एक बार देवों और दानवों में भयंकर संग्राम हुआ। उस युद्ध में देव पराजित हुए और भाग खड़े हुए। देवों के राजा शक्र (सक्क) उस समय दानवों को पूरी टक्कर रहे थे। उनके सारथी ने जब देवों की सेना को भागते देखा तो वह देवराज के रथ को भगाता आकाश में ले उड़ा। दानवों ने उस रथ के तेजी से पीछा किया।
तभी शक्र की दृष्टि ऊँचे-उँचे पेड़ों पर स्थित चीलों के घोंसलों पर पड़ी। यदि उनका रथ उसी दिशा में उसी गति से जाता तो चील के अण्डे और बच्चे नष्ट हो जाते। अत: उन्होंने अपने सारथी को कहा कि वह रथ को दानवों की ओर पीछे लौटा ले।
रथ को पीछे लौटते और शक्र के हाथों में खड्ग देख दानवों ने समझा कि शक्र ने ऐसा किसी युद्ध-नीति के अनुरुप किया था। अत: वे सारे दानव जो उनका पीछा कर रहे थे, डर कर भाग खड़े हुए।
दानवों के भागने के बाद देव-सेना पुन: एकत्रित हुई और दानवों पर आक्रमण कर उन्हें परास्त किया।