बुद्ध के जन्म के पह्ले भारत १६ जनपदो मे बंटा हुवा था। इसकी जानकारी हमे बौद्धग्रंथ अंगुत्तर निकाय से मिलती है। अंग, मगध, काशी, वत्श, वज्जि, कोसल, अवंति, मल्ल, पंचाल, चेदि, कुरु, मत्स्य, कम्बोज, शूरसेन, अश्माक और गांधार।

इन सभी जनपदो मे सर्वाधिक शक्तिशाली जनपद मगध था। प्राचीन मगध के इतिहास के बिना भारत का इतिहास पूर्ण नहीं माना जा सकता। मगध का सर्वप्रथम उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है। अभियान चिन्तामणि के अनुसार मगध को कीकट कहा गया है। मगध बुद्धकालीन समय में एक शक्तिशाली राजतन्त्रों में एक था। यह दक्षिणी बिहार में स्थित था जो कालान्तर में उत्तर भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली महाजनपद बन गया। यह गौरवमयी इतिहास और राजनीतिक एवं धार्मिकता का विश्‍व केन्द्र बन गया।

मगध, वही जहाँ सिता को खोजने शुग्रीव गये थे. वही मगध जिस पर आक्रमड़ कर पांडू ने अभिमानीत दिर्ग की हत्या की। महाभारत काल में मगध और प्रकश मे आया जब ब्रहद्रथ का पराक्रमी पूत्र जरासंध राजा बना और उसे हराने के लिये श्रीकृष्ण को भी छ्ल का सहारा लेना पडा और भीम के हाँथो जीसकी हत्या हुई। ब्रहद्रथ की अंतिम पिढी का शासक रिपुन्जय की हत्या उसके ही मंत्री पूलिक ने की। पूलिक का पूत्र प्रद्युप गद्दी पर बैठा। प्रद्युप वंश के पांच शासको के बाद ईशा के ५२८ वर्ष पूर्व मगध के उत्थान की शुरुवात तब हुई जब बिंबीसार मगध के राजसिंघासन पर आरुढ हूवा। अंग प्रदेश के विजय के बाद बिंबीसार ने जो नीव डाली थी, उसकी सफलतापूर्वक शासन तंत्र उसके पूत्र अजातशत्रू ने अपने हाँथ मे ली।

एक तरफ जहाँ राजनैतीक एवम आर्थीक उत्थान मगध मे थी तो दूसरी ओर अध्यात्म का प्रकाश भी जनमानस के जीवन मे प्रकाशमान होने लगा था। धार्मिक जड्ता की जो काली घटा ने जनमानस के मन मस्तिश्क पर छाया था उसे प्रकशमान करने के लिये दो महान आत्माओ का उदय हो चुका था. इस नवजागरड़ को लाये थे भगवान महावीर और तथागत बूद्ध। मगध ही वह भूमी थी जो भगवान महावीर और तथागत बूद्ध की कर्मभुमी बनी। सत्य का अनादी प्रवाह अनादी की ओर बह रहा था। बढ रहे थे महावीर और बूद्ध। भारत फिर एक बैभवशाली नगर का निर्माड़ देख रहा था। आजातशत्रू ने यूद्ध के लिये पाटलीग्राम मे अपने मंत्री वर्साकार के द्वारा एक दूर्ग की निर्माड़ करवायी।

उस दिन वर्षाकार को देखकर तथागत ने अपने शिष्य आनंद से पुछा, "आनंद वे कौन हैं? " आनंद ने कह, प्रभू वे महाराज अजातशत्रू के मंत्री वर्साकार हैं। यूद्ध करने के लिये वे दूर्ग की नींव डाल रहे हैं। तभी भगवान बूद्ध ने कहा था, शिघ्र हि यहाँ एक बैभवशाली नगर बसेगा, परंतू उसे अग्नी, जल और कलह से भय रहेगा और तथागत की भविष्यवाड़ी सच हुई। अजातशत्रु के पुत्र उदयन ने गंगा और सोन के तट पर पाटलीपुत्र नगर की स्थापना की। वास्तुकला मे निपूड़ महापंडीत महागोबिंद द्वारा निर्मित मगध की राजधानी राजग्रिह को त्याग कर पाट्लीपूत्र को मगध की नई राजधानी बनाया। कालांतर मे इसी पाटलीपूत्र के सिंघासन पर आरुढ हुवे नंदबंश के प्रथम शासक महापद्यनन्द। महापद्यनन्द के शासन में पाटलीपूत्र एक विशाल साम्राज्य बना। इसी वंश का अंतिम शासक धनानन्द बना और पाटलीपूत्र कि थाती उसके हाँथ मे आई। ३२२ ई. पू. में चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरू चाणक्य की सहायता से धनानन्द की हत्या कर मौर्य वंश की नींव डाली थी। मौर्य वंश मे हि इतीहास के महान शासको मे गिने जाने वाले सम्राट असोक का प्रदूभाव हुवा। अभिलेखों में उसे देवाना प्रिय एवं राजा आदि उपाधियों से सम्बोधित किया गया है। मगध यानी बिहार ऐसे कई राजाओ, राज्यो और उंनके राजधानियो के कहानियो से भरा पड़ा है। हर एक राजबंश अपने काल मे पूरे संसार मे इस तरह उदयमान था जिस तरह सुर्य पुरे आभामंड्ल को प्रकाशमान किये रहता है। मगर कालांतर मे पूरे संसार को उदयमान करने वाला बिहार पीछ्ड़्ने लगा, आईये हम एक बार फिर अपने गौरवमयी इतिहास को याद करते हैं।

बिहार में आर्यीकरण १००० ई. पू. से ६०० ई. पू काल से प्रारम्भ हुआ। यह काल उत्तर वैदिक काल माना जाता है। बिहार का प्राचीनतम वर्णन अथर्ववेद एवं पंचविश ब्राह्मण में मिलता है। इन ग्रन्थों में बिहार के लिए ‘ब्रात्य’ शब्द का उल्लेख है। ऐसा अनुमान किया जाता है कि अथर्ववेद की रचना के समय में ही आर्यों ने बिहार के क्षेत्र में प्रवेश किया। ८०० ई. पू. रचित शतपथ ब्राह्मण में गांगेय घाटी के क्षेत्र में आर्यों द्वारा जंगलों को जलाकर और काटकर साफ करने की जानकारी मिलती है। ऋग्वेद में बिहार को ‘कीकट’ कहा गया है। ऋग्वेद में कीकट क्षेत्र के अमित्र शासक प्रेमगन्द की चर्चा आती है, जबकि आर्यों के सांस्कृतिक वर्चस्व का प्रारंभ ब्राह्मण ग्रन्थ की रचना के समय हुआ। शतपथ ब्राह्मण, पंचविश ब्राह्मण, गौपथ ब्राह्मण, ऐतरेय आरण्यक, कौशितकी आरण्यक, सांख्यायन आरण्यक, वाजसनेयी संहिता, महाभारत इत्यादि में वर्णित घटनाओं से उत्तर वैदिककालीन बिहार की जानकारी मिलती है। बिहार के सन्दर्भ में बेहतर जानकारी पुराण, रामायण तथा महाभारत से ही मिल जाती है। ग्रन्थों के उपलब्ध प्रमाणों के अनुसार आर्यों ने मगध क्षेत्र में बसने के बाद अंग क्षेत्र में भी आर्यों की संस्कृति का विस्तार किया। वाराह पुराण के अनुसार कीकट को एक अपवित्र प्रदेश कहा गया है, जबकि वायु पुराण, पद्म पुराण में गया, राजगीर, पनपन आदि को पवित्र स्थानों की श्रेणी में रखा गया है। वायु पुराण में गया क्षेत्र को “असुरों का राज" कहा गया है।

आर्यों के विदेह क्षेत्र में बसने की चर्चा शतपथ ब्राह्मण में की गई है। इसमें विदेह माधव द्वारा अपने पुरोहित गौतम राहूगण के साथ अग्नि का पीछा करते हुए सदानीरा नदी तक पहुँचने का वर्णन है। इस क्रम में अग्नि ने सरस्वती नदी से सदा सदानीरा तक जंगल को काट डाला जिससे बने खाली क्षेत्र में आर्यों को बसने में सहायता मिली। वाल्मीकि रामायण में मलद और करूणा शब्द का उल्लेख बक्सर के लिए किया गया है जहाँ ताड़िकाक्षसी का वध हुआ था।

मगध महाजनपद की सीमा उत्तर में गंगा से दक्षिण में विन्ध्य पर्वत तक, पूर्व में चम्पा से पश्‍चिम में सोन नदी तक विस्तृत थीं। मगध की प्राचीन राजधानी राजगृह थी। यह पाँच पहाड़ियों से घिरा नगर था। कालान्तर में मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में स्थापित हुई। मगध राज्य में तत्कालीन शक्तिशाली राज्य कौशल, वत्स व अवन्ति को अपने जनपद में मिला लिया। इस प्रकार मगध का विस्तार अखण्ड भारत के रूप में हो गया और प्राचीन मगध का इतिहास ही भारत का इतिहास बना।

प्राचीन बिहार में (बुद्धकालीन समय में) गंगा घाटी में लगभग १० गणराज्यों का उदय हुआ। कपिलवस्तु के शाक्य, सुमार पर्वत के भाग, केसपुत्र के कालाम, रामग्राम के कोलिय, कुशीमारा के मल्ल, पावा के मल्ल, पिप्पलिवन के मारिय, आयकल्प के बुलि, वैशाली के लिच्छवि, मिथिला के विदेह।

प्राचीन काल में आर्यजन अपने गणराज्य का नामकरण राजन्य वर्ग के किसी विशिष्ट व्यक्‍ति के नाम पर किया करते थे जिसे विदेह कहा गया। ये जन का नाम था। कालान्तर में विदेध ही विदेह हो गया। विदेह राजवंश की शुरुआत इश्‍वाकु के पुत्र निमि विदेह के मानी जाती है। यह सूर्यवंशी थे। इसी वंश का दूसरा राजा मिथि जनक विदेह ने मिथिलांचल की स्थापना की। इस वंश के २५वें राजा सिरध्वज जनक थे जो कौशल के राजा दशरथ के समकालीन थे। राजा सिरध्वज जनक के द्वारा गोद ली गई पुत्री सीता का विवाह दशरथ पुत्र राम से हुआ।विदेह की राजधानी मिथिला थी। इस वंश के करल जनक अन्तिम राजा थे। मिथिला के विदेह भागलपुर तथा दरभंगा जिलों के भू-भाग में स्थित हैं। मगध के राजा महापद्मनन्द ने विदेह राजवंश के अन्तिम राजा करलजनक को पराजित कर मगध में मिला लिया। उल्लेखनीय है कि विदेह राजतन्त्र से बदलकर गणतन्त्र हो गया था। यही बाद में लिच्छवी संघ के नाम से विख्यात हुआ।

सारी शक्ति केन्द्रीय समिति या संस्थागार में निहित थी। आधुनिक प्रजातन्त्र संसद के ही समान थी। इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्राचीन बिहार के मुख्य जनपद मगध, अंग, वैशाली और मिथिला भारतीय संस्कृति और सभ्यता की विशिष्ट आधारशिला हैं।

मगध प्राचीनकाल से ही राजनीतिक उत्थान, पतन एवं सामाजिक-धार्मिक जागृति का केन्द्र बिन्दु रहा है। मगध बुद्ध के समकालीन एक शक्तिशाली व संगठित राजतंत्र था। कालान्तर में मगध का उत्तरोत्तर विकास होता गया और मगध का इतिहास सम्पूर्ण भारतवर्ष का इतिहास बन गया।

मगध साम्राज्य का उत्कर्ष करने में निम्न वंश का महत्वपूर्ण स्थान रहा है-

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