मस्तानी पेशवा बाजीराव(१७००-१७४०) जो की एक मराठा सेनापती थे और मराठा साम्राज्य के चौथे मराठा छत्रपति ( राजा) शाहूजी राजे भोसले के प्रधान मंत्री थे की दूसरी पत्नी थी | कहा जाता है की वह बहुत ही खूबसूरत और निडर औरत थी |
शुरुआती ज़िंदगी
मस्तानी महाराजा छत्रसाल की बेटी थी | कहानी के मुताबिक वो छत्रसाल की गोद ली हुई बेटी थी | उनका जन्म मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले से १५ किलोमीटर दूर मौ सहनिया में हुआ था | धुबेला में एक मस्तानी महल है जहाँ मस्तानी रहती और नाचती थी |
जीवनी
पेशवा बाजीराव
मस्तानी के साथ कई कहानियां जुड़ी हैं | उनमें से सबसे प्रचलित ये है की मस्तानी बुंदेला राजपूत महाराजा छत्रसाल(१६४९-१७३१) , जो बुंदेलखंड प्रान्त के पन्ना राज्य के संस्थापक थे की उनकी फारसी –मुस्लिम बीवी रूहानी बाई जो की हैदराबाद के निज़ाम के यहाँ नर्तकी थी से जन्मी बेटी थी | जब अलाहाबाद के मुग़ल सेनापति मोहम्मद खान बंगाश ने छत्रसाल के राज्य पर १७२७-२८ में हमला बोला तो उन्होनें बाजीराव जो की बुंदेलखंड के नज़दीक एक सैन्य अभियान पर थे को मदद के लिए गुप्त सन्देश लिखा | बाजीराव छत्रसाल की मदद करने के लिए पहुंचे | अहसान मान छत्रसाल ने बाजीराव को उनकी बेटी मस्तानी का हाथ औरउनके राज्य का एक तिहाई हिस्सा जिसमें झाँसी , सागर और कालपी शामिल थे दे दिया | उन्होनें बाजीराव को ३३ लाख सोने के सिक्के दिए | मस्तानी से शादी की ख़ुशी में उन्होनें बाजीराव को एक हीरे की खदान और कुछ गाँव भी भेंट किये |
लेकिन इस बात पर कई राय मोजूद हैं | एक दूसरी राय को मानें तो वह हैदराबाद के निज़ाम की बेटी थी | जब १६९८ में छत्रसाल ने निज़ाम को हरा दिया तो उन्होनें अपनी बीवी की राय पर बुन्देलास से जो मध्य भारत की प्रमुख शक्ति थे रिश्ते सुधारने के लिए मस्तानी की शादी छत्रसाल से करा दी |
तीसरी कहानी के हिसाब से मस्तानी छत्रसाल के राज्य दरबार की नर्तकी थी और जब बाजीराव ने छत्रसाल से मिल दोस्ती का हाथ बढाया तब वह मस्तानी से प्यार करने लगे और उन्होनें उससे शादी कर ली | इस बात का ब्राह्मणों और अन्य हिन्दुओं ने विरोध किया क्यूंकि बाजीराव एक उच्च जाती के ब्राह्मण थे |
लेकिन जो सबसे मानी गयी कथा है वो है की मस्तानी छत्रसाल की उसकी फ़ारसी मुस्लिम बेटी से बीवी है | मस्तानी को कई बार बाजीराव की रखैल या प्रेमिका के रूप में दिखाया जाता है | लेकिन वो उसकी विधिवत् विवाहित पत्नी थी |
मस्तानी घुड़सवारी, भाला फेंक और तलवारबाज़ी में निपुण थी और साथ ही एक प्रतिभाशाली नर्तकी और गायिका भी थी | वह बाजीराव के साथ उनके सैन्य अभियानों पर जाती थी | मस्तानी और बाजीराव की पहली पत्नी काशीबाई दोनों को ही कुछ महीनों के अंतर में पुत्र हुए | काशीबाई का पुत्र कम उम्र पर ख़तम हो गया | मस्तानी के पुत्र का नाम रखा गया शमशेर बहादुर |
बाजीराव ने शमशेर(पेशवा) को बाँदा की जागीर सौंप दी | शमशेर ने मराठों की तरह से १७६१ में अहमद शाह अब्दाली के खिलाफ पानीपत की तीसरी लडाई लड़ी और अपनी जान उसमें गँवा दी |
बाजीराव का उसकी आधी मुस्लमान पत्नी की तरफ प्रेम और काशीबाई की उपेक्षा ने उनकी माँ राधाबाई को काफी नाराज़ किया | राधाबाई का साथ देते हुए बाजीराव के भाई चिमनाजी अप्पा ने मस्तानी को देश निकाला देने की कोशिश की | बाजीराव के बेटे बालाजी ने भी मस्तानी को उनके पिता को छोड़ने की कहा लेकिन उसने मना कर दिया | उनके बाजीराव पर बढ़ते प्रभाव और बाजीराव द्वारा काशीबाई की उपेक्षा से नाराज़ बालाजी ने जब बाजीराव एक सैन्य अभियान पर थे मस्तानी को कुछ दिनों के लिए घर में ही कैद कर लिया |
मस्तानी ने कुछ वक़्त के लिए बाजीराव के साथ पुणे शहर में उनके महल शनिवार वाडा पर निवास किया | महल के उत्तरी पूर्व इलाके में मस्तानी महल और एक मस्तानी दरवाज़ा नाम का बाहरी दरवाज़ा था | अपने परिवार का मस्तानी के प्रति असहनीयरवैय्या देख बाजीराव ने मस्तानी के लिए शनिवार वाडा से थोड़ी दूरी पर १७३४ में कोथरुड में एक अलग मकान बनवा दिया | ये स्थान आज भी कर्वे रोड पर मृत्युंजय मंदिर के पास स्थित है | कोथरुड के महल को ध्वस्त कर दिया गया है और उसके कुछ भाग एक विशेष अनुभाग में राजा केलकर संग्रहालय में प्रदर्शित है | दरबार के अभिलेखों(बखार्स) में ख़ास तौर से बाजीराव के राज्य के समय पर उनका कोई ज़िक्र नहीं मिलता है | इतिहासकारों का मानना है की राजा केलकर संग्रहालय और वाई संघ्रालय में उनके मिले चित्र नकली हैं |
माना जाता है की मस्तानी एक निपुण घुड़सवार और योद्धा थीं | वह दरबार के दैनिक काम काज में बाजीराव पेशवा की मदद करती थीं |
एक स्थानीय कथा के हिसाब से दिवे गाँव के पास पुणे सास्वाद सड़क पर स्थित झील का निर्माण मस्तानी ने आस पास के इलाकों में पानी की पूर्ती करने के लिए करवाया था |
मौत
अप्रैल १७४० में जब बाजीराव खरगोन में अपने इलाकों का निरिक्षण कर रहे थे , तब उनकी अचानक तबियत ख़राब हुई और कमौत हो गयी | काशीबाई , चिमनाजी अप्पा , बालाजी (नानासाहेब) और मस्तानी खरगोन पहुंचे | बाजीराव के शरीर का अंतिम संस्कार २८ अप्रैल १७४० को नर्मदा नदी के तट पर स्थित रावेर खेड में किया गया | इसके कुछ दिनों बाद ही मस्तानी की पुणे के पास पब्ल गाँव में मौत हो गयी |
मौत की वजह
जनमत के हिसाब से मस्तानी ने बाजीराव की मौत की खबर सुन अपनी अंगूठी से ज़हर पी ख़ुदकुशी कर ली थी | कुछ कहते हैं की वह अपने पति की जलती चिता में कूद सती हो गयी थीं | असला वजह बताने के लिए कोई दस्तावेज़ मोजूद नहीं हैं | लेकिन ऐसा माना जाता है की बाजीराव की मौत के बाद वह ज्यादा दिन नहीं जीवित रहीं और उनकी मौत भी १७४० में हो गयी |
मस्तानी की कब्र
उनकी कब्र पबल में है | इसको मस्तानी समाधी कहते हैं और उसकी देख रेख के ज़िम्मेदार हैं श्रीमान मोहम्मद इनामदार
काशीबाई ने उनके ६ वर्ष के पुत्र शमशेर बहादुर ( दूसरा नाम कृष्णराव ) को अपने घर का हिस्सा बना लिया और अपने ही पुत्रों की तरह उसका पालन पोषण किया |