सत्यजित राय मानते थे कि कथानक लिखना निर्देशन का अभिन्न अंग है। यह एक कारण है जिसकी वजह से उन्होंने प्रारंभ में बांग्ला के अतिरिक्त किसी भी भाषा में फ़िल्म नहीं बनाई। अन्य भाषाओं में बनी इनकी दोनों फ़िल्मों के लिए इन्होंने पहले अंग्रेजी में कथानक लिखा, जिसे इनके पर्यवेक्षण में अनुवादकों ने हिन्दी या उर्दू में भाषांतरित किया। राय के कला निर्देशक बंसी चन्द्रगुप्ता की दृष्टि भी राय की तरह ही पैनी थी। शुरुआती फ़िल्मों पर इनका प्रभाव इतना महत्त्वपूर्ण था कि राय कथानक पहले अंग्रेजी में लिखते थे ताकि बांग्ला न जानने वाले चन्द्रगुप्ता उसे समझ सकें। शुरुआती फ़िल्मों के छायांकन में सुब्रत मित्र का कार्य बहुत सराहा जाता है और आलोचक मानते हैं कि अनबन होने के बाद जब मित्र चले गए तो राय की फ़िल्मों के चित्रांकन का स्तर घट गया। राय ने मित्र की बहुत प्रशंसा की, लेकिन राय इतनी एकाग्रता से फिल्में बनाते थे कि चारुलता के बाद से राय कैमरा ख़ुद ही चलाने लगे, जिसके कारण मित्र ने 1966 से राय के लिए काम करना बंद कर दिया। मित्र ने बाउंस-प्रकाश का सर्वप्रथम प्रयोग किया जिसमें वे प्रकाश को कपड़े पर से उछाल कर वास्तविक प्रतीत होने वाला प्रकाश रच लेते थे। राय ने अपने को फ़्रांसीसी नव तरंग के ज़ाँ-लुक गॉदार और फ़्रांस्वा त्रूफ़ो का भी ऋणी मानते थे, जिनके नए तकनीकी और सिनेमा प्रयोगों का उपयोग राय ने अपनी फ़िल्मों में किया।
हालांकि दुलाल दत्ता राय के नियमित फ़िल्म संपादक थे, राय अक्सर संपादन के निर्णय ख़ुद ही लेते थे और दत्ता बाकी काम करते थे। वास्तव में आर्थिक कारणों से और राय के कुशल नियोजन से संपादन अक्सर कैमरे पर ही हो जाता था। शुरु में राय ने अपनी फ़िल्मों के संगीत के लिए लिए रवि शंकर, विलायत ख़ाँ और अली अक़बर ख़ाँ जैसे भारतीय शास्त्रीय संगीतज्ञों के साथ काम किया, लेकिन राय को लगने लगा कि इन संगीतज्ञों को फ़िल्म की अपेक्षा संगीत की साधना में अधिक रुचि है। साथ ही राय को पाश्चात्य संगीत का भी ज्ञान था जिसका प्रयोग वह फ़िल्मों में करना चाहते थे। इन कारणों से तीन कन्या (তিন কন্যা) के बाद से फ़िल्मों का संगीत भी राय ख़ुद ही रचने लगे। राय ने विभिन्न पृष्ठभूमि वाले अभिनेताओं के साथ काम किया, जिनमें से कुछ विख्यात सितारे थे, तो कुछ ने कभी फ़िल्म देखी तक नहीं थी। राय को बच्चों के अभिनय के निर्देशन के लिए बहुत सराहा गया है, विशेषत: अपु एवं दुर्गा (पाथेर पांचाली), रतन (पोस्टमास्टर) और मुकुल (सोनार केल्ला)। अभिनेता के कौशल और अनुभव के अनुसार राय का निर्देशन कभी न के बराबर होता था (आगन्तुक में उत्पल दत्त) तो कभी वे अभिनेताओं को कठपुतलियों की तरह प्रयोग करते थे (अपर्णा की भूमिका में शर्मिला टैगोर)।