दसवाँ अध्याय

गृहनिर्माण - सम्बन्धी आवश्यक बातें

( १ ) मकान पूर्व व उत्तरमें नीचा और पश्चिम व दक्षिणमें ऊँचा होना चाहिये । ऐसा होनेसे गृहस्वामीकी उन्नति होती है । मत्स्यपुराण ( २५६।४ ) - में आया है कि दक्षिण दिशामें ऊँचा घर मनुष्यकी सब कामनाओंको पूर्ण करता है ।

मकान दक्षिणमें ऊँचा होनेपर धनकी वृद्धि और पश्चिममें नीचा होनेपर धनका नाश होता है ।

( २ ) घरके चारों ओर तथा द्वारके सम्मुख व पीछे कुछ जमीन छोड़ देना शुभकारक है । पिछला भाग दक्षिणावर्त रहना चाहिये; क्योंकि वामावर्त विनाशकारक होता है ।

( ३ ) चहारदीवारीसे मिले हुए जो ( वास्तुचक्रके ) चारों ओरके बत्तीस पद हैं , वे ' पिशाच - पद ' अथवा ' पिशाचांश ' कहलाते हैं । उनमें घर बनाना दुःख, शोक तथा भय देनेवाला है ।

( ४ ) जिस घर, देवालय, मठ आदिमें सूर्य - किरणें और वायु प्रवेश नहीं करती, वह शुभ नहीं होता ।

( ५ ) एक दीवारसे मिले हुए दो मकान यमराजके समान गृहस्वामीका नाश करनेवाले हैं ।

( ६ ) किसी मार्ग या गलीला अन्तिम मकान ( जहाँ आगे मार्ग न हो ) अशुभ है । ऐसा मकान कष्ट देनेवाला है ।

( ७ ) पूर्वसे पश्चिमकी ओर लम्बा मकान ' सुर्यवेधी ' और उत्तरसे दक्षिणकी ओर लम्बा मकान ' चन्द्रवेधी ' होता है । चन्द्रवेधी मकान शुभ होता है, जिसमें धनकी वृद्धि होती है । जलाशय सूर्यवेधी शुभ होता है ।

ब्रह्मवैवर्तपुराणमें आया है कि चौकोर शिविर भी चन्द्रवेधी होनेपर मंगलप्रद होता है; परन्तु मंगलप्रद शिविर भी सूर्यवेधी भी अमंगलकारक होता है ( कृष्णजन्म- १०३ ।६०-६१ )

( ८ ) मकानके कुछ भागमें मिट्टी अवश्य रहनी चाहिये ।

( ९ ) धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती - इन पाँच नक्षत्रों ( पंचक ) - में घरके लिये तृण - काष्ठोंका संग्रह, शय्या बनाना, चारपाई आदि बुनना और गृहाच्छादन ( घरको छवाना ) कदापि नहीं करना चाहिये ।

( १० ) घरमें टूट - फूट हो जाय तो उसमें रहनेवालोंको कभी सुख नहीं मिलता ।

( ११ ) यदि नये घरका द्वार टूट जाय तो उसमें स्त्रीसंज्ञक किसी वस्तुका अथवा स्वयं स्त्रीका नाश होता है । इसी तरह नये घरमें यदि कोई वस्तु टूट जाती है अथवा झुक जाती है या फट जाती है तो कुटुम्बीकी मृत्यु होती है ।

( नये घरमें उपर्युक्त शुभाशुभ फल एक वर्षतक समझने चाहिये । एक वर्षके बाद वह घर पुराना कहा जाता है । )

( १२ ) घरमें टूटे - फूटे आसन ( कुसीं आदि ), शयनिका ( पलंग आदि ) और वाहन ( साइकिल, स्कूटर आदि ) - का होना भी अशुभ फल देनेवाला है ।

महाभारतमें आया है -

भिन्नभाण्डं च खट्वां च कुक्कुटं शुनकं तथा ।

अप्रशस्तानि सर्वाणि यश्च वृक्षो गृहेरुहः ॥

भिन्नभाण्डे कलिं प्राहुः खट्वायां तु धनक्षयः ।

कुक्कुटे शुनके चैव हविर्नाश्नन्ति देवताः ॥

वृक्षमूले ध्रुवं सत्त्वं तस्माद् वृक्षं न रोपयेत् ॥

( महा० अनुशासन० १२७।१५-१६ )

' घरमें टूटे बर्तन, टूटी खाट, मुर्गा, कुत्ता और अश्वत्थादि वृक्षका होना अच्छा नहीं माना गया है । फूटे बर्तनमें कलियुगका वास कहा गया है । टूटी खाट रहनेसे धनकी हानि होती है । मुगें और कुत्तेके रहनेपर देवता उस घरमें हविष्य ग्रहण नहीं करते तथा मकानके अन्दर कोई बड़ा वृक्ष होनेपर उसकी जड़के भीतर साँप, बिंच्छू आदि जन्तुओंका रहना अनिवार्य हो जाता है । इसलिये घरके भीतर पेड़ न लगाये ।'

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