वाराणसी में राज्य करता हुआ घतकुमार नाम के एक राजा ने अपने हरम में एक मंत्री के दुर्व्यवहार को देखा। उसने उस मंत्री को दण्डित करते हुए अपने राज्य से निष्कासित कर दिया।

उस मंत्री ने तब श्रावस्ती के राजा वंक के पास शरण ली। कुछ दिनों के बाद उस मंत्री ने राजा वंक को वाराणसी राज्य के कई भेद बताये। जिससे वंक ने वाराणसी पर आक्रमण किया और उस राज्य को अपने अधीन कर लिया और राजा घत को बंदी बना लिया।

रात में वंक ने जब घतकुमार के कारागार का दौरा किया तो वह उसे हवा में स्थित हो योग में लीन पाया।

घत के आचरण से पर प्रभावित हो वंक ने उससे पूछा कि वह भयभीत क्यों नहीं था ; और क्यों उस संकट की घड़ी में मुस्कुरा रहा था। घत ने तब उसे बतलाया कि " वृथा है पश्चाताप जो बदल नहीं सकता कभी अतीत था इतिहास हे वंक ! क्यों करुँ मैं कोई पश्चाताप जो बदल नहीं सकता कभी कोई भविष्य क्यों होने दूँ में उसे तब आपक।"

घत की बातों से प्रसन्न हो वंक ने घत को मुक्त कर दिया और उसे उसका राज्य वापिस कर दिया। किन्तु घत ने अपना राज्य अपने परिजनों को सौंप दिया और स्वयं संन्यासी बन हिमालय को प्रस्थान कर गया।

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