नींद

सुबह मेरी नींद खुल गयी। न जाने उस वक़्त घडी में क्या समय हुआ था? मुझे सुबह उठते ही घडी में देखने की आदत थी। यह आदत मुझे पिछले ६/७ सालो में ही लगी थी। बचपन में जब मै नींद से उठता था और तब जिस घर में हम रहते थे वहा मेरे पलंग के ठीक सामने वाली दिवार पर एक घडी थी, जो शायद ना चाहते हुए भी आँख खुलते ही दिख जाती। इसीलिए ये अनुमान लगाना बड़ा मुश्किल है की ये आदत मुझे बचपन से थी या नहीं। बचपन मै पिताजी मुझे हमेशा चिल्लाकर उठाते थे. "उठो ९ बज गए है" लेकिन घडी में ८.४५ या उसके आसपास ही बजे हुए होते थे। कभी ८.५० तो कभी ८.४०। एक बार तो ८.३५ ही हुए थे। कभी ९ बजे हुए होते ही नहीं थे। न जाने पिताजी ऐसा क्यों कहते थे ? 

मुझे ज्यादा सोना पसंद नहीं है। इसीलिए सुबह उठते ही अगर घडी में ७.०० या ७.३० बजे हो तो मुझे बेहद ख़ुशी महसूस होती है। एक तरह का आत्मविश्वास अंदर से जागृत होता है। कभी कभी सुबह घडी देखते वक्त यह भी लगता है के बचपन से लेकर आज तक मै किसी चीज के इंतज़ार मे हु। लेकिन क्या हो सकती है वह चीज ?

नींद खुलते ही मेरे मन में विचार आया की थोड़ी देर पहले भी मैं नींद से उठा था और पिछले कुछ घंटो मे मै कई बार उठा था। कई बार मेरी नींद खुली थी। तो जब पहली बार चंद घंटो पहले जब मैं नींद से उठा था तब घडी में कितने बजे होंगे ? और मैंने उस वक़्त घडी मैं क्यों नहीं देखा ? अंत मे मैंने उठने का फैसला किया, लेकिन और थोड़ी देर गहरी नींद आएगी इस चाह से मैंने करवट बदली और अपने पेट के बल लेट गया। लेकिन जैसे मैंने करवट बदली मेरी नींद पूरी तरह से खुल गयी। कंबरे के बाहर घरवालों की रेलचेल हो रही थी। मेरे मन में सवाल आया की किसीको मेरी चिंता है या नहीं ? अगर बाहर घरवालों की रेलचेल है इसका मतलब मुझे आज उठने में बड़ी देर हो चुकी है। क्युकी घरमे हर रोज सुबह सबसे पहले मैं ही तो उठता हु, फिर घरवाले। यह बात भी मुझे खाने लगी थी। उतने में मेरे कंबरे के दरवाज़े पर किसीने दस्तक दी। मैं उठ चूका था। लेकिन फिर भी मैं नींद का ढोंग लिये सोया रहा। उतने में माँ ने दरवाज़ा खोला और मुझे आवाज़ लगायी। मैं फिर भी नहीं उठा। तुरंत अगली आवाज़ लगाने के बाद मैंने करवट बदलते हुए माँ की तरफ उलटी दिशा में देखा और उसे यक़ीन दिलाया के में उसीकी आवाज़ से उठा हु। में सफल हो चूका था। " मैं कच्चे आम लेने बाजार जा रही हु " -माँ ने कहा। मैंने "हु".... करके जवाब दिया। माँ जाने के बाद मेरे मन में विचार आया अगर मैं और थोड़ी देर सोनेका ढोंग करता तो ? या फिर उसने बाजार जानेकी बात कहने क बाद मैं उसे रोक लेता तो ? माँ चली गयी थी। अभी तक मैं बिस्तर से निचे नहीं उतरा था। लेकिन मैंने ठान ली के अब उठना ही हैं। 

कल रात हुई बारिश के कारण हवा में ठंडक थी। मेरे शरीर से निकले हुए पसीने का हर एक अंश मेरे बिस्तर में समाया था। मैं मेरी पलंग की चादर को कई दिनों के बाद बदलता हु। जितने दिन वह रहती है उतने दिन का मेरे पसीने का अंश उसमे समाया हुआ रहता है। चादर के साथ साथ तकिये में भी। में अपने बालो में जो दवाई डालता हु, बाल ना झड़ने के लिए, उस दवाई की भी गंध उस तकिये से सुबह सुबह आती है। कभी कभी लगता है के वह चादर हर रोज सिर्फ मेरे पसीने के अंश से ऊब गयी होगी। तकिया इस मामले में भाग्यशाली रहा होगा। अरे !!! मैंने अपने पहने हुए कपड़ो के बारे मे तो सोचा ही नहीं ? ख़ैर वह रोज धुलते है। मेरे उठने के कुछ समय बाद ही में नहाते वक़्त उन्हें धोने डाल देता हु। 

मैंने अपनी करवट जो दरवाज़े की तरफ थी जहासे माँ अभी अभी गयी थी उसे थोड़ा और दायी तरफ मोड़ा जिससे मुझे मेरा तकिया दिखे। सुबह उठते ही मुझे यह भी आदत थी के तकिये पर मेरे झड़े हुए हुए बाल कितने जमा हुए है ? यह देखना। तकिये पर रही सफ़ेद और जामुनी रंग की डिज़ाइन के कारण वह तादात में ज्यादा नहीं लग रहे थे। बस ३ या ४ थे । मैंने और करीब अपनी नजरे तकिये की तरफ गड़ाई लेकिन वे तादात में उतने ही थे। कई दिनोसे मुझे लग रहा है की तकिये का कवर पूरा सफ़ेद होना चाहिए,जिससे मुझे अपने झड़े हुए बालो का सही सही अंदाजा हो। लेकिन साथ में मुझे यह भी डर है के सफ़ेद तकिये पर अगर मेरे बाल ज्यादा झड़ने लगे तो ? या इस तकिये की जामुनी डिज़ाइन में मेरे झड़े हुए बाल छिपे हो और तकिया पूरा सफ़ेद होने क बाद उन्हें छिपने की जगह न मिले और मेरी आँखे उन्हें पकड़ ले तो ? खुदको समझा बुझाके मैंने बिस्तर से निचे उतरना चाहा और बगल के मेज के ऊपर रखी घडी में मैंने समय देखा तो घडी मे '९' बजे थे।  

-अक्षय विंचूरकर (akshay.vinchurkar@gmail.com)