चित्तौडगढ़ सारे गढ गढ़यों का सिरमौर है इसीलिए गढ तो चित्तौडगढ़ कहा गया है। प्रारभ में यह चित्रकूट के नाम से प्रसिद्ध रहा। चित्तौड नाम उसके बाद पड़ा। आज इस चित्रकूट को सब भूल चुके है। जानने का चित्तौड को भी हम पूरानही जान पाये है। जितने भी महल खंडहर या अन्य ध्वसाशेष है, वे इतिहास की कलम पर अजाने ही बने हुए हैं| कोई जान भी नही पायेगा उस पूरे परिवेश को, इतिहास के, रचना ससार को, युद्ध को, योद्धा को, जर्रे को, जौहर को, दृश्य को, उद्देश्य को। उन सबको जानने की कोशिश भी किसने की। चित्तौड़ कई बार जाना हुआ। जब-जब भी गया, बहुत कुछ नया ही नया हाथ लगा। यहां उसी नये को एक नजर दी गई है। राजस्थान में कई गढ़ गलैया है। सबके अपने-अपने रहस्य रोमांच भरे किस्से है। इन सबमें चित्तौडगढ की कहानी सबसे न्यारी है।
शौर्य, बलिदान और स्वाधीनता की जो लड़ाई यहा लडी गई, वह विश्व-इतिहास की सर्वाधिक प्रेरक, प्रगाढ और पौरूषपूर्ण कहानी है। यह एक ऐसी धरती है जिसने सदा खून का इतिहास लिखा है या फिर अग्नि- ज्वाला जौहर का, सतीत्व का परिचय दिया है। जब-जब इस धरती को प्यास लगी, इसे पानी की बजाय खून मिला है...!!! अनवरत युद्ध करने वाले वीरों ने रणांगण में मुगलों का मास और हिन्दुओं का रक्त पीकर अपनी भूख और प्यास मेटी है, पर शौर्य और स्वाधीनता का यश: प्रताप कभी नहीं बुझने दिया।
लड़ाई के दौरान वह धड़ी भी आई, जब नाई ने अपने राणा का मस्तक जाते देख उसका ताज अपने सिर पर लिया, मगर पराजय का कलंक कभी अपने माथेनहीं पोतः। भक्ति के रंग में भी इस धरती ने जो रंग दिया वह बेजोड मिसाल है। पन्नाधाय की स्वामीभक्ति को कौन भूल सकेगा। भोज ने तो भाक्ति के खातिर राजगद्दी तक छोडी और अपना सर्वस्व शिव भक्ति को समर्पित कर दिया शिव लिंग की सेवा के लिए जो हाथ उन्होंने अर्पित कर दिया उसमें कभी तलवार तक नहीं ली और मीग अपने आगध्ध्य शालिग्राम में ही मगन मस्त हो गई।
सारा अगजग भूल गई। भोज और नीरा दागही अपनी-अपनी भक्ति मे आकठ, आजीवन निमग्न रहे। दोनों के जुटे अद्र रास्ते पर एक दूसरे के लिए कोई बाधक नही बना। सुन्दरता की सम्राज्ञी पद्मिनी का भी रग टेखिये कि मुगल बादशाह तक उसकी चर्चा सुन सुधहीन हो गया| अकेली पद्मिनी के पीछे कितनी यातनाओं से गुजरना पड़ा राणा रतनसिह को, गोरा बादल को, सारे सैनिकों को, मगर वाह री पद्मिनी, मुगलों की छाया तक तुझे नही लील पाई और तू जौहर कर अपनाजलवा दिखा गई। अकथ कहानी और अखूट गाथा कह रहा है यहां का जर्रा-जर्रा। सारे महल खडहर ऐश्वर्य और वैभव का, शौर्य और शूरापन का उन्माद लिए आज भी अपनी ओलखाण दे रहे हैं। इन्हें देखते जाइये, कभी मन नहीं भरेगा। जितना जो कुछ सुनने- जानने को मिलेगा, उतना ही और रहस्य गदराता हुआ मिलोगा।