दिन अनुमान दो घड़ी के चढ़ चुका होगा जब राजा गोपालसिंह दो आदमियों को साथ लिये हुए धीरे-धीरे आते दिखाई पड़े। वे दोनों भैरोसिंह और इन्द्रदेव थे और पैदल थे। जब तीनों उस ठिकाने पहुंच गये जहां राजा साहब के रथ और सवार लोग थे तब राजा साहब ने अपना घोड़ा छोड़ दिया और उस पर भैरोसिंह को सवार होने के लिए कहा तथा और सवारों को भी घोड़ों पर सवार हो जाने के लिए इशारा किया। इसके बाद स्वयं एक रथ पर सवार हो गये और इन्द्रदेव को भी उसी पर अपने साथ बैठा लिया, बाकी तीन रथ खाली ही रह गये। सवारी धीरे-धीरे जमानिया की तरफ रवाना हुई और फौजी सवार खूबसूरती के साथ राजा साहब को घेरे हुए धीरे-धीरे जैसा कि रथ जा रहा था जाने लगे। भैरोसिंह अपना घोड़ा बढ़ाकर नकली रामदीन के पास चला गया जो उसी पंचकल्यान घोड़ी पर सवार था और उसके साथ-साथ जाने लगा। यह बात लीला को बहुत बुरी मालूम हुई क्योंकि वह राजा वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों से बहुत डरती थी। थोड़ी देर चुप रहने के बाद वह बोली –
लीला - (भैरो से) आपने राजा साहब का साथ क्यों छोड़ दिया?
भैरो - (हंसकर) तुम्हारा साथ करने के लिये, क्योंकि मैं अपने दोस्त रामदीन को अकेला नहीं छोड़ सकता।
लीला - और जब मुझे राजा साहब ने अकेले जमानिया भेजा था तब आप कहां डूब गये थे?
भैरो - तब भी मैं तुम्हारे साथ था मगर तुम्हारी नजरों से छिपा हुआ था।
लीला - (डरकर, मगर अपने को सम्हालकर) परसों तुम कहां थे कल कहां थे और आज सबेरा होने के पहिले तक कहां गायब थे क्यों झूठी बातें बना रहे हो?
भैरो - परसों भी, कल भी और आज भर भी मैं तुम्हारे साथ ही था मगर तुम्हारी नजरों से छिपा हुआ था, हां जब दो घण्टे रात बाकी थी तब मैंने तुम्हारा साथ छोड़ दिया और राजा साहब से जा मिला। अब मैं फिर तुम्हारे साथ जा रहा हूं क्योंकि राजा साहब का ऐसा ही हुक्म है। (हंसकर) क्योंकि राजा साहब ने सुना है कि तुम्हारा इरादा जमानिया पहुंचने के पहिले ही भाग जाने का है!
लीला - (अपने उछलते कलेजे को रोककर) यह उनसे किसने कहा?
भैरो - मैंने।
लीला - और तुम्हें किसने खबर दी?
भैरो - तुम्हारे दिल ने।
लीला - मानो मेरे दिल के आप भेदिया ठहरे!
भैरो - बेशक ऐसा ही है। अगर तुम्हें ऐयारी का ढंग पूरा-पूरा मालूम होता तब तुम्हारा दिल मजबूत होता मगर तुम्हारी ऐयारी अभी बिल्कुल कच्ची है। अहा, एक बात तुमसे कहना तो मैं भूल ही गया, जिस रात मायारानी राजा वीरेन्द्रसिंह के लश्कर से भाग गई थी उसी रोज सबेरा होने के पहिले ही वह खबर राजा गोपालसिंह को मालूम हो गई।
लीला - (कांपती हुई और लड़खड़ाती आवाज में) यह तो मुझे भी मालूम है, मगर तुम्हारे इस कहने का मतलब क्या है सो समझ में नहीं आता।
भैरो - मतलब यही है कि तुम अपनी सूरत साफ करो और मेरे साथ राजा साहब के पास चलो क्योंकि अब असली रामदीन के सामने तुम्हारा रामदीन बने रहना मुनासिब नहीं है।
लीला - असली रामदीन अब कहां...!
जल्दी में लीला इतना कह तो गई मगर फिर उसने जुबान बन्द कर ली। भैरोसिंह की चलती-फिरती बातों ने उसका कलेजा हिला दिया और वह समझ गई कि अब मेरा नसीब मुझे धोखा दिया चाहता है, मेरा भेद खुल गया, और अब मेरे कैद होने में ज्यादे देर नहीं है। अब उसके दिल ने भी कहा कि वास्तव में कल ही राजा साहब को तुझ पर शक हो गया था, अगर तू कल ही भाग जाती तो अच्छा था, मगर अब तेरा भागना भी कठिन है। लीला ने कुछ और सोच-विचार के भैरोसिंह से कहा, “तुम जरा निराले में चलकर मेरी एक बात सुन लो बेहतर होगा कि हम दोनों आदमी घोड़ा बढ़ाकर जरा आगे निकल चलें, मैं जो बात कहना चाहता हूं उसे सुनकर तुम बहुत खुश होवोगे।”
भैरो - न तो मैं तुम्हारी कुछ सुन सकता हूं और न तुम्हें छोड़ सकता हूं, हां एक बात तुम्हें और भी कहे देता हूं जिसे सुनकर तुम्हारे दिल का खुटका निकल जायगा, वह यह है कि जब राजा साहब ने दीवान साहब के नाम की चिट्ठी देकर असली रामदीन को जमानिया भेजा था तो जुबानी कह दिया था कि 'इस चिट्ठी में हमने दो सौ सवार भेजने के लिए लिखा है मगर तुम केवल बीस सवार अपने साथ लाना और जिस दिन हमने मांगा है उसके एक दिन बाद आना'। कहो अब तो बहुत-सी बातें तुम्हारी समझ में आ गई होंगी?
इतना कह भैरोसिंह ने लीला का हाथ पकड़ लिया और राजा साहब की तरफ चलने के लिए कहा मगर लीला को उधर जाना मंजूर न था इसलिए उसने अपनी घोड़ी को न रोका और झटका देकर अपना हाथ छुड़ाना चाहा मगर ऐसा न कर सकी। भैरोसिंह ने उसे खेंचकर जमीन पर गिरा दिया। उस समय भैरोसिंह को मालूम हुआ कि यह मर्द नहीं, औरत है।
भैरोसिंह की यह कार्रवाई देखकर सभों के कान खड़े हो गये। सवारों ने घोड़ा रोक दिया, राजा साहब की सवारी (रथ) खड़ी हो गई, कई सवार अपने घोड़े पर से कूदकर भैरोसिंह के पास चले गये और इन्द्रदेव भी रथ पर से उतरकर उसके पास जा पहुंचे। आज्ञानुसार लीला की मुश्कें बांध ली गईं और पानी मंगाकर उसका चेहरा साफ किया गया और तब लीला को सभों ने पहिचान लिया। लीला राजा गोपालसिंह के पास लाई गई और भैरोसिंह ने सब हाल कहा जिसे सुन राजा साहब हंस पड़े और बोले, “अब इन्द्रदेव जैसा कहें वैसा करो।”
इन्द्रदेव की आज्ञानुसार लीला रस्सियों से जकड़कर एक खाली रथ पर बैठा दी गई और कई सवार उसकी निगरानी पर मुस्तैद किये गये।
अब सवारी तेजी के साथ जमानिया की तरफ रवाना हुई। दोपहर के बाद जब सवारी जमानिया के पास पहुंची तब इन्द्रदेव ने राजा साहब से धीरे-धीरे कुछ कहा और रथ से उतरकर पैदल ही मैदान का रास्ता लिया और देखते-देखते न मालूम कहां चले गये। सवारी खास बाग के दरवाजे पर पहुंची और राजा साहब रथ से उतरकर भैरोसिंह को साथ लिये हुए बाग के अन्दर चले गये।

 

 


 

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