अब इस जगह थोड़ा-सा हाल इस राज्य का और साथ ही इस माधवी का भी लिख देना जरूरी है।
किशोरी की मां अर्थात शिवदत्त की रानी दो बहिनें थीं। एक जिसका नाम कलावती था शिवदत्त के साथ ब्याही थी और दूसरी मायावती गया के राजा चंद्रदत्त से ब्याही थी। इसी मायावती की लड़की यह माधवी थी जिसका हाल हम ऊपर लिख आये हैं।
माधवी को दो वर्ष की छोड़कर उसकी मां मर गई थी, मगर माधवी का बाप चंद्रदत्त होशियार होने पर माधवी को गद्दी देकर मरा था। अब आप समझ गये होंगे कि माधवी और किशोरी दोनों आपस में मौसेरी बहिनें थीं।
माधवी का बाप चंद्रदत्त बहुत ही शौकीन और ऐयाश आदमी था। अपनी रानी को जान से ज्यादा मानता था, खास राजधानी गयाजी छोड़कर प्रायः राजगृह में रहा करता था जो गया से दो मंजिल पर एक बड़ा भारी मशहूर तीर्थ है। यह दिलचस्प और खुशनुमा पहाड़ी उसे कुछ ऐसी भायी कि साल में दस महीने इसी जगह रहा करता। एक आलीशान मकान भी बनवा लिया। यह खुशनुमा और दिलचस्प जमीन जिसमें कुमार इंद्रजीतसिंह बेबस पड़े हैं कुदरती तौर पर पहले ही की बनी हुई थी मगर इसमें आने-जाने का रास्ता और यह मकान चंद्रदत्त ही ने बनवाया था।
माधवी के मां-बाप दोनों ही शौकीन थे। माधवी को अच्छी शिक्षा देने का उन लोगों को जरा भी ध्यान न था। वह दिन-रात लाड़-प्यार ही में पला करती थी और एक खूबसूरत और चंचल दाई की गोद में रहकर अच्छी बातों के बदले हाव-भाव ही सीखने में खुश रहती थी, इसी सबब से इसका मिजाज लड़कपन ही से खराब हो रहा था। बच्चों की तालीम पर यदि उनके मां-बाप ध्यान न दे सकें तो मुनासिब है कि उन्हें किसी ज्यादे उम्र वाली और नेकचलन दाई की गोद में दे दें, मगर माधवी के मां-बाप को इसका कुछ भी खयाल न था और आखिर इसका नतीजा बहुत ही बुरा निकला।
माधवी के समय में इस राज्य में तीन आदमी मुखिया थे, बल्कि यों कहना चाहिए कि इस राज्य का आनंद ये ही तीनों ले रहे थे और तीनों दोस्त एकदिल हो रहे थे। इनमें से एक तो दीवान अग्निदत्त था, दूसरा कुबेरसिंह सेनापति, और तीसरा धर्मसिंह जो शहर की कोतवाली करता था।
अब हम अपने किस्से की तरफ झुकते हैं और उस तालाब पर पहुंचते हैं जिसमें एक नौजवान औरत को पकड़ने के लिए योगिनी और वनचरी कूदी थीं। आज इस तालाब पर हम अपने कई ऐयारों को देखते हैं जो आपस में बातचीत और सलाह करके कोई भारी आफत मचाने की तरकीब जमा रहे हैं।
पंडित बद्रीनाथ, भैरोसिंह और तारासिंह तालाब के ऊपर पत्थर के चबूतरे पर बैठे यों बातचीत कर रहे हैं -
भैरो - कुमार को वहां से निकाल ले आना तो कोई बड़ी बात नहीं है।
तारा - मगर उन्हें भी तो कुछ सजा देनी चाहिए जिनकी बदौलत कुमार इतने दिनों से तकलीफ उठा रहे हैं।
भैरो - जरूर, बिना सजा दिए जी कब मानेगा!
बद्री - जहां तक हम समझते हैं कल वाली राय बहुत अच्छी है।
भैरो - उससे बढ़कर कोई राय नहीं हो सकती, ये लोग भी क्या कहेंगे कि किसी से काम पड़ा था!
बद्री - यहां तो बस ललिता और तिलोत्तमा ही शैतानी की जड़ हैं, सुनते हैं उनकी ऐयारी भी बहुत बढ़ी-चढ़ी है।
तारा - पहले उन्हीं दोनों की खबर ली जाएगी।
भैरो - नहीं-नहीं इसकी कोई जरूरत नहीं। उन्हें गिरफ्तार किये बिना ही हमारा काम चल जायगा, व्यर्थ कई दिन बर्बाद करने का मौका नहीं है।
तारा - हां यह ठीक है, हमें उनकी इतनी जरूरत भी नहीं है, और क्या ठिकाना जब तक हम लोग अपना काम करें तब तक वे चाची के फंदे में आ फंसें।
भैरो - बेशक ऐसा ही होगा, क्योंकि उन्होंने कहा भी था कि तुम लोग इस काम को करो तब तक बन पड़ेगा तो मैं ललिता और तिलोत्तमा को भी फांस लूंगी।
बद्री - खैर जो होगा देखा जाएगा, अब हम लोग अपने काम में क्यों देर कर रहे हैं।
भैरो - देर की जरूरत क्या है, उठिए, हां, पहले अपना-अपना शिकार बांट लीजिए।
बद्री - दीवान साहब को मेरे लिए छोड़िये।
भैरो - हां, आपका वजन बराबर है, अच्छा मैं सेनापति की खबर लूंगा।
तारा - तो वह चाण्डाल कोतवाल मेरे बांटे पड़ा! खैर यही सही।
भैरो - अच्छा अब यहां से चलो।
ये तीनों ऐयार वहां से उठे ही थे कि दाहिनी तरफ से छींक की आवाज आर्ई।
बद्री - धत्तेरे की, क्या तेरे छींकने का कोई दूसरा समय न था
तारा - क्या आप छींक से डर गये
बद्री - मैं छींक से नहीं डरा मगर छींकने वाले से जी खटकता है।
भैरो - हमारे काम में विघ्न पड़ता दिखाई देता है।
बद्री - इस दुष्ट को पकड़ना चाहिए, बेशक यह चुपके-चुपके हमारी बातें सुनता रहा।
तारा - छींक नहीं बदमाशी है!
बद्रीनाथ ने इधर-उधर बहुत ढूंढ़ा मगर छींकने वाले का पता न लगा।
लाचार तरद्दुद ही में तीनों वहां से रवाना हुए।

 

 

 

 

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