किसी वृक्ष पर काग और कागली रहा करते थे, उनके बच्चे उसके खोड़र में रहने वाला काला सांप खाता था।

कागली पुनः गर्भवती हुई और काग से कहने लगी -- ""हे स्वामी, इस पेड़ को छोड़ो, इसमें रहने वाला काला साँप हमारे बच्चे सदा खा जाता है।

अर्थात दुष्ट स्री, धूर्त मित्र, उत्तर देने वाला सेवक, सपं वाले घर में रहना, मानो साक्षात् मृत्यु ही है, इसमें संदेह नहीं है।

काग बोला -- प्यारी, डरना नहीं चाहिए, बार- बार मैंने इसका अपराध सहा है, अब फिर क्षमा नहीं कर्रूँगा।

कागली बोली-- किसी प्रकार ऐसे बलवान के साथ तुम लड़ सकते हो?

काग बोला -- यह शंका मत करो।

अर्थात जिसको बुद्धि है उसको बल है और जो निर्बुद्धि है उसका बल कहाँ से आवे ?

कागली बोली -- जो करना है करो।

काग बाला -- यहाँ पास ही सरोवर में राजपुत्र नित्य आ कर स्नान करता है। स्नान के समय उसके अंग से उतार कर घाट पर रखे हुए सोने के हार को चोंच में पकड़ कर इस बिल्ले में ला कर धर दीजिये। पीछे एक दिन राजपुत्र के नहाने के लिए जल में उतरने पर कागली ने वही किया। फिर सोने के हार के पीछे ढूंढ़ते हुए खोखल में राजा के सिपाही ने उस वृक्ष के बिल में काले साँप को देखा और मार डाला।

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