बहावी आन्दोलन मुस्लिम समाज को भ्रष्ट धार्मिक परम्पराओं से मुक्त कराना था। पहली बार पटना आने पर सैयद अहमद ने मुहम्मद हुसैन को अपना मुख्य प्रतिनिधि नियुक्त किया। १८२१ ई. में उन्होंने चार खलीफा को नियुक्त किया। वे हैं- मुहम्मद हुसैन, विलायत अली, इनायत अली और फरहत अली। सैयद अहमद बरेहवी ने पंजाब में सिक्खों को और बंगाल में अंग्रेजों को अपदस्थ कर मुस्लिम शक्ति की पुनर्स्थापना को प्रेरित किया। बहावियों को शस्त्र धारण करने के लिए प्रशिक्षित किया गया।
१८२८ ई. से १८६८ ई. तक बंगाल में फराजी आन्दोलन हुआ जिसके नेता हाजी शतीयतुल्लाह थे। विलायत अली ने भारत के उत्तर-पश्चिम भाग में अंग्रेजी हुकूमत का विरोध किया। १८३१ ई. में सिक्खों के खिलाफ अभियान में सैयद अहमद की मृत्यु हो गई। बिहार में बहावी आन्दोलन १८५७ ई. तक सक्रिय रहा और १८६३ ई. में उसका पूर्णतः दमन हो सका। बहावी आन्दोलन स्वरूप सम्प्रदाय था परन्तु हिन्दुओं ने कभी इसका विरोध नहीं किया। १८६५ ई. में अनेक बहावियों को सक्रिय आन्दोलन का आरोप लगाकर अंग्रेजों ने जेल में डाल दिया।
नोनिया विद्रोह
हाजीपुर, तिरहुत, सारण और पूर्णिया में बिहार में शोरा उत्पादन का प्रमुख केन्द्र था। शोरा का उपयोग बारूद बनाने में किया जाता था। शोरे के इकट्ठे करने एवं तैयार करने का काम नोनिया करते थे। कम्पनी राज्य होने के बाद शोरे की इजारेदारी अधिक थी फलतः नोनिया चोरी एवं गुप्त रूप से शोरे का व्यापार करने लगे फलतः इससे जुड़े व्यापारियों को अंग्रेजी क्रूरता का शिकार होना पड़ा। इसी कारण से नोनिया के अंग्रेजी राज्य के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। यह विद्रोह १७७०-१८०० ई. के बीच हुआ था।
लोटा विद्रोह
यह विद्रोह १८५६ ई. में हुआ था। यह विद्रोह मुजफ्फरपुर जिले में स्थित कैदियों ने किया था। यहाँ के प्रत्येक कैदियों को पीतल का लोटा दिया जाता था। सरकार ने इसके स्थान पर मिट्टी के बर्तन दिये। कैदियों ने इसका कड़ा विरोध किया। इस विद्रोह को लोटा विद्रोह कहा जाता है।
छोटा नागपुर का विद्रोह
१७६७ ई. में छोटा नागपुर (झारखण्ड) के आदिवासियों ने ब्रिटिश सेना का धनुष-बाण और कुल्हाड़ी से हिंसक विरोध शुरू किया था। १७७३ इ. में घाटशिला में भयंकर ब्रिटिश विरोधी संघर्ष शुरू हुआ। आदिवासियों ने स्थायी बन्दोबस्त (१७९३ ई.) के तहत जमीन की पैदाइश एवं नया जमाबन्दी का घोर विद्रोह शुरू हुआ।
तमाड़ विद्रोह
(१७८९-९४ ई.)- यह विद्रोह आदिवासियों द्वारा चलाया गया था। छोटा नागपुर के उराँव जनजाति द्वारा जमींदारों के शोषण के खिलाफ विद्रोह शुरू किया।
हो विद्रोह
यह विद्रोह १८२० ई. के मध्य हुआ था। यह विद्रोह सिंहभूम (झारखंड) पर शुरू हुआ था। वहाँ के राजा जगन्नाथ सिंह के सम्पर्क में आये। हो जनजाति ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया।
कोल विद्रोह
यह विद्रोह रांची, सिंहभूमि, हजारीबाग, मानभूमि में प्रारम्भ हुआ। कोल विद्रोह में मुण्डा, हो, उरॉव, खरवार एवं चेर जनजातियों के लोगों ने मुख्य रूप से भाग लिया था। इस विद्रोह की अवधि १८३१-३२ ई. में थी। कोल विद्रोह का प्रमुख कारण आदिवासियों की जमीन पर गैर-आदिवासियों द्वारा अधिकार किया जाना तात्कालिक कारण था- छोटा नागपुर के भाई हरनाथ शाही द्वारा इनकी जमीन को छीनकर अपने प्रिय लोगों को सौंप दिया जाना। इस विद्रोह के प्रमुख नेता बुद्धो भगत, सिंगराय एवं सुगी था। इस विद्रोह में करीब ८०० से लेकर १००० लोग मरे गये थे। १८३२ ई. में अंग्रेजी सेना के समक्ष विद्रोहियों के समर्पण के साथ समाप्त हो गया।
भूमिज विद्रोह
१८३२ ई. में यह विद्रोह प्रारम्भ हो गया था। वीरभूमि के जमींदारों पर राजस्व के कर अदायगी को बढ़ा दिया गया था। किसान एवं साहूकार लोग कर्ज से दबे हुए थे। ऐसे हालात में वे सभी लोग कर समाप्ति चाहते थे फलतः गंगा नारायण के नेतृत्व में विद्रोह हुआ।
चेर विद्रोह
यह विद्रोह १८०० ई. में शुरू हुआ था। १७७६ ई. समयावधि में अंग्रेज पलामू के चेर शासक छत्रपति राय से दुर्ग की माँग की। छत्रपति राय ने दुर्ग समर्पण से इंकार कर दिया। फलतः १७७७ ई. में चेर और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ और दुर्ग पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया। बाद में भूषण सिंह ने चेरों का नेतृत्व कर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया।
संथाल विद्रोह
यह विद्रोह बिहार राज्य के भागलपुर से राजमहल तक फैला था। संथाल विद्रोह का नेतृत्व सिद्धू और कान्हू ने किया। सिद्धू-कान्हू ने घोषित कर रखा था कि आजादी पाने के लिए ठाकुर जी (भगवान) ने हमें हथियार उठाने का आदेश दिया है। अंग्रेजों ने इनकी कार्यवाहियों के विरुद्ध मार्शल लॉ लगा दिया और विद्रोहियों के बन्दी के लिए दस हजार का इनाम घोषित कर दिया। यह विद्रोह १८५५-५६ ई. में हुआ था।
पहाड़िया विद्रोह
यह विद्रोह राजमहल की पहाड़ियों में स्थित जनजातियों का था। इनके क्षेत्र को अंग्रेजों ने दामनी कोल घोषित कर रखा था। अंग्रेजों द्वारा आदिवासियों (जनजातियों) के क्षेत्रों में प्रवेश करना व उनकी परम्पराओं में हस्तक्षेप करने के विरुद्ध किया। यह विद्रोह १७९५-१८६० ई. के मध्य हुआ था।
खरवार विद्रोह
यह विद्रोह भू-राजस्व बन्दोबस्त व्यवस्था के विरोध में किया गया था। यह विद्रोह मध्य प्रदेश व बिहार में उभरा था।
सरदारी लड़ाई
१८६० ई. में मुण्डा एवं उरॉव जनजाति के लोगों ने जमींदरों के शोषण और पुलिस के अत्याचार का विरोध करने के लिए संवैधानिक संघर्ष प्रारम्भ किया इसे सरदारी लड़ाई कहा जाता है। यह संघर्ष रांची से प्रारम्भ होकर सिंहभूम तक फैल गया। लगभग ३० वर्षों तक चलता रहा। बाद में इसकी असफलता की प्रतिक्रिया में भगीरथ मांझी के नेतृत्व में खरवार आन्दोलन संथालों द्वारा प्रारम्भ किया गया, लेकिन यह प्रभावहीन हो जायेगा।