जब १२९० ई. जलालुद्दीन खिलजी दिल्ली का सुल्तान बना और खिलजी वंश की स्थापना की तब बंगाल में बुगरा खाँकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र रुकनुद्दीन कैकाउस शासक बना हुआ था। उसके उत्तर और दक्षिण बिहार के भागों पर बंगाल का नियन्त्रण था।

१२९६ ई. में अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का सुल्तान बना और १२९७ ई. में शेख मुहम्मद इस्माइल को बिहार के दरभंगा में भेजा वह राजा चक्र सिंह द्वारा पराजित हो गया परन्तु इस्माइल के दूसरे आक्रमण में राजा को पराजित कर बन्दी बना लिया तथा दोनों ने परस्पर समझौता कर लिया। उसने अलाउद्दीन के साथ मधुर सम्बन्ध होने के कारण रणथम्भौर (१२९९-१३०० ई.) में अभियान में भाग लिया।

रुकनुद्दीन कैकाउस की मृत्यु की बाद बिहार पर लखनौती का नियन्त्रण समाप्त हो गया। फिरोज ऐतगीन ने सुल्तान शमसुद्दीन फिरोजशाह के नाम से एक राजवंश बनाया १३०५-१५ ई. तक हातिम खाँ बिहार का गवर्नर बना रहा। इस प्रकार बिहार पर खिलजी राजवंश का प्रभाव कम और सीमित क्षेत्रों पर रहा। (जो अवध का गवर्नर था) इवाज को गिरफ्तार कर हत्या कर दी। अवध, बिहार और लखनौती को मिलाकर एक कर दिया। १२२७-२९ ई. तक उसने शासन किया। १२२९ ई. में उसकी मृत्यु के बाद दौलतशाह खिलजी ने पुनः विद्रोह कर दिया, परन्तु इल्तुतमिश ने पुनः लखनौती जाकर वल्ख खिलजी को पराजित कर दिया तथा बिहार और बंगाल को पुनः अलग-अलग कर दिया। उसने अलालुद्दीन जानी को बंगाल का गवर्नर एवं सैफूद्दीन ऐबक को बिहार का राज्यपाल नियुक्‍त किया बाद में तुगान खाँ बिहार का राज्यपाल बना। उसके उत्तराधिकारियों में क्रमशः रुकनुद्दीन फिरोजशाह, रजिया मुइज्जुद्दीन, ब्रह्यराय शाह एवं अलाउद्दीन मसूद शाह आदि शासकों ने लखनौती एवं बिहार के तथा दिल्ली के प्रति नाममात्र के सम्बन्ध बनाये रखे।

जब दिल्ली का सुल्तान बलबन बना तब बिहार को पुनः बंगाल से अलग कर (गया क्षेत्र) दिल्ली के अधीन कर दिया, जिसकी स्पष्टता हमें वनराज राजा की गया प्रशस्ति से मिलती है। लखनौती शासक जो स्वतन्त्र हो गये थे उन्होने बलबन की अधीनता भी स्वीकार की। २७९-८० ई. तक तीन विद्रोह हुए। तीनों विद्रोह को दबाने के लिए तीन अभियान भेजे जो असफल रहे। अन्त में स्वयं बलबन विद्रोही के खिलाफ अभियान चलकर विद्रोही को मार डाला। उसने तुगरिक खाँ को मारकर अपने छोटे पुत्र बुगरा खाँ को राजकीय सम्मान दिया।

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