होली के दिन की थकान को उतारने के बनिस्बत दूसरे दिन फ़िल्म देखने का जो कार्यक्रम बना तो अपनी टोली में किसी की भी जबान पर केसरी के सिवा कोई और नाम नही था । बहरहाल व्यक्तिगत तौर पर मैंने फ़िल्म में जो खोजा और जो पाया उसका एक छोटा सा तज़र्बा आप लोगो के साथ जरूर साझा करना चाहूंगा .....


केसरी कहानी है 1897 के उस अविश्वसनीय युद्ध की जिसे सारागढ़ी के युद्ध के नाम से जाना जाता है , इस युद्ध की महत्ता का भान इस तथ्य से होता है कि जंग की वो तारीख 12 सिंतबर आज भी उन 21 सिपाहियों की 
शहादत के रूप में मनाया जाता है ।


वास्तव में यह एक संघर्ष है उस आत्मसम्मान के लिए,
 अपनी सरहदों पर अपनी मिट्टी से मोहब्बत करते उस 
ज़ज़्बे के लिए जो हर सैनिक के दिलों में पलता है ,ये 36 सिख रेजिमेंट के उन 21 बहादुर सिपाहियों के
 अविस्मरणीय जंग की दास्तान है जिसे सम्पूर्ण विश्व
 इतिहास में वीरता के मानकों पर यूनेस्को द्वारा कुल 8 युद्धों में दूसरे स्थान पर रखा गया है । पहला युद्ध यूरोप में लड़ा गया था जब 300 सैनिक लाखों की अरब सेना से मुक़ाबिल हुए थे । हॉलीवुड में इस पर "थ्री हंड्रेड" नाम से एक सुंदर फ़िल्म बनाई भी जा चुकी है ।


बहरहाल केसरी की कहानी उस वक़्त के भारत की है जब इस उपमहाद्वीप पर पाकिस्तान नाम का कोई अंश मौजूद नही था , भारतीय सेनाएं हालांकि देश के लिए लड़ाई 
करती थी ,लेकिन देश की हुक़ूमत पर हुक्म अंग्रेजों का ही चलता था ।


फ़िल्म की शूटिंग सच्चे लोकेशन पर की गई है, कॉस्ट्यूम , और माहौल तथा किरदारों पर किया गया बारीक काम मानो दर्शक को वाक़ई में सवा सौ साल पहले के अफगान पाक सीमाओं पर पहुंचा देता है । कोई भी फ़िल्म इन बारीक कार्यों से मनो मस्तिष्क पर एक गहरा प्रभाव डालती है । शानदार लोकेशन्स, बाजार की गढ़ी गयी छवि ,
 अफगानी युवती और बाकी सारे किरदार से बुना गया ताना बाना स्क्रीन से नजरों को चिपकाकर रख लेते हैं ।


इश्शर सिंह के किरदार में अक्षय फ़िल्म के वास्तविक ईश्वर सरीखे लगते हैं । फ़िल्म की शुरुआत में उनकी बगावत , एक दृढ़ लीडर के रूप में सारागढ़ी में उनकी भावभंगिमाये और क्लाइमेक्स में अपने किरदार का क्लाइमेक्स अर्थात विस्तार करते हुए उन्होंने नए शिखरों को ही स्पर्श कर लिया है । हवा में तलवार का करतब दिखाते और एक के बाद एक कई दुश्मनों को धराशाई करते इश्शर सिंह का किरदार मानो साहित्यों में उल्लिखित वीर रस को साक्षात करते जान पड़ते हैं। किसी भी किरदार के हृदय की 
भावनाएं उसके द्वारा अभिनीत किरदार के साथ तादात्म्य बिठा लेती हैं । अक्षय कुमार देशहित , देशरक्षा जैसी 
भावनाओं को अपने पिछली कई फिल्मों से प्रस्तुत भी
 करते आये हैं । परिणीति चोपड़ा ने मेहमान भूमिका में
 इश्शर सिंह को मुश्किलातों में दी जाने वाली अभिप्रेरणा स्त्रोत के रूप में उम्दा उपस्थिति दर्शायी है ।


फ़िल्म में कई अन्य भावनात्मक पक्षो को भी बखूबी 
दर्शाया गया है, सिख पंथ मे मानव की सेवा का पहलू 
मानवीयता के चरम उद्देश्यों को प्रगट कर रहा होता है जब 36 सिख रेजिमेंट का खानसामा , अपने कप्तान के
 आदेशानुसार घायल दुश्मनों को तन्मयता पानी पिला रहा होता है , और कट्टरता और नफरत का वीभत्स चेहरा दिखाता वो मौलवी अपने ही घायल लोगों को पानी पिलाने वाले निहत्थे रसोईये को मार डालता है ।


फौजी ज़ज़्बे का शिखरतम रूप गुरुमुख सिंह के रूप में 
उस 19 बरस के तरुण में दिखता है जो दुश्मन की जान लेने पर तो कांप उठता है लेकिन जंग के अंत मे जिस्म पर लगी आग के जलन से उफ्फ भी नही करता ।


पंजाबी फिल्मों के निर्देशक अनुराग सिंह ने केसरी के मार्फत बॉलीवुड में एक उल्लेखनीय उपस्थिति दी है । उनकी क्षमता बाकी जेनर के फिल्मों में कैसे निखर कर आती है ये देखना अभी बाकी है । बावजूद इसके सच्ची घटना
 पर आधारित यह फ़िल्म निश्चय ही एक अच्छे वक़्त तक लोगो के दिल मे स्मरणीय रहेगी । फ़िल्म का अंतिम गीत बहुत ही सुंदरता से गाया गया है जिसे फुरसत के लम्हों में सुना जाना चाहिए । ~

Writer- Ritesh Ojha
Place- Delhi
Contact - aryanojha10@gmail.com

 

Listen to auto generated audio of this chapter
Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel