दोपहर की कड़ाके की धूप से व्याकुल होकर कुछ आराम पाने की इच्छा से दो आदमी एक नहर के किनारे, जिसके दोनों तरफ घने और गुंजान जंगली पेड़ों ने छाया कर रखी है, बैठकर आपस में धीरे-धीरे कुछ बातें कर रहे हैं। इनमें से एक तो बुड्ढा नकटा दारोगा है और दूसरी किस्मत से मुकाबला करने वाली कम्बख्त मायारानी जो इस अवस्था को पहुंचकर भी हिम्मत हारने की इच्छा नहीं करती। ये दोनों इन्द्रदेव के मकान से चुपचाप भाग निकले हैं और बड़े-बड़े मनसूबे गांठ रहे हैं। इनके साथ ही वे इन्द्रदेव को भी बिगाड़ने की तरकीब सोच रहे हैं, यह भी कोई आश्चर्य की बात नहीं है। बुरे मनुष्य जब किसी भले आदमी से मदद मांगने जाते हैं और बेचारा बुरे कामों का नतीजा सोचकर बुराई में उनका साथ देने से इन्कार करता है तो वे दुष्ट उसके भी दुश्मन हो जाते हैं।
मायारानी - क्या हर्ज है जरा मुझे बन्दोबस्त कर लेने दीजिए, फिर मैं इन्द्रदेव से समझे बिना न रहूंगी।
दारोगा - बेशक, मुझे भी इन्द्रदेव पर बड़ा ही क्रोध है। नालायक ने ऐसे नाजुक समय में साथ देने से इन्कार कर दिया। खैर, देखा जायगा, इस समय तो इस बात पर विचार करना चाहिए कि वीरेन्द्रसिंह के दुश्मन कौन-कौन हैं और उन लोगों को किस तरह अपना साथी बनाना चाहिए, क्योंकि हम लोगों का पहला काम यही है कि अपनी मण्डली को बढ़ावें।
मायारानी - बेशक, ऐसा ही है। अच्छा, आप उन लोगों का नाम तो जरा ले जायें जो हम लोगों का साथ दे सकते हैं और यह भी कह जायें कि इस समय वे लोग कहां हैं।
दारोगा - (सोचता हुआ) महाराज शिवदत्त, भीमसेन और उनके साथी एक, माधवी दो, दिग्विजयसिंह का लड़का कल्याणसिंह तीन, शेरअलीखां जिसकी लड़की को वीरेन्द्रसिंह ने कैद रखा है चार, और उसके पक्षपाती लोग जिनका कुछ हिसाब नहीं।
मायारानी - बेशक, इन लोगों का साथ हो जाने से हम लोग वीरेन्द्रसिंह और उनके पक्षपातियों को तहस-नहस कर सकते हैं और ये लोग खुशी से हमारा साथ देंगे भी, मगर अफसोस यह है कि शेरअलीखां को छोड़कर बाकी के सभी लोग कैद में हैं। हां, यह तो कहिए कि महाराज शिवदत्त को किसने गिरफ्तार किया था और अब वह कहां हैं?
दारोगा - मुझे ठीक-ठीक पता लग चुका है कि भूतनाथ ने 'रूहा' बनकर शिवदत्त को धोखा दिया और अब शिवदत्त कमलिनी के तालाब वाले मकान में कैद है, माधवी और मनोरमा भी उसी मकान में कैद हैं।
मायारानी - उस मकान में से उन लोगों को छुड़ाना जरा मुश्किल है, वह भी ऐसे समय में जब कि हमारे पास कोई ऐयार नहीं।
दारोगा - (यकायक कोई बात याद आने से चौंककर) हां, मैं यह पूछना तो भूल ही गया कि तुम्हारे ऐयार बिहारीसिंह और हरनामसिंह कहां हैं मालूम होता है कि तुम्हारी इस अवस्था का हाल उन लोगों को मालूम नहीं है। मगर नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। जमानिया में इतना फसाद मच जाना और तुम्हारा निकल भागना कोई साधारण बात नहीं है, जिसकी खबर तुम्हारे ऐयारों को न होती। शायद इसका कोई और सबब हो!
अब मायारानी इस सोच में पड़ गई कि दारोगा की बातों का क्या जवाब दिया जाय। उसने और सब हाल तो दारोगा से कह दिया था, मगर उन दोनों ऐयारों की जान लेने का हाल अब तक नहीं कहा था। उसने सोचा कि यदि दारोगा को यह मालूम हो जायगा कि मैंने दोनों ऐयारों को मार डाला तो उसे बड़ा ही रंज होगा, क्योंकि ऐयारों को मारना बहुत बुरा होता है। तिस पर अपने खास ऐयारों की जान लेना और सो भी बिना कसूर! लेकिन फिर क्या कहा जाय क्या उनके मारने का हाल ठीक-ठीक न कहकर कुछ बहाना कर देना उचित होगा नहीं, बहाना करने और छिपा जाने से काम नहीं चलेगा, अन्त में यह बात प्रकट हो ही जायगी, क्योंकि लीला को यह बात मालूम हो चुकी है और कम्बख्त लीला भी इस समय मेरा साथ छोड़कर अलग हो गई है। इसलिए आश्चर्य नहीं कि वह मेरा भंडा फोड़ दे और सभी के साथ बाबाजी को भी उन बातों का पता लग जाय। मगर नहीं, उस समय जो होगा देखा जायगा, अभी तो छिपाना ही उचित है।
मायारानी सिर झुकाये हुए इन बातों को सोच रही थी और दारोगा इस आश्चर्य में था कि मायारानी ने मेरी बात का जवाब क्यों नहीं दिया या यह क्या सोच रही है। आखिर दारोगा चुपचाप रह न सका और उसने पुनः मायारानी से कहा -
दारोगा - तुम क्या सोच रही हो, मेरी बात का जवाब क्यों नहीं देतीं?
मायारानी - मैं यही सोच रही हूं कि आपकी बात का क्या जवाब दूं जब कि मैं स्वयं नहीं जानती कि मेरे ऐयारों ने ऐसे समय में मेरा साथ क्यों छोड़ दिया और कहां चले गये!
दारोगा - अस्तु, मालूम हुआ कि उन दोनों ने स्वयं तुम्हारा साथ छोड़ दिया।
मायारानी - बेशक, ऐसा ही कहना चाहिए। अच्छा अब विशेष समय नष्ट न करना चाहिए। अब आप जल्दी यह सोचिए कि हम कहां जाकर ठहरें और क्या करें!
दारोगा - अब जहां तक मैं समझता हूं, यही उचित जान पड़ता है कि शेरअलीखां के पास चलें और उससे मदद लें। यह तो सब कोई जानते हैं कि शेरअलीखां बड़ा जबर्दस्त लड़ाका है, मगर उसके पास दौलत नहीं है।
मायारानी - ठीक है, मगर जब मैं दौलत से उसका घर भर दूंगी तो वह बहुत ही खुश होगा और एक जबर्दस्त फौज तैयार करके हमारा साथ देगा। मैं आपसे कह चुकी हूं कि इस अवस्था में भी दौलत की मुझे कमी नहीं है।
दारोगा - हां, मुझे याद है, तुमने शिवगढ़ी के बारे में कहा था, अच्छा तो अब विलम्ब करने की आवश्यकता ही क्या है (चौंककर) हैं, यह क्या! (हाथ का इशारा करके) वह कौन है जो सामने की झाड़ी में से निकलकर इसी तरफ आ रहा है! शिवदत्त की तरह मालूम पड़ता है! (कुछ रुककर) बेशक, शिवदत्त ही तो है! हां देखो तो, वह अकेला नहीं है, उसके पीछे उसी झाड़ी में से और भी कई आदमी निकल रहे हैं।
मायारानी ने भी चौंककर उस तरफ देखा और हंसती हुई उठ खड़ी हुई।
(दसवां भाग समाप्त)