बहुत पहले उदार सुन्द और उपसुंद नामक दो दैत्य थे।

दोनों ने तीनों लोक की इच्छा से बहुत काल तक महादेव की तपस्या की। फिर उन दोनों पर भगवान ने प्रसन्न होकर यह कहा कि,

""वर माँगो।

फिर हृदय में स्थित सरस्वती की प्रेरणा से प्रेरित होकर वे दोनों, माँगना तो कुछ और चाहते थे और कुछ का कुछ कह दिया कि

जो आप हम दोनों पर प्रसन्न हैं, तो परमेश्वर अपनी प्रिया पार्वती जी को दे दें।

बाद में भगवान ने क्रोध से वरदान देने की आवश्यकता से उन विचारहीन मूर्खो को पार्वती जी दे दी। तब उसके रुप और सुंदरता से लुभाये संसार के नाश करने वाले, मन में उत्कंठित, काम से अंधे तथा

"यह मेरी है, मेरी है'

ऐसा सोच कर आपस में झगड़ा करने वाले इन दोनों की,

""किसी निर्णय करने वाले पुरुष से पूछना चाहिए। ऐसी बुद्धि करने पर स्वयं ईश्वर बूढ़े ब्राह्मण के वेश में आ कर वहाँ उपस्थित हुए।

बाद में हम दोनों ने अपने बल से इनको पाया है, हम दोनों में से यह किसकी है? दोनों ने ब्राह्मण से पूछा।

ब्राह्मण बोला -- वर्णों में श्रेष्ठ होने से ब्राह्मण, बली होने से क्षत्रिय, अधिक धन- धान्य होने से वैश्य और इन तीनों वर्णों की सेवा से शूद्र पूज्य होता है।

इसलिए तुम दोनों क्षत्रिय धर्म पर चलने वाले होने से तुम दोनों का युद्ध ही नियम है।

ऐसा कहते ही, ""यह इसने अच्छा कहा यह कह कर समान बल वाले वे दोनों एक ही समय आपस में लड़ कर मर गये।

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