इश्क़ फ़ना[1] का नाम है इश्क़ में ज़िन्दगी न देख
जल्वा-ए-आफ़्ताब [2] बन ज़र्रे में रोशनी न देख
शौक़ को रहनुमा बना जो हो चुका कभी न देख
आग दबी हुई निकाल आग बुझी हुई न देख
तुझको ख़ुदा का वास्ता तू मेरी ज़िन्दगी न देख
जिसकी सहर भी शाम हो उसकी सियाह शबी [3] न देख