बुद्ध के
सौतेले भाई तथा उनकी माता की छोटी बहन के पुत्र नंद जिस दिन जनपद कल्याणी के
साथ परिणय-सूत्र में बँधने वाले थे उसी दिन
बुद्ध उनके महल में पहुँचे। फिर उनसे अपने भिक्षाटन के कटोरे को उठा अपने
साथ अपने विहार ले आये। विहार लाकर
बुद्ध ने उन्हें भी भिक्षु बना दिया। नंद ने
भी भिक्षुत्व स्वीकार किया किन्तु उनका
मन बार-बार जनपद-कल्याणी की ओर खींच-खींच जाता था।
एक दिन बुद्ध नंद को हिमालय की सैर कराने
ले गये। वहाँ उन्होंने एक जली हुई
बंदरिया का मृत शरीर देखा। नंद
से पूछा, "क्या जनपद कल्याणी इससे
भी अधिक सुंदर है?" नंद ने कहा, "हाँ"। तब
बुद्ध उन्हें आकाश-मार्ग से उड़ाते हुए तावतिंस
लोक ले गये, जहाँ सबक (शक्र; इन्द्र) और उसकी अपूर्व
सुंदरियों ने उनकी आवभगत की। बुद्ध ने तब नंद
से पूछा, "क्या जनपद कल्याणी इन सुंदरियों
से भी सुंदर है?" तब नंद ने कहा, "नहीं"।
बुद्ध ने नंद के सामने तब यह प्रस्ताव
रखा कि यदि वे भिक्षु की चर्या अपनाएंगे तो
उनकी शादी शक्क की किसी भी सुन्दरी
से करा देंगे। नंद ने बुद्ध का प्रस्ताव
मान लिया।
नंद के साथ जब बुद्ध अपने विहार पहुँचे तो वहाँ उपस्थित अस्सी भिक्षुओं ने नंद
से उनके भिक्षुत्व की प्रतिज्ञा के संदर्भ
में प्रश्न किया। तब नन्द का मुख लज्जावनत हो गया।
वे अपनी पूरी शक्ति के साथ अर्हत्व की
साधना में जुट गये और अंतत: अर्हत्
बनने का लक्ष्य प्राप्त कर ही लिया।