"अच्छा हुवा शोभा,तुम आ गयी.अब जल्दीसे काम शुरू करो.पहीले कपडेबरतन करलो.बादमें खाना पकाना.उसके बाद पोछा लगा लेना.",सिल्क मँम बता रहीं थी.
शोभाने हालहींमे ये घर जॉईन कीया था.शोभा के हजबण्ड एक गवर्नमेंट सर्वंट थे.फीरभी शोभा ये नौकरानीका काम खुशीसे कर रहीं थी.क्योंकी वो खुदके खर्चेकेलिए कीसीके सामने हाथ फैलाना नहीं चाहती थी.इस कामके लिए उसे तीन हजार रूपये महीना मिल रहे थे.और वो उसीमें खुश थी.
बचपनसेही शोभाकी जिंदगी उदासीभरी रहीं.शोभाके मातापिता पहला बेटाही चाहते थे.कन्या के आगमनसे थोडी नाराजी थी.शोभा के पापानेतो उसे जन्मके बाद छह महीनोंतक हाथभी नहीं लगाया था.तीन सालबाद जब घरमें उनका मनचाहा प्रिन्स आया,तब जाके शोभाके पिताजी कुछ खुश रहने लगे.शोभाके मातापिता उससे ठीकही बरताव करते थे.लेकीन फीरभी शोभाको हमेशा उस घरमे उदासीही महसुस होती थी.शोभाको घरके सारे काम करने होते थे.
एक दिन शोभा अपने दोस्तोंके साथ लुकाछुपी खेल रहीं थी.तभी घरपे पापा के दोस्त आ गये.माँने उसे फौरन आवाज देकर घरमें बुला लिया.
"शोभा,शोभा...घर आओ.कीतना टाईम खेलोगी."
शोभा मुँह लटकाते हुए घर आई.घरमे आतेही माँने प्याज काटनेको बिठा दिया.उसके बाद चाय के बरतन धोलो.सब्जी काटके दि.खाना बनाने और परोसनेमे शोभा माँका हाथ बटा रही थी.और खाना खानेको सबसे आखिरमें माँके साथही मिला.उसके बाद ढेरसारे बरतन शोभा घरके पिछे धोती रहीं.
"मै एक बारा सालकी लडकी.मेरा कोई बचपनही नहीं है.माँतो मुझे अपना घरमें हर काममें पार्टनरहीं समझती है.ये चाईल्ड लेबरहीं हुवा की नहीं.माँने मुझे रोजाना करनेके लिए घरमें कीतने सारे काम दे दिए है.बरतन,कपडे और पोछा..अगर माँ कहीं बाहर गयी तो खानाभी मुझेही पकाना पडता है.मेरेबारेंमे तो इस घरमें कभी कोई सोचताहीं नहीं.",शोभा मनहीमनमे खुदसे बात कर रहीं थी और रोभी रहीं थी.
छोटे छोटे गाँवोमें लडकीया बचपनसेही खाना बनाना और घरके सारे काम करती है.अपने छोटे भाईबहनोंको एक माँकी तरह संभालती है.कुछ लोग कहेंगे खुदकेही घरमे काम करनेमें क्या खराबी है?खराबी नहीं है लेकीन सारे काम लडकीयोंकोही क्यु?लडकोंसेतो कोई एक ग्लास पानीभी नहीं मांगता.ये लडकीयोंके उपर अन्यायही नहीं हुवा क्या.स्कूलमें जब इतवारकी छुट्टी आती है तबभी लडकीया स्कुलमे मास्टरसे कहती है..."छुट्टी मत दो सरजी...घरपे ज्यादा काम करना पडेगा.उससे तो स्कुलही अच्छा है".मेरी एक दोस्त तो घरपे काम करके इतना थक जातीं थी की वो स्कुलमें बेंचपे बैठतेही सो जाती थी.स्कुलके सर और मँडमने एकदोबार डाटा फीर उसे उसके हालपे छोड दिया."हमारी माँ क्यु नहीं हमें समझती?",ये सवाल हर एक नन्ही कलीके दिलमे जिंदगीमे जरूर आता है.
छुट्टीयोंमे शोभाकें माँबाप हमेंशा गाँव जाते थे.लेकीन तिकीटकी वजहसे वो शोभाको कभी अपने साथ गाव लेके नहीं गए.शोभाको हमेंशा कीसी रिश्तेदार या पडोसीके घरपें छोड देते थे.
"मुझें क्यु नहीं ले जाते ये लोग?अगर मेरा खर्चा इनसे हो नहीं पा रहा है तो आखिरकार इन्होने मुझे जनम दियाही क्यु?इससे अच्छा तो ये मुझे पेटमेंही मार देते?बेटेके लिए इनकेपास हमेशा रूपये होते है और मेरेलिएही ये गरीब हो जाते है.मुझेभी घुमना है.दुनिया देखनी है.हमेशा इसी शहरमे...कीतनी बोअरींग लाईफ है...",शोभा रातके अंधेरेमे सोच रही थी और आँखोसे पानी बह रहा था.
बारवी कक्षामें शोभाको एक क्लासके लिए फत्तेपुर जाने का मौका मिला.कुछ दिन बससे आनाजाना हुवा.एक दिन उसके सहेली का भाई कुणाल उसके करीब खडा था.बसमें बहुत भीड थी.कुणालने अपना जँकेट निकालके शोभाके हाथोंमे दे दिया था.
कुणालने झगडा करके शोभा को एक सीट बैठनेके लिए खाली कर दी.शोभा बैठ गयी.कुणालने अपना जँकेट वापिस माँगा.
"रहने दो .मेरे हाँथोंमे.",शोभा ने जवाब दिया.
कुणालको कुछ अँबनॉर्मल लगा.कीसी लडकीने उसे आखीरकार घाँस डाली ऐसा उसे लगा.कुछ दिन बाद शोभा ट्रेनसे अपडाउन करने लगी.कुणालभी ट्रेनसे आने लगा.कुणाल फत्तेपुर मे कीसी शॉपमे काम करता था.कुणाल हमेशा शोभाके साथ बात करने की कोशिश करता था.उसके लिए गिफ्ट्स लाता था.शोभाकोभी उसके साथ अच्छा लगता था.मातापितासे तो यही अच्छा है.कुणालके साथ वो अपनी उदासी भुल जाती थी.कुणाल और शोभा एकदुसरेके बारेंमे कुछभी नहीं जानते थे.बस सिर्फ एकदुसरेका साथ पसंद करते थे.कुणाल के जिंदगीमें आ जानेसे शोभा खुश रहने लगी.एक दिन शोभाने अपनी सहेलीसे कुणालके बारेंमे बात की.
"मेघा,आय लव कुणाल.तुम्हें क्या लगता है?"
"अच्छा है...लेकीन वो दुसरे कास्टसे है.तुम दोनोंकी शादी कोई स्विकार नहीं करेगा."
"तो क्या हुवा?"
"अरे यार,वो तो लडका है.उसे कोई फरक नहीं पडेगा.लेकीन तुम्हेतो शादी करके उसके घर जाना पडेगा.तुम्हें उसके घरमें अँडजस्ट करना पडेगा.ना मायका रहेगा ना ससुराल.अकेली पडजाओगी.उसके घरवाले उपरसे तुझे अपना लेंगे लेकीन लवमँरेजकी वजहसे मनमे खटास तो रहेगीं ना.लवमँरेजमे हमेशा लडकीयोंकोही भुगतना पडता है."
"तुम सहीं कह रही हो."
शोभाने फौरन अपना मन बदल लिया.अगले दिन वो ट्रेनमे कुणालके आनेसे पहलेही अंदर बैठ गयी.कुणालको वो स्टेशनपे दिखाई नही दी.इसलिए वो उसे ढुँढने लगा.कुणालने मेघासे पुँछा.
"शोभा क्यु नही आयी अभीतक?"
"आयी है.अकेली बैठी है.बाजुके डीब्बेमें"
कुणाल शोभाके सामने जाकर खडा हो गया.
"तुम अकेली क्यु बैठी हो?आज मेरा इंतजारभी नहीं कीया."
"कुणाल सब भुल जाओ.प्लीज.मै ये रिश्ता आगे नहीं बढाना चाहती "
शोभाने एकबारभी कुणालकी तरफ देखा नहीं. वो इधरउधर देखकर बात कर रहीं थी.थोडासा मनमे डरभी था.कुणालको अगर गुस्सा आ गया तो?लेकीन कुणाल बिन कुछ कहेही निकल गया.शोभा उसकी तरफ देखतेही रह गयी.
"आखिरकार कोई अपना मिला था वोभी आज बिछड गया.अगर मै लडका होती तो लव मँरेजही करती...कुणाल मुझे माफ करदो.इस एक सालमे तुमने मुझे जो खुशी दी है उसकी कोई कीमत नहीं है.भगवान तुम्हें हमेशा खुश रखे.",शोभा मनहीमनमे सोच रही थी.खिडकीसे आनेवाली हवा उसे परेशान कर रहीं थी लेकीन मनकी परेशानी जादा थी.
आज शोभा बारवी कक्षाभी पास हो गयी.अब वो अपने दोस्तोंके साथ आगे की पढाईकेलिए फत्तेपुर जाना चाहती थी.लेकीन पिताजी उसकी शिक्षापर रूपये खर्च करनेकेलिए बिलकुल तयार नहीं थे.शोभाका मन फीरसे उदास हो गया.टी.व्हीपर बारबार आनेवाली 'बेटी बचाओ,बेटी पढाओ' अँड उसे बहुत परेशान करती थी.पैदा करनेके बादभी बेटीको हरपल मारते है,इससे तो अच्छा है की माँकी पेटमेंही मार डाले....यही खयाल उसके दिमागमें आता था.
कुछ दिनोंबाद शोभाकी शादी शेखरसे हुई.अच्छेखाँसे दहेजके साथ शोभा शेखरके घरमें आयी.शोभा को लगा आखिरकार उसे अपना घर मिलही गया.लेकीन शादीके एक महीनेबादही उसे पता चला की वो तो सिर्फ एक पिंजरेसे दुसरे पिंजरेमें आयी है.शेखर उसकेसाथ कभी बाहर नहीं जाता था.शेखर अपनी माँसे बहुत डरता था.माँके सामनेतो वो शोभासे बातभी नहीं करता था.शोभाका हरदिन सिर्फ घरके कामकाजमें गुजर रहा था.अब उसका दिल तडप रहा था.मुझे जीना है....ये बात उसके दिलमे हमेशा गुँजती रहती.
शेखरके घरमे सब फैसले उसकी माँ लेती थी.आज क्या खाना पकाना है ये बातभी उसे हमेशा साँससे पुछनी पडती थी.शोभाको रातको खाना खानेके बाद शेखरके साथ पैदल घुमनेका बहुत मन होता था...पर शेखर माकी वजहसे उसे कभी बाहर लेके नहीं गया.जबभी कोई नयी फील्म आती थी,शेखर फौरन अपने दोस्तोंके साथ मुव्ही देखने जाता था.शोभाकोभी मुव्हीज बहुत पसंद थी...पर वो कीसके साथ मल्टीप्लेक्स जायेगी?शादीके बाद शोभाकी माँका रवैय्या थोडा बदल गया .शोभाकी माँ उसके साथ थोडे प्यारसे पेश आती थी लेकीन हरबार अब वहीं तुम्हारा घर है ये बातभी बताती थी.शेखरके घरमे शोभा फीरसे उदासही हो गयी.हमेशा सिर्फ काम और काम.शेखर और उसके बीच कोई रीश्ता बनाही नहीं.एकही घरमे दो अजनबी जैसे.
शेखरने कभी उसे कोई शॉपिंग नहीं कराई नाही कभी उसे कही घुमने ले गया.कभी उसकी एकशब्दसेभी तारीफ नहीं की.रोमँटिक शब्द क्या होता है उसे तो पताही नहीं था.शोभा खुद जब कुछ शेखरको बताती थी तभी वो चीज घरमें आती थी.अगर कभी कुछ कारणसे दोनों घरसे बाहर बाजारमें आभी गए तो शेखरका जवाब तैयार रहता था..मेरेपास अभी पैसे नहीं है.इसीवजहसे शेखरसे कुछ माँगनेसे पहले शोभा हजारबार सोचती थी.अगर उसे शेखरसे कुछ माँगना हो तो हफ्तेपहले टोकना शुरू करना पडता था,तब जाँके वो चीज मिलती थी.
अब शोभा खुद माँ बन गयी.एक छोटासा राजकुमार राज उसके आँगनमे आ गया.अबतो शोभाके जिंदगीमें खुदकेलिए टाईम रहाही नहीं. उसकी साँसने राजको कभी नहीं अपनाया.उल्टा इस बच्चेकी वजहसे शेखर अब हमसे दुर हो जायेगा ये बात उन्हे परेशान करने लगी.एक दिन राज सो रहा था.शेखर अकबार पढ रहा था.
"राज सो रहा है..तबतक क्या मै मंदीर हो आऊँ..."
"कोई जरूरत नहीं है...अगर वो उठ गया तो..",शेखरने सख्त आवाजमें जवाब दिया.
"क्या बच्चोंको संभालना सिर्फ औरतका काम होता है...एक पलके लिएभी मुझे अपनी मम्मीकी ड्युटीसे छुट्टी नहीं.शादीको एक साल भी नहीं हुवा तबसे बच्चेके लिए जबरदस्ती मेडीकल ट्रीटमेंट शुरू करवा दिया.जबतक बच्चा नहीं हो रहा था तब यहीं साँस बारबार ताने मारती थी.अब बच्चा हो गया तो एक दिन उसे गोदमे उठाती नहीं.आजभी वो अस्पतालके दिन याद आते है तो सिर्फ सिझरसे,अँबाँर्शनके ,डीलीवरीके दर्दसे चिल्लाने वाली औरते उसे याद आती थी.कीतनी तकलीफ होती है, माँ बनने मे और माँ बनने के बाद भी...",शोभा मनमे सोचने लगी और घरमेही रूक गयी.
शोभा की हालत देखके उसके एक दोस्तने उसे जॉब ऑफर कीया.लेकीन घरमे साँससे उसे कोई सपोर्ट नहीं मिला.सबसे बडा सवाल राजका था.राजको कौन संभालेगा?लेकीन इसबार शेखरने सपोर्ट कीया.
"आखिरकार घरमे आनेवाली लक्ष्मीको मना क्यु करें"
"क्या मतलब?",शेखरकी माँ बोली.
"मुझे लगता है शोभाको जॉब करना चाहीए. आप लोग राजको संभाल सकते है."
"मैने कब मना कीया..करने दो"
शोभा कामपे जाने लगी.दस बारा दिन अच्छे गुजरे.लेकीन अब शोभाके साँसससुर यहावहा घुमने लगे.राजको संभालनेके लिए शोभाको ऑफीससे बारबार छुट्टी लेनी पडी.और यही छुट्टीयाँ उसका जॉब खाँ गयी.शोभा फीरसे एक हाऊसवाईफ हो गयी.शोभाके घर बैठतेही साँसससुरभी घरमें रूकने लगे.शेखर सब समझ रहाँ था बस कुछ बोल नहीं रहाँ था.अब धीरेधीरे शोभा राजको ट्युशन छोडने,गार्डनमे घुमाने ले जाती थी.इससे वो थोडा बेहतर फील करती थी.साँसससुर के गाँव जातेही शेखरभी राज और शोभाको हॉटेल ले जाता था.मुव्ही दिखाता था.शॉपिंग कराता था.अब हालात थोडे बेहतर थे.लेकीन माँबापके लौटतेही शेखर अपना पुराना रूप धारण कर लेता था.
आज बहुत दिनोंबाद फीर वही अँड शोभाने टी.व्ही.पे देखी."बेटी बचाओ,बेटी पढाओ"....पुरे हीन्दुस्तानमें ऐसा कोई ईन्सान नहीं होगा जो कहेगा मुझे बेटा नही चाहीए. मुझे सिर्फ दो बेटीया चाहीए.जब बेटीयोंके प्रती समाजकी सोचही नहीं बदल सकते तो ये टी.व्हीपे इतना दिखावा क्यु?...शोभा फीर परेशान हो गयी.शोभा के नेबर एक बेंगॉली फँमिली थी.उनका एक बडा बेटा था और छोटी बेटी थी.शोभा सोचती थी इतनी महंगाईमे आखिर दो बच्चोंकी जरूरत ही क्या है?मेरी जिंदगीमे सिर्फ एक चीज अच्छी हुई है की मुझे पहलाही बेटा हो गया.इसवजहसे मेरे बेटेकी जिंदगीमे हर इच्छा पुरी होंगी.उसे कभी पैसोकेलिए एज्युकेशन में कॉम्प्रमाईज नहीं करना पडेगा.जैसे मेने कीया ...था...अपनी कॉलेज लाईफ में...
कभीकभी राजकी वजहसे घरमे झगडाभी हो जाता था.
"अँज अ हजबण्ड तो आपने मुझे कभी कोई खुशी दी नहीं, लेकीन उस मासुमको तो दिलभरके प्यार कीजीए"
"क्या मतलब है तुम्हारा..."
"आप उसकी स्कुलका अँन्युअल फंक्शन भी अटेंड नहीं कर सकते क्या?"
"काम था..."
"हा पता है मुझे.दोस्तोंके साथ खाली बैठे थे आप."
"देखो शोभा,ऐसे समझो की जैसे तुमने एक आर्मीवालेसे शादी की है.मुझसे कोई उमीद मत करो.वो औरतेभी सभी अँडजस्ट करती है ना."
शोभाने ये जवाब हमेशा याद रखा है.उसका पती सिर्फ नामके लिए घरमें है.राजके लिए वहीं माँ है और वही बाप है.एक दिन शोभा टेम्पलमें गयी थी.वहाँ उसे सोनवणे चाची मिली.
"चाची आप रो क्यु रहीं हो?"
"क्या करू शोभा,अब अकेला रहा नहीं जाता.दो बेटीया है लेकीन उनकी जॉईंट फँमिलीज है.मै उनके साथ रह नहीं सकती.बस अब उपरवाला जल्दीसे बुलाले."
"अरे चाची,इतना उदास मत हो.सब्र रखिए....राज राज कहा जा रहे हो...चाची मै आपको बादमे मिलती हुँ."
"ठीक है.पहीले अपने बच्चे को देखो."
शोभा राजके साथ घर आ गयी.लेकीन सोनवणे चाची की बात दिमागसे जा नहीं रहीं थी.
"सचमे व्रुद्ध और अकेली महीलाए क्या करे?बुढापेंमे मर्द यहासे वहा ट्रँव्हल करते है,मेस लगाकर गुजारा कर लेते है,जॉबकी वजहसे उनकेपास बहुत सारे दोस्तभी होते है...और टाईमपास के लिए उनके पास बहुत सारी अँक्टीव्हीटीज होती है.पर औरते वो तो हमेशा घरमेंही रहती है.उनका फ्रेंड सर्कल सिर्फ उनकी कॉलनीकी औरते होती है.बचपनसेही मर्दोके सहारे रहनेकी आदत हो जाती है...इसी वजहसे घरकी चौकटके बाहर अचानकसे कदम रखनेको जी घबराता है.और अब बुढापेंमे अकेले रहना सचमें कीतना मुश्कील होगा...",शोभा रातभर सोचती रहीं.
अब शोभा के नेबर बदल गये.कुलकर्णी फँमिली आयी.दो तीन महीने हुए और एक रात उनकी बेटी भाग गयी.सबरवाल चाची सुबह सुबह भागते हुए शोभाके पास आयी.
"तुम्हे पता है क्या,कल क्या हुवा?"
"क्या हुवा?"
"वो..कुलकर्णीकी छोकरी भाग गयी"
"क्या..कीसके साथ"
"कोई गुजराती लडका था.मेरे ध्रुवने उसे बहुतबार उस लडके के साथ मार्केटमें देखा था."
"अच्छा.. इन्टरकास्ट मँरेज..आजकल सोसायटी की लडकीयोंको आखिर हो क्या गया है..."
"शोभा,शोभा..चाय हुई की नहीं",अंदरसे शोभा की साँस चिल्लाई.
"आयी,आयी",इनकी फरमाईशे कभी खत्म नहीं होंगी.सबरवाल फाभी बादमें बात करेंगे.
शोभा कीचनमें गयी.चायके लिए गँस ऑन कीया.लेकीन उसकी आँखे कुलकर्णी होम देख रहीं थी.उनके घरकी एक खिडकी शोभाके कीचनके करीबही थी.उसी खिडकीमे वो लडकी हमेशा लेटी रहती थी.मोबाईलपे गाणे सुनती थी.हमेशा फोनपे बाते करती थी.अबतो शोभाकोभी उस लडकीकी आदत हो गयी थी.लेकीन आज बिलकुल सन्नाटा था.मिसेस कुलकर्णी दिनभर हाथमें मोबाईल लेके बैठी थी.शायद बेटीका फोन आएगा ऐसा सोच रहीं थी.मिस्टर कुलकर्णी बहुत शराब पिने लगे.उनका बेटा पढाईके लिए दुसरे शहर चला गया.एकही महीनेमे उन्होने वो मकान छोड दिया और गाँव चले गए.शोभाने उस एक महीनेमे मिसेस कुलकर्णीको हमेशा रोते हुएही देखा.क्योंकी हर कोई उसेही ब्लेम कर रहाँ था.वो घरके कामतो करती थी लेकीन सिर्फ एकबार बेटीका चेहरा दिख जाए ऐसाभी सोचती थी.आखिर वो माँ थी.
कुलकर्णी गए और मकानमे आठ दिनके बाद एक नयी फँमिली आयी.उनकी बहु म्रुदुलाने उनके बेटे वैभवके साथ लव मँरेज की थी.वैभव बँक मँनेजर था.अब उनका एक बेटा भी था.इसिलिए वैभव म्रुदुलाकी तरफ जादा ध्यानभी नहीं देता था.म्रुदुलाको शोभा अपनी मा जैसीही लगती थी.
"चाची...मुझे मेरे मायकेकी बहुत याद आती है..क्या मै कभी उनसे मिल पाऊंगी."
"जरूर मिलोगी",शोभा दिल रखने के लिए कह देती थी.
शोभा आज न्युजपेपर पढ रहीं थी.एक इन्सानने अपनी बीवीको तीन बेटींयोके साथ घरसे निकाल दिया.क्योंकी वो बेटा चाहता है.पेपरकी वो फोटो शोभाको परेशान करने लगी.अब ये तीन बेटीया जिंदगीभर मेरी तरह अफसोस करेंगी ये खयाल उसके मनको पलभरके लिए छुँह गया.कुछ दिनो बाद शोभाने एक क्राईम सिरीयलमें एक न्युज रीपोर्टर का रेप होता है.फीर न्यायके लिए वो कीसतरह स्ट्रगल करती है ये देखा.लेकीन न्याय मिलके बादभी सेकंड इनिंग इन लडकीयोंके लिए आसान होती होगी क्या?शोभा सोचमें पड गयी.
राज अब नववी कक्षामें था.ख्रिसमसकी छुट्टीयाँ थी.आठ दिनका पिकनिकका प्लँन बनाया था.पर जैसेही वो घरसे निकले ,आँगणमे मेहमान खडे थे.शेखरने पिकनिक कँन्सल कर दी .शोभा और राज दोनो मायुस हो गए.घरमे दादादादी थे फीरभी पापाने पिकनिक कँन्सल की इस बातसे राजभी खफा हो गया.छुट्टीय खत्म हो गयी.कॉलनीकी कुछ औरते गपशप कर रहीं थी.शोभाभी वहा चली गयी.
"हम लोणावला गए थे.बहुत मजा आया."
"अच्छा मै तो मायके गयी थी.बच्चोने बहुत एन्जॉय कीया."
"शोभा तुमने क्या कीया छुट्टीयोंमे?"
"कुछ नहीं.. मेरी साँससे पीछा छुँटे तब ना.वो मरेगी तभी मुझे छुट्टी मिलेगी."
जिंदगीके बीस साल ऐसेही गुजर गए.अब साँसससुरभी इस दुनियाँमे नहीं रहे.राज फॉरेन चला गया.अब जाके कहाँ शोभाकी जिंदगीमे सुकून आया.अब शोभाने जीना शुरू कीया.अब वो सोचने लगी."क्या सच मे वुमन कमिशन्स,प्रायवेट इन्स्टिट्यूट्स औरतोंके लिए काम कर सकते है?अगर करते है तो फीर भी औरते इतनी जिंदगीसे मायुस क्यु?
आज शेखरके दोस्त भावेश घरपे डीनरके लिए आए.भावेशकी बेटी पढीलिखी थी.
"फाभी,आपकी नजरमे कोई लडका हो तो बताईए आर्याके लिए"
"ओ कमॉन डँड,मै कीसीभी इंडीयन लडकेसे शादी नहीं करूंगी.यहाँ के लडकोंको सिर्फ सर्विसकी आदत होती है.उनकी बिवीया क्लासवन ऑफीसर ही क्यु न हो...वो फीरभी अपनी बीवीका काममें हखथ नहीं बटाते.यहा पे घर और बच्चे इन दो चीजोंसे कभी राहत नहीं मिलती.अगर हजबण्ड्स ने सब्जी पका ली तो क्या बिघड जाता है पापा.औरते अगर बाजारसे सब्जी ला सकती है,बँकमे जा सकती है...मतलब मर्दोवालें काम कर सकती है..तो मर्दोने घरमे खाना पका लिया तो क्या बिघड जायेगा...इंडीयामे औरतोके रूल्स कभी नहीं बदलेंगे.औरते रोज खाना पकाती है..और एकदिनभी अगर वो बीमार हो तो घरका कीचन बंद हो जाता है...ऐसे लडकोंसे शादी करनेसे क्या फायदा?"
"ओके..ओके..जस्ट रीलँक्स.इतना हायपर मत हो.हम तुम्हारी शादी कीसी फॉरेनरसेही करेंगे.ओके"
आर्याके विचार सुनके शोभा खुश हो गयी.ये नयी जनरेशन कीतनी सोचती है.मेरे शादीके वक्त तो मै गुंगी गुडीया थी.आखिर ये सब माँ बापपरभी निर्भर होता है.
शोभाने पेपरमें ट्रँव्हल एजन्सीका अँड देखा.शोभा को बचपनसेही घुमनेका मन था.उसने फौरन तिकीट बुक कर लिया.उसे पता था शेखर उसे कभी पैसे नहीं देगा.शोभाने अपनी गोल्डकी बँगल्स बेच डाली.जिस दिन शोभा बँग लेकर निकल रहीं थी शेखरने उससे पुछताछ की.
"कहा जा रही हो?"
"एक महीने का टुर है.घुमने जा रही हु."
"मुझे क्यु नहीं बताया.मै भी आता."
"जिंदगीका बीस सालका सफर तुम्हारेसाथ कीया.अब हर सफर मै अकेली करना चाहती हुँ.वैसेभी मुझे आपकी कंपनी बोअरींगसी लगती है शेखर."
शोभाका ये रूप देखके शेखरको गुस्सा आ गया.लेकीन शोभाको पता था जब औरत जीना शुरू करती है,मर्दोंको जरूर गुस्सा आता है.शोभा एक महीनेबाद जब घर आयी,शेखरने उसे खुब ताने सुनाए.
"तुम मुझे क्यु इतना सुना रहे हो.तुम्हारी बीवी आर्मीमे है ऐसा सोचलो..और आगेसे मुझसे कभी कोई उमीद मत रखो.मैनेभी जिंदगी इसी सोचमें गुजारी की तुम आर्मीमे हो."
शेखरको बुरा लगा.वो शांत हो गया.शोभाको कीताबे पढना पसंद था.ट्रँव्हलींग पसंद थी.मुव्हीज देखना,डान्स करना...बहचत कुछ...शोभा अब अपनी हर ख्वाईश पुरी करना चाहती थी.लेकीन उसके लिए पैसे चाहीए थे.शोभाने इसीलिए तीन हजार रुपये तनखा मिलनेवाला एक नौकरानीका काम स्विकार कीया.उसकी खुदकी घरके मेडने ये काम उसे दिलाया.
जिंदगीभर घरमें यहीं काम कीया...लेकीन शेखरने कभी पाचसो रूपयेभी शॉपिंग के लिए उसके हाथमें दिए नहीं. ये बात पलभरकेलिए उसे परेशान कर गई.लेकीन अब नयी शुरूवात थी.शोभा सुबह अपना काम कर लेती थी.बादमें वो कॉलेज जाती.लडकीयोंको लेक्चर देती.
"हर लडकीको अच्छी शिक्षा लेनी चाहीए.खुदके पैरोंपे खडा होना चाहीए.तभी माँबाप तुम्हे बोझ नहीं समझेंगे.और इस धरतीपर हमारा स्वागतभी मुस्कुराहटके साथ होगा.कुछ घरोंमे बच्चे और हजबण्ड्स औरतोंको सचमें समझते है.हमे उनका आदर करना चाहीए.पर ऐसे घर बहुत कम है.इसलिए जीवनमे शिक्षाको पहली प्राथमिकता दो."
शोभा बुढी और अकेली औरतोका सेमिनार लेती थी.शोभा उनकी होममेड वस्तुए खरीद थी और बाजारमें बेचती थी.शोभा छोटे छोटे गावोमे जाती थी.औरतोको खुदकी हेल्थके बारेंमे समझाती थी.अँबाँर्शनसे होनेवाले साईड इफेक्ट समझाती थी.फँमिली प्लँनींगके ऑपरेशन्स करनेके लिए औरतोंको प्रोत्साहन देती थी.शोभा कॉलनीज मे जाती थी.साँसको बताती थी की खुदके अंदरका गुस्सा निकालो.ये जिंदगीकी सेकंड इनिंग है.खुशीसे रहो.उसीवक्त बहुको साँसकी बातोंमे अपना जीवन व्यस्त मत करो.मेरी साँस और मेरे पती मुझे टॉर्चर करते है...यहीं मत सोचते रहो.खुदका वक्त और एनर्जी कीसी अच्छे काममें लगावो.साँसकी उमरकी जो औरते होती है उन्हे बताती थी घरमे सजेशन्स देना बंद करो.मंदोरोंमे जावो.गार्डनमे जाओ.पोता पोतीको संभालो.बहुँका पीछा छोड दो.इन सेमिनार्समें वो औरतोंको खुश रहना सीखाती थी.अब शोभा एक सोशल वर्कर हो गयी थी.
शोभा जब पार्लर जाती थी.वहाकी औरते उससे शिकायत करती थी.मेरे हजबण्ड ऐसे...मेरी साँस ऐसी..मेरी बहु ऐसी...मेरा बेटा ऐसा....कोई खुश नहीं. हाऊसवाईफ औरते खुदके लिए लढती हुयी पायी.जॉईंट फँमिलीमे रहनेवाली औरते फँमिलीसे स्ट्रगल करती है तो सिंगल फँमिलीमे रहनेवाली औरते खुदके पतीसेही रीस्पेक्टके लिए झुंजती देखी.सोसायटीमे हर तरफ उसे औरत मनहीमनमे खुदसे लढती हुईही दिखी.
"शोभा तुम ये नौकरानीका काम बंद करदो.मै तुम्हे हर महीने खर्चेकेलिए पैसा दुँगा.इनफँक्ट ये रहा तुम्हारा एटीएम.",शेखर शोभासे बात कर रहा था.
"जरूर...ये तो मेरा हक है शेखर.इस घरके लिए मैने अपनी पुरी जिंदगी दे दी...इतना तो हक बनता है मेरा."
"शोभा मुझे पता है इस घरमें तुम कभी खुश नहीं थी.पर आजसे तुम आजाद हो."
"मै बिलकुल शॉक नहीं हुई.मैनेतो खुदको कबका आजाद कर लिया शेखर.मैने इस घरमे इतने साल गुजारे सिर्फ राजके लिए.क्योंकी मे उसे एक पिताके प्यारसे वंचित नहीं करना चाहती थी.तुम्हारे माबापने मेरी पुरी जिंदगी खराब कर दी.देअर इज नो मोमेंट ऑफ हँपीनेस इन माय लाईफ अँट ऑल."
"हालातही वैसे थे.मै कुछ कर नहीं सका.माँ और बीवीके बीच कीसी एकको चुनना बहुत मुश्कील होता है.तुम नहीं समझोगी."
"मा या बीवी ये नही सोचना था शेखर.सहीका साथ देना था.जाने दो.हर चीज समयपे हो तो उसका मोल होता है."
शेखर खामोशीसे निकल गया.कल सेमिनार मे क्या कहुँ.औरतको अपने कामसे खुबसुरत कैसे बनाऊ.उनके दिलोंमे वो औरत है इसबातका फक्र कैसे निर्माण करू यही सोचनेमे शोभाकी रात गुजर गयी.