सील - पारमिता को सिद्ध करने के लिए नागराज चंपेय्य ने संन्यास वरण किया। (बौद्धों में यह अवधारणा है कि दान, शील, धैर्य आदि दस गुणों के परम आचरण से बुद्धत्व की प्राप्ति होती है, और उसकी संपूर्ण सिद्धि पारमिता कहलाती है।
संन्यास वरण कर चंपेय्य चींटियों के पर्वत पर जाकर साधना में लीन हो गया। वहाँ एक सँपेरे ने उसे पकड़ा और शहर-शहर अपनी बीन की धुन पर नचाने लगा।
चंपेय्य ने जब संन्यास वरण किया था तब उसकी रानी सुमना गर्भवती थी। पुत्र को जन्म देने के बाद वह भी अपने पति की खोज में अपने बच्चे को उठाये शहर-शहर घूमती रहती।
एक दिन सुमना ने अपने पति को वाराणसी नरेश अग्रसेन के दरबार में एक सँपेरे की बीन के सामने नाचते देखा।
सुमना को अचानक वाराणसी दरबार में उपस्थित देख चंपेय्य भी चौंक उठा और उसने अपना नृत्य बन्द कर दिया। जब सभी चंपेय्य के व्यवहार से आश्चर्य-चकित थे तो सुमना दौड़ती हुई राजा अग्रसेन के पास पहुँची और अपनी सारी राम-कहानी सुनायी। राजा उसकी करुण-कहानी से प्रभावित हुआ और उसने चंपेय्य को मुक्त करके नाग-लोक वापिस जाने की सुविधा उपलब्ध करा दी।
अग्रसेन ने नागराज का निमन्त्रण भी स्वीकार किया और कुछ दिनों के लिए नागलोक में भी अतिथि के रुप में रहा। वहाँ वह चंपेय्य से उपदेश ग्रहण करने के बाद वापिस अपने राज्य को लौट आया।