<p dir="ltr">औरों कि खातिर यूं <br>
तन्हां अपनो में,<br>
रोता रहा हूँ मैं।<br>
औरों को जोड़ते-जोड़ते<br>
बस,खुद टूटता गया हूं मैं।<br>
चाहे होली हो या दशहरा,<br>
या फिर दिवाली हो,<br>
तो क्या।<br>
रातों को तन्हां अक्सर,<br>
आसूँ बहाता रहा हूँ मैं।<br>
औरों की खातिर यू्ं ......<br>
माना था,जिसको अपना<br>
हो न सका वो अपना।<br>
दिल का अरमां अक्सर टूटा,<br>
पड़ मुझे,कोई गम नहीं।<br>
अब तो<br>
अपनों का भी ना रहा,<br>
मुझपे यकीं।<br>
खिलाई है जीने की कसमें,<br>
इसलिए जिन्दा,<br>
रहा हूं मैं।<br>
औरों की खातिर यू्ं ......<br>
कितना गहरा जख्म,<br>
है दिल में,<br>
कैसे दिखाऊँ उसे।<br>
जब कभी,<br>
लगती है उसको,<br>
तो क्यों?टिस<br>
उठता है मुझे।<br>
कहते हैं लोग यहां,<br>
शराबी हूँ मैं बड़ा।<br>
पड़,क्या पता उन्हें?<br>
जख्म भरने के लिए<br>
पीता रहा हूँ मैं।<br>
औरों की खातिर यू्ं ......<br>
कौन है?<br>
जिसको सुनाऊं दिले हाल अपना।<br>
अब तो<br>
सब कुछ लगता बस,<br>
था एक सपना।<br>
बरसात का मौसम<br>
पड़?<br>
लगी है आग,<br>
सीने में इतना।<br>
चिंगारी,<br>
भड़कती है और अंगारों पे,<br>
जलता रहा हूँ मैं।<br>
औरों की खातिर यू्ं ......<br>
शायद <br>
यही करम अपना,<br>
चलना,<br>
बस काटों पे चलना।<br>
नही है कोई पूछने वाला,<br>
क्या हुआ<br>
कैसे हुआ।<br>
दिल टूटने कि आवाज,<br>
होती नही<br>
शायद इसलिए,<br>
टूट कर<br>
बिखरता गया हूँ मैं।<br>
औरों की खातिर यू्ं ......<br>
नही है,<br>
कुछ गिला किसी से।<br>
ना शिकवा,<br>
बचा है अब।<br>
खैर,<br>
क्या कहूँ किसी से,<br>
दिल नादान है जब।<br>
हुई हो भूल गर कोई तो,<br>
माफ करना यारों।<br>
खुशी के मेहफिल मे,<br>
अक्सर आसूँ ,<br>
बहाता रहा हूँ मैं।<br>
औरों की खातिर यू्ं ......<br>
क्यों कहा,कैसे कहा,<br>
ये मुझे पता नहीं।<br>
कब कहा,क्या कहा,<br>
ये मुझे पता नही।<br>
मैं तो,<br>
बस हकिकत वयां,<br>
किया था उसे।<br>
तब से चूप रहने का,<br>
बहाना ढ़ूंढ़ता रहा हूँ मैं।<br>
औरों की खातिर यू्ं ......<br>
- गौतम गोविन्द</p>
तन्हां अपनो में,<br>
रोता रहा हूँ मैं।<br>
औरों को जोड़ते-जोड़ते<br>
बस,खुद टूटता गया हूं मैं।<br>
चाहे होली हो या दशहरा,<br>
या फिर दिवाली हो,<br>
तो क्या।<br>
रातों को तन्हां अक्सर,<br>
आसूँ बहाता रहा हूँ मैं।<br>
औरों की खातिर यू्ं ......<br>
माना था,जिसको अपना<br>
हो न सका वो अपना।<br>
दिल का अरमां अक्सर टूटा,<br>
पड़ मुझे,कोई गम नहीं।<br>
अब तो<br>
अपनों का भी ना रहा,<br>
मुझपे यकीं।<br>
खिलाई है जीने की कसमें,<br>
इसलिए जिन्दा,<br>
रहा हूं मैं।<br>
औरों की खातिर यू्ं ......<br>
कितना गहरा जख्म,<br>
है दिल में,<br>
कैसे दिखाऊँ उसे।<br>
जब कभी,<br>
लगती है उसको,<br>
तो क्यों?टिस<br>
उठता है मुझे।<br>
कहते हैं लोग यहां,<br>
शराबी हूँ मैं बड़ा।<br>
पड़,क्या पता उन्हें?<br>
जख्म भरने के लिए<br>
पीता रहा हूँ मैं।<br>
औरों की खातिर यू्ं ......<br>
कौन है?<br>
जिसको सुनाऊं दिले हाल अपना।<br>
अब तो<br>
सब कुछ लगता बस,<br>
था एक सपना।<br>
बरसात का मौसम<br>
पड़?<br>
लगी है आग,<br>
सीने में इतना।<br>
चिंगारी,<br>
भड़कती है और अंगारों पे,<br>
जलता रहा हूँ मैं।<br>
औरों की खातिर यू्ं ......<br>
शायद <br>
यही करम अपना,<br>
चलना,<br>
बस काटों पे चलना।<br>
नही है कोई पूछने वाला,<br>
क्या हुआ<br>
कैसे हुआ।<br>
दिल टूटने कि आवाज,<br>
होती नही<br>
शायद इसलिए,<br>
टूट कर<br>
बिखरता गया हूँ मैं।<br>
औरों की खातिर यू्ं ......<br>
नही है,<br>
कुछ गिला किसी से।<br>
ना शिकवा,<br>
बचा है अब।<br>
खैर,<br>
क्या कहूँ किसी से,<br>
दिल नादान है जब।<br>
हुई हो भूल गर कोई तो,<br>
माफ करना यारों।<br>
खुशी के मेहफिल मे,<br>
अक्सर आसूँ ,<br>
बहाता रहा हूँ मैं।<br>
औरों की खातिर यू्ं ......<br>
क्यों कहा,कैसे कहा,<br>
ये मुझे पता नहीं।<br>
कब कहा,क्या कहा,<br>
ये मुझे पता नही।<br>
मैं तो,<br>
बस हकिकत वयां,<br>
किया था उसे।<br>
तब से चूप रहने का,<br>
बहाना ढ़ूंढ़ता रहा हूँ मैं।<br>
औरों की खातिर यू्ं ......<br>
- गौतम गोविन्द</p>