अश्वत्थामा की मणि : द्रौपदी के कारण ही पांडवों को अश्वत्थामा के मस्तक की मणि लाना पड़ी थी। वह मणि जो अस्वत्थामा की शक्ति का केंद्र थी। वह मणि समस्त राज्य से अधिक मूल्यवान तथा शस्त्र, क्षुधा, देवता, दानव, नाग, व्याधि आदि से रक्षा करने वाली थी।
दुर्योधन का अपमान : कहा जाता है कि द्रौपदी के कारण ही महाभारत युद्ध हुआ। क्यों? क्योंकि पांडवों द्वारा बनवाए गए माया निर्मित सभाभवन में विभिन्न वैचित्र्यता थी। दुर्योधन जब वहां घूम रहा था तब उसको अनेक बार स्थल पर जल की, जल पर स्थल की, दीवार में द्वार की और द्वार में दीवार की भ्रांति हुई। कहीं वह सीढ़ी में समतल की भ्रांति होने के कारण गिर गया और कहीं पानी को स्थल समझ पानी में भीग गया। उसकी इस स्थिति को देखकर युधिष्ठिर को छोड़कर द्रौपदी सहित अन्य पांडव हंसने लगे। कहा यह भी जाता है कि द्रौपदी ने उन्हें 'अंधे का बेटा अंधा' कहा था। दुर्योधन अपना यह अपमान सह नहीं पाए और द्रौपदी को सजा देने की योजनाएं बनाने लगा।
द्रौपदी चीरहरण : अत: हस्तिनापुर जाते हुए उसने मामा शकुनि के साथ पांडवों को द्यूतक्रीड़ा में हराकर उनका वैभव चूर करने की एक युक्ति सोची। दुर्योधन का मामा शकुनि द्यूतक्रीड़ा में निपुण था। दोनों ने मिलकर धृतराष्ट्र को द्यूतक्रीड़ा का आयोजन करने के लिए मना लिया और फिर विदुर के हाथों पांडवों को निमंत्रण भेजा। युधिष्ठिर ने चुनौती स्वीकार कर ली तथा द्यूतक्रीड़ा में वे व्यक्तिगत समस्त दांव हारने के बाद भाइयों को, स्वयं अपने को तथा अंत में द्रौपदी को भी हार बैठे।
दुर्योंधन ने क्रुद्ध होकर दु:शासन से कहा कि वह द्रौपदी को सभा भवन में लेकर आए। द्रौपदी ने दुर्योधन से प्रश्न किया कि युधिष्ठिर ने पहले कौन-सा दांव हारा है- स्वयं अपना अथवा द्रौपदी का।
तब दु:शासन ने द्रौपदी के बाल खींचकर कहा- 'हमने तुझे जुए में जीता है अत: तुझे अपनी दासियों में रखेंगे।' कर्ण के उकसाने से दु:शासन ने द्रौपदी को निर्वस्त्र करने की चेष्टा की। द्रौपदी ने विकट विपत्ति जानकर श्रीकृष्ण का स्मरण किया। श्रीकृष्ण की लीला से द्रौपदी का वस्त्र लम्बा होता गया और द्रौपदी के सम्मान की रक्षा हुई।
द्रौपदी इतिहास में अकेली ऐसे महिला है जिसने सबसे ज्यादा सहा। द्रौपदी के जीवन पर सैकड़ों ग्रंथ लिखे गए और उनके चरित्र की पवित्रता को उजागर किया गया।