मकर सक्रांति क्यों मनाते है ?

हिन्दू धर्मशास्त्रों में मन गया है की मकर सक्रांति के दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में जाता है। आधुनिक विज्ञान की भाषा में इसे हम समझे तो ऐसा कह सकते है की इस दिन हिन्दू ज्योतिष के अनुसार सूर्य उत्तर की तरफ जाने लगता है और रात्रि की तुलना में दिन बड़े हो जाते है।

हिन्दू कालगणना चंद्र पर आधारित है। हमारे पूर्वजों ने कुछ हज़ार साल पूर्व यह देखा की जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है उसी दिन सूर्य उत्तर दिशा में प्रवेश करने लगता है। उस काल में यह बराबर था लेकिन धीरे धीरे मकर राशि के प्रवेश में और उत्तरायण दिवस में बदलाव आने लगा. आज मकर सक्रांति जनवरी में आती है लेकिन असली उत्तरायण दिसम्बर में होता है। चंद्र और सूर्य आधारित कालगणना में कुछ फर्क होनेसे यह बदलाव आता है। हम ऐसा कह सकते है की कुछ हज़ार साल बाद मकर सक्रांति शायद मे महीने में आ सकती है.

धर्म के दृष्टिकोण से यह काफी महत्वपूर्ण दिवस है. इस दिन देवताओं के छह मॉस प्रारम्भ होते है जो आषाढ़ तक चलते है। मकर राशि का स्वामी शनि है और सूर्यभगवान इस दिन शनि भगवन के घर एक माह रहने के लिए जाते है।

कर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था इसलिए मकर संक्रांति पर गंगासागर में मेला लगता है। गंगा इस पवित्र नदी का आगमन पृथ्वीपर इसी दिन हुआ था इसलिए हिन्दू समाज के लिए यह दिन काफी महत्वपूर्ण है।

महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने का ही इंतजार किया था। कारण कि उत्तरायण में देह छोड़ने वाली आत्माएं या तो कुछ काल के लिए देवलोक में चली जाती हैं या पुनर्जन्म के चक्र से उन्हें छुटकारा मिल जाता है। उनका श्राद्ध संस्कार भी सूर्य की उत्तरायण गति में हुआ था। फलतः आज तक पितरों की प्रसन्नता के लिए तिल अर्घ्य एवं जल तर्पण की प्रथा मकर संक्रांति के अवसर पर प्रचलित है।

मकर सक्रांति की सुबह को सिद्धिकाल कहा गया है। सिद्ध शक्तियां प्राप्त करने के लिए यह काफी महत्वपूर्ण मुहूर्त है।

महाराष्ट्र में परिणीता स्त्रियाँ सक्रांति में तिलगुल समारम्भ मानती है। वे अपनी दोस्तों को घर बुलाकर उनको तिल तथा शक्कर या गुड़ के बनाये हुए मीठे पदार्थ खिलाती है। मन जाता है की इस माह में तिल का सेवन करने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है।