1. इस व्रत को परिवार का कोई भी सदस्य कर सकता है। यदि घर की स्त्रियाँ इस व्रत को करें तो अति उत्तम माना जाता है।लेकिन यदि परिवार में कोई विवाहित स्त्री ना हो तो कुँवारी कन्या भी इस व्रत को कर सकती है। यदि घर के पुरुष इस व्रत को करें तो अति उत्तम फल देनेवाला कहा जाता है।
2. यह व्रत प्रत्येक शुक्रवार को किया जाता है। इस व्रत को शुरु करने से पहले यह तय कर लें की आप कितने शुक्रवार तक यह व्रत करेंगे। ( जैसे -11,21, इत्यादि)। जब आप व्रत आरम्भ करें तभी यह संकल्प करें कि आप इस व्रत को 11 या 21 या और अधिक शुक्रवार तक करेंगे तथा व्रत समाप्त होने पर यथापूर्वक उद्यापन करेंगे।
3. व्रत के शुक्रवार को स्त्री रजस्वला हो या सूतकी हो अथवा यदि आप घर से बाहर हों तो उस शुक्रवार को व्रत ना करें। हमेशा व्रत अपने घर पर ही करें।
4. यह व्रत पूरी श्रद्धा और पवित्र भाव से करना चाहिए। बिनाभाव से या अप्रसन्न होकर यह व्रत नहीं करना चाहिए।
5.एक बार व्रत पूरा होने के बाद दोबारा से फिर मन्नत मान कर व्रत कर सकते हैं।
6. माता लक्ष्मी देवी के अनेक स्वरूप हैं। उनमें उनका 'धनलक्ष्मी' स्वरूप ही 'वैभवलक्ष्मी' है और माता लक्ष्मी को श्रीयंत्र अति प्रिय है। व्रत करते समय माता लक्ष्मी के विविध स्वरूप यथा श्रीगजलक्ष्मी, श्री अधिलक्ष्मी, श्री विजयलक्ष्मी, श्री ऐश्वर्यलक्ष्मी, श्री वीरलक्ष्मी, श्री धान्यलक्ष्मी एवं श्री संतानलक्ष्मी तथा श्रीयंत्र को प्रणाम करना चाहिए।
7. व्रत के दिन सुबह से ही 'जय माँ लक्ष्मी', 'जय माँ लक्ष्मी' का स्मरण मन ही मन करना चाहिए और माँ का पूरे भाव से ध्यान करना चाहिए।
8. शुक्रवार के दिन यदि आप घर से बाहर या यात्रा पर गये हों तो वह शुक्रवार छोड़कर उनके बाद के शुक्रवार को व्रत करना चाहिए अर्थात् व्रत अपने ही घर में करना चाहिए। कुल मिलाकर जितने शुक्रवार की मन्नत ली हो, उतने शुक्रवार पूरे करने चाहिए।
9. घर में सोना न हो तो चाँदी की चीज पूजा में रखनी चाहिए। अगर वह भी न हो तो सिक्का या रुपया रखना चाहिए।
10. व्रत पूरा होने पर कम से कम सात स्त्रियों को या अपनी सामर्थ्य अनुसार जैसे 11, 21, 51 या 101 स्त्रियों को वैभवलक्ष्मी व्रत की पुस्तक कुमकुम का तिलक करके भेंट के रूप में देनी चाहिए। जितनी ज्यादा पुस्तक आप देंगे उतनी माँ लक्ष्मी की ज्यादा कृपा होगी और माँ लक्ष्मी जी के इस अद्भुत व्रत का ज्यादा प्रचार होगा।
11. व्रत की विधि शुरु करते वक्त 'लक्ष्मी स्तवन' का एक बार पाठ करना चाहिए।
12. व्रत के दिन हो सके तो उपवास करना चाहिए और शाम को व्रत की विधि करके माँ का प्रसाद लेकर व्रत करना चाहिए। अगर न हो सके तो फलाहार या एक बार भोजन कर के शुक्रवार का व्रत रखना चाहिए। अगर व्रतधारी का शरीर बहुत कमजोर हो तो ही दो बार भोजन ले सकते हैं। सबसे महत्व की बात यही है कि व्रतधारी माँ लक्ष्मी जी पर पूरी-पूरी श्रद्धा और भावना रखे और 'मेरी मनोकामना माँ पूरी करेंगी ही', ऐसा दृढ़ विश्वास रखकर व्रत करे।