पुराणों के अनुसार यमलोक एक लाख योजन क्षेत्र में फैला और इसके चार मुख्य द्वार हैं। यमलोक में आने के बाद आत्मा को चार प्रमुख द्वारों में से किसी एक में कर्मों के अनुसार प्रवेश मिलता है।
दक्षिण का द्वार : चार मुख्य द्वारों में से दक्षिण के द्वार से पापियों का प्रवेश होता है। यह घोर अंधकार और भयानक सांप, सिंह और भेड़िये आदि तरह के भयानक जीव और राक्षसों से घिरा रहता है। यहां से प्रवेश करने वाली पापी आत्माओं के लिए यह बेहद कष्टकर होता है। इसे नरक का द्वार भी कहा जाता है। यम-नियम का पालन नहीं करने वाले निश्चित ही इस द्वार में प्रवेश करके कम से कम 100 वर्षों तक कष्ट झेलते हैं।
पश्चिम का द्वार : पश्चिम का द्वार रत्नों से जड़ित है। इस द्वार से ऐसे जीवों का प्रवेश होता है जिन्होंने दान-पुण्य किया हो, धर्म की रक्षा की हो या तीर्थों में प्राण त्यागे हो।
उत्तर का द्वार : उत्तर का द्वार भी भिन्न-भिन्न स्वर्णजड़ित रत्नों से सजा होता है, जहां से वही आत्मा प्रवेश करती है जिसने जीवन में माता-पिता की खूब सेवा की हो, हमेशा सत्य बोलता रहा हो और हमेशा मन-वचन-कर्म से अहिंसक हो।
पूर्व का द्वार : पूर्व का द्वार हीरे, मोती, नीलम और पुखराज जैसे रत्नों से सजा होता है। इस द्वार से उस आत्मा का प्रवेश होता है, जो योगी, ऋषि, सिद्ध और संबुद्ध है। इसे स्वर्ग का द्वार भी कहते हैं। इस द्वार में प्रवेश करते ही आत्मा का गंधर्व, देव, अप्सराएं स्वागत करती हैं।