यह एक उत्तर भारत की कहानी है , जहा का राजा बहुत परेशान था उसके बेटे के व्यवहार के कारन ! उसका लड़का युवक होने वाला था लेकिन उसके व्यवहार में बिलकुल शालीनता नहीं थी | वह नौकरो से गाली गलोच करता था | किसी से भी अच्छे से व्यवहार नहीं करता | किसी के अहसान की कीमत नहीं समझता था | यहाँ तक के मंत्री लोगों का अपमान करता था | राजा ने उसे बहुत समझाया लेकिन वो नहीं माना | बाद में राजा परेशान रहने लगा | राजा को डर था के उसके लडके का आचरण न केवल उसके व्यक्तित्व को ख़राब करेगा लेकिन राजा बनने के बाद लोग उसे गद्दी से उतार फेकेंगे |
प्रवचन करते करते भगवान् बुद्ध एक बार एक शहर रुके हुवे थे | तब एक मंत्री ने राजा से कहा के भगवान बुद्ध पास शहर में रुके हुवे है | अगर भगवान् बुद्ध राजी हुवे तो शायद युवराज का आचरण सुधर सकता है | तब राजा ने अनुमति देकर मंत्री ने भगवान् बुद्ध को राजमहल बुलाया |
भगवान् बुद्ध का प्रभावी व्यक्तित्व और सुन्दर आचरण से युवराज शांत हुवा | भगवान् बुद्ध के मधुर वाणी से युवराज को बुद्ध अच्छे लगने लगे | भगवान् बुद्ध युवराज से बाते करते करते सीढ़ियों से उतर रहे थे तब भगवान् बुद्ध को एक विषैला पौधा नजर आया , जब भगवान् बुद्ध उसे छूने वाले थे तब युवराज कह पड़ा | "भगवान् रुक जाए वह विषैला पौधा है उसे नहीं छुवे , और फिर वह पौधा उखेड़ के फेक दिया "| तब भगवान् बुद्ध ने उसे पूछा के उसने वह पौधा तोड़कर क्यों फेका |
तब युवराज ने कहा के वह विषैला पौधा बड़ा होकर बहुत विषैला होगा | तब उससे निजाद पाना बहुत मुश्किल होगा | तब भगवान बुद्ध ने कहा हमें भी अपने गलत आचरण और व्यवहार को समय रहते ही ठीक करना चाहिए | और बुरे संस्कारो को उखाड़ देना चाहिए ताकि समय रहते फायदा हो सके | तब युवराज समझ गया और भगवान् बुद्ध को वचन दिया के वह अब उसका गलत आचरण सुधरेगा और अच्छा संस्कारी जीवन जियेगा |