जह्ले-ख़िरद [1]ने दिन ये दिखाए
घट गए इन्साँ बढ़ गए साए
हाय वो क्योंकर दिल बहलाए
ग़म भी जिसको रास न आए
ज़िद पर इश्क़ अगर आ जाए
पानी छिड़के , आग लगाए
दिल पे कुछ ऐसा वक़्त पड़ा है
भागे, लेकिन राह न पाए
कैसा मजाज़[2] और कैसी हक़ीक़त[3]
अपने ही जल्वे अपने ही साए
कारे- ज़माना [4]जितना- जितना
बनता जाए बिगड़ता जाए