आमतौर पर शिवलिंग को गलत अर्थों में लिया जाता है जो कि अनुचित है या उचित यह हम नहीं जानते। वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की सारी ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है।
ज्योतिर्लिंग : ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएँ प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।
दूसरी मान्यता अनुसार विक्रम संवत के कुछ शताब्दी पूर्व एक उल्कापात का अधिक प्रकोप हुआ। आदि मानव को यह रुद्र का आविर्भाव दिखा। शिव पुराण के अनुसार उस समय आकाश से ज्योति पिंड पृथ्वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। कहते हैं कि मक्का का संग-ए-असवद भी आकाश से गिरा था। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्योतिर्लिंग में शामिल किया गया। ।
बारह ज्योतिर्लिंग : (1) सोमनाथ, (2) मल्लिकार्जुन, (3) महाकालेश्वर, (4) ॐकारेश्वर, (5) वैद्यनाथ, (6) भीमशंकर, (7) रामेश्वर, (8) नागेश्वर, (9) विश्वनाथजी, (10) त्र्यम्बकेश्वर, (11) केदारनाथ, (12) घृष्णेश्वर।
शिव चिन्ह : वनवासी से लेकर सभी साधारण व्यक्ति जिस चिन्ह की पूजा कर सकें, उस पत्थर के ढेले, बटिया को शिव का चिन्ह माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशुल को भी शिव का चिन्ह माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्ध चंद्र को भी शिव का चिन्ह मानते हैं।
शिव पार्षद : बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी, आदि शिव पार्षद है।
शिव गण : भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है।
शिव के द्वारपाल : नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा महेश्वर और महाकाल।
शिव पंचायत : सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।