भागती दौड़ती हुई जिंदगी में कभी कभी एक ठिठकन काफी सुकून दे जाती है । जैसे लंबे वक्त से काम कर रही आंखो को बत्ती का गुल हो जाना मानो सौ वॉट की मुस्कान से भर जाता है । कुछ ऐसी ही ठिठकन कुछ ऐसी ही मुस्कुराहटों से भरी है लापता लेडीज। गोया तपते हुए रेगिस्तान में एक ठंडी बयार के मानिंद एक अलहदा मनोरंजन देती है “किरण राव” के निर्देशन में बुनी गई कहानी लापता लेडीज। जहां एनिमल ,गदर की हिंसा और भावोत्तेजक प्रदर्शन से इतर एक मासूम सी कहानी रची गई है ।
.
किरण राव ने एक महिला निर्देशक के तौर पर उन तमाम मुद्दों को उठाकर एक व्यंगात्मक प्रेम कहानी प्रस्तुत की है जिन मुद्दों से दो चार करने में मंझे हुए निर्माता और निर्देशक भी पसीने पसीने हो जाते हैं । .देश के दूर दराज के क्षेत्रों में ही वास्तविक नारी सशक्तिकरण को मापा जाना चाहिए और इसकी शुरुआत भी वही से ही की जानी चाहिए । घूंघट प्रथा पर तगड़ी मार कहानी की शुरुआत में ही कर दी गई है ,और फिल्म का मिजाज़ सेट कर दिया गया है जब दो नई दुल्हनें घूंघट में चेहरा छुपाए अपने अपने दूल्हे से बिछड़ जाती हैं । और फिर शुरू होती है दुल्हन की खोज ।.
.
इस मनोरंजक खोज में स्त्री संबंधित सभी प्रासंगिक समस्याओं को ना केवल स्पर्श किया जाता है बल्कि हल्के फुल्के अंदाज में उनका अलहदा समाधान भी सुझाया गया है । वही दूसरी दुल्हन के रूप में प्रतिभा रांटा उस आधुनिक औरत के किरदार में हैं जो सामाजिक रूढ़ियों और बने बनाए प्रतिमानों को तोड़कर अपने लिए नए आकाश चुनने के लिए लड़ रही होती है । .दीपक की बीवी फूल गांव देहात की वो भोली लड़की है जिसे चूल्हा चौका की ही सीख मात्र दी गई है और जिसे ससुराल में भी इसी एकमात्र गुण के साथ भेजा जाता है , लेकिन रेलवे स्टेशन पर वो अपनी “गॉडमदर” मंजू के सहयोग से इस सीख को ही हथियार बना लेती है । औरत का आत्मनिर्भर होना उसे कितना आत्मविश्वास और सुकून से भर देता है वो इससे रूबरू होती है ।और उसका ट्रेन में खोना उसे सत्य से मिलवा देता है जो शायद वो बंद दीवारों के अंदर शायद ही कभी जान पाती । कभी कभी गलत पते पर पहुंचना भी सही पते से बेहतर साबित होता है ।.
.
इस दिलचस्प कहानी को आज के तकरीबन बीस बाईस साल पहले के परिवेश में रचा गया है ,जब मोबाईल फोन ताजा ताजा ही अस्तित्व में आया था । बावजूद इसके पूरी फिल्म में आप बेतार ही बेहतर संचार पाते हैं । पूरी फिल्म में हर किरदार अपनी भूमिका को लेकर जहां चुस्त और मुस्तैद नज़र आता हैं वहीं अभिनेता रवि किशन का यह वास्तव में अभिनय का स्वर्णिम काल चल रहा है मानो । अभिनय रूपी पिच पर इन दिनों वो जहां और जिस तरफ भी बल्ला घुमा रहे हैं वो इनके खाते में स्कोर का अंबार ही जुटा रही है । “मामला लीगल है ” जैसी बेहतरीन वेब सीरीज के बाद ये उनका एक और कल्ट अभिनीत प्रस्तुति है जो आपको उनकी हर स्क्रीन प्रेजेंस के साथ ही गुदगुदी देने लगता है । .
.
फिल्मों के माध्यम से रुपहले पर्दे पर कठिन सवालों के जवाबों को ऐसे चुटीले अंदाज में खोजना और उसे प्रस्तुत कर देना वाकई आश्चर्य में डाल देता है । कभी कभी कभी गंभीरता का लिबास सुधारों के गंभीर कदम को उठने ही नही देता । तो फिर इन मौजू सवालों के जवाब इस अंदाज में सामने आते हैं कि हम हतप्रभ ही हो जाते हैं । कुल मिलाकर सिनेमा की विधा ऐसे हर रोमांचक प्रस्तुति से स्वयं को और समृद्ध पाती है । आप भी देखिए, निराश नहीं होंगे ,क्या पता इस तंद्राशमन से लापता हो रही किसी वनिता को किसी लेडीज़ को सही पता आप भी दिखा सके ~ ऋतेश ओझा