पंडित बद्रीनाथ, पन्नालाल, रामनारायण, चुन्नीलाल और जगन्नाथ ज्योतिषी भैरोसिंह ऐयार को छुड़ाने के लिए शिवदत्तगढ़ की तरफ गए। हुक्म के मुताबिक कंचनसिंह सेनापति ने शेर वाले बाबाजी के पीछे जासूस भेजकर पता लगा लिया था कि भैरोसिंह ऐयार शिवदत्तगढ़ किले के अंदर पहुंचाए गए हैं, इसलिए इन ऐयारों को पता लगाने की जरूरत न पड़ी, सीधे शिवदत्तगढ़ पहुंचे और अपनी-अपनी सूरत बदलकर शहर में घूमने लगे। पांचों ने एक-दूसरे का साथ छोड़ दिया, मगर यह ठीक कर लिया था कि सब लोग घूम-फिरकर फलानी जगह इकट्ठे हो जायेंगे।
दिन-भर घूम-फिरकर भैरोसिंह का पता लगाने के बाद कुछ ऐयार शहर के बाहर एक पहाड़ी पर इकट्ठे हुए और रात भर सलाह करके राय कायम करने में काटी, दूसरे दिन ये लोग फिर सूरत बदल-बदलकर शिवदत्तगढ़ में पहुंचे। रामनारायण और चुन्नीलाल ने अपनी सूरत उसी जगह के चोबदारों की-सी बनाई और वहां पहुंचे जहां भैरोसिंह कैद थे। कई दिनों तक कैद रहने के सबब उन्होंने अपने को जाहिर कर दिया था और असली सूरत में एक कोठरी के अंदर जिसके तीन तरफ लोहे का जंगला लगा हुआ था बंद थे। उसी कोठरी के बगल में उसी तरह की कोठरी और थी जिसमें गद्दी लगाए बूढ़ा दारोगा बैठा था और कई सिपाही नंगी तलवार लिए घूम-घूमकर पहरा दे रहे थे। रामनारायण और चुन्नीलाल उस कोठरी के दरवाजे पर जाकर खड़े हुए और बूढ़े दारोगा से बातचीत करने लगे।
राम - आपको महाराज ने याद किया है।
बूढ़ा - क्यों क्या काम है भीतर आओ, बैठो, चलते हैं।
रामनारायण और चुन्नीलाल कोठरी के अंदर गए और बोले -
राम - मालूम नहीं क्यों बुलाया है मगर ताकीद की है कि जल्द बुला लाओ।
बूढ़ा - अभी घंटे भर भी नहीं हुआ जब किसी ने आके कहा था कि महाराज खुद आने वाले हैं, क्या वह बात झूठ थी
राम - हां महाराज आने वाले थे मगर अब न आवेंगे।
बूढ़ा - अच्छा आप दोनों आदमी इसी जगह बैठें और कैदी की हिफाजत करें, मैं जाता हूं।
राम - बहुत अच्छा।
रामनारायण और चुन्नीलाल को कोठरी के अंदर बैठाकर बूढ़ा दारोगा बाहर आया और चालाकी से झट उस कोठरी का दरवाजा बंद करके बाहर से बोला, “बंदगी! मैं दोनों को पहचान गया कि ऐयार हो। कहिये अब हमारे कैद में आप फंसे या नहीं मैंने भी क्या मजे में पता लगा लिया। पूछा कि अभी तो मालूम हुआ था कि महाराज खुद आने वाले हैं, आपने भी झट कबूल कर लिया और कहा कि 'हां आने वाले थे मगर अब न आवेंगे'। यह न समझे कि मैं धोखा देता हूं। इसी अक्ल पर ऐयारी करते हो खैर आप लोग भी अब इसी कैदखाने की हवा खाइये और जान लीजिए कि मैं बाकरअली ऐयार आप लोगों को मजा चखाने के लिए इस जगह बैठाया गया हूं।”
बूढ़े की बात सुन रामनारायण और चुन्नीलाल चुप हो गए बल्कि शर्माकर सिर नीचा कर लिया। बूढ़ा दारोगा वहां से रवाना हुआ और शिवदत्त के पास पहुंचकर दोनों ऐयारों के गिरफ्तार करने का हाल कहा। महाराज ने खुश होकर बाकरअली को इनाम दिया और खुशी-खुशी खुद रामनारायण और चुन्नीलाल को देखने आये।
बद्रीनाथ, पन्नालाल और ज्योतिषीजी को भी मालूम हो गया कि हमारे साथियों में से दो ऐयार पकड़े गए। अब तो एक की जगह तीन आदमियों के छुड़ाने की फिक्र करनी पड़ी।
कुछ रात गए ये तीनों ऐयार घूम-फिरकर शहर से बाहर की तरफ जा रहे थे कि पीछे से एक आदमी काले कपड़े से अपना तमाम बदन छिपाये लपकता हुआ उनके पास आया और लपेटा हुआ एक छोटा-सा कागज उनके सामने फेंक और अपने साथ आने के लिये हाथ से इशारा करके तेजी से आगे बढ़ा।
बद्रीनाथ ने उस पुर्जे को उठाकर सड़क के किनारे एक बनिये की दुकान पर जलते हुए चिराग की रोशनी में पढ़ा, सिर्फ इतना ही लिखा था - “भैरोसिंह”। बद्रीनाथ समझ गए कि भैरोसिंह किसी तरकीब से निकल भागा और यही जा रहा है। बद्रीनाथ ने भैरोसिंह के हाथ का लिखा भी पहचाना।
भैरोसिंह पुर्जा फेंककर इन तीनों को हाथ के इशारे से बुला गया था और दस-बारह कदम आगे बढ़कर अब इन लोगों के आने की राह देख रहा था।
बद्रीनाथ वगैरह खुश होकर आगे बढ़े और उस जगह पहुंचे जहां भैरोसिंह काले कपड़े से बदन को छिपाये सड़क के किनारे आड़ देखकर खड़ा था। बातचीत करने का मौका न था, आगे-आगे भैरोसिंह और पीछे-पीछे बद्रीनाथ, पन्नालाल और ज्योतिषीजी तेजी से कदम बढ़ाते शहर के बाहर हो गये।
रात अंधेरी थी। मैदान में जाकर भैरोसिंह ने काला कपड़ा उतार दिया। इन तीनों ने चंद्रमा की रोशनी में भैरोसिंह को पहचाना - खुश होकर बारी-बारी से तीनों ने उसे गले लगाया और तब एक पत्थर की चट्टान पर बैठकर बातचीत करने लगे।
बद्री - भैरोसिंह, इस वक्त तुम्हें देखकर तबीयत बहुत ही खुश हुई!
भैरो - मैं तो किसी तरह छूट आया मगर रामनारायण और चुन्नीलाल बेढब जा फंसे हैं।
ज्योतिषी - उन दोनों ने भी क्या ही धोखा खाया!
भैरो - मैं उनके छुड़ाने की भी फिक्र कर रहा हूं।
पन्ना - वह क्या
भैरो - सो सब कहने-सुनने का मौका तो रात-भर है मगर इस समय मुझे भूख बड़े जोर से लगी है, कुछ हो तो खिलाओ।
बद्री - दो-चार पेड़े हैं, जी चाहे तो खा लो।
भैरो - इन दो-चार पेड़ों से क्या होगा खैर पानी का तो बंदोबस्त होना चाहिए।
बद्री - फिर क्या करना चाहिए!
भैरो - (हाथ से इशारा करके) यह देखो शहर के किनारे जो चिराग जल रहा है अभी देखते आये हैं कि वह हलवाई की दुकान है और वह ताजी पूरियां बना रहा है, बल्कि पानी भी उसी हलवाई से मिल जायगा।
पन्ना - अच्छा मैं जाता हूं।
भैरो - हम लोग भी साथ चलते हैं, सभों का इकट्ठा ही रहना ठीक है, कहीं ऐसा न हो कि आप फंस जायं और हम लोग राह ही देखते रहें।
पन्ना - फंसना क्या खिलवाड़ हो गया!
भैरो - खैर हर्ज ही क्या है अगर हम लोग साथ ही चलें तीन आदमी किनारे खड़े हो जायेंगे, एक आदमी आगे बढ़कर सौदा ले लेगा।
बद्री - हां-हां, यही ठीक होगा, चलो हम लोग साथ चलें।
चारों ऐयार एक साथ वहां से रवाना हुए और उस हलवाई के पास पहुंचे जिसकी अकेली दुकान शहर के किनारे पर थी। बद्रीनाथ, ज्योतिषीजी और भैरोसिंह कुछ इधर खड़े रहे और पन्नालाल सौदा खरीदने दुकान पर गये। जाने के पहले ही भैरोसिंह ने कहा, “मिट्टी के बर्तन में पानी भी देने का इकरार हलवाई से पहले कर लेना नहीं तो पीछे हुज्जत करेगा।”
पन्नालाल हलवाई की दुकान पर गए और दो सेर पूरी तथा सेर भर मिठाई मांगी। हलवाई ने खुद पूछा कि 'पानी भी चाहिए या नहीं'
पन्ना - हां-हां, पानी जरूर देना होगा।
हलवाई - कोई बर्तन है
पन्ना - बर्तन तो है मगर छोटा है, तुम्हीं किसी मिट्टी के ठिलिए में जल दे दो।
हलवाई - एक घड़ा जल के लिए आठ आने और देने पड़ेंगे।
पन्ना - इतना अंधेर - खैर हम देंगे।
पूरी, मिठाई और एक घड़ा जल लेकर चारों ऐयार वहां से चले मगर यह खबर किसी को भी न थी कि कुछ दूर पीछे दो आदमी साथ लिये छिपता हुआ हलवाई भी आ रहा है। मैदान में एक बड़े पत्थर की चट्टान पर बैठ चारों ने भोजन किया, जल पिया और हाथ-मुंह धो निश्चिंत हो धीरे-धीरे आपस में बातचीत करने लगे। आधा घंटा भी न बीता होगा कि चारों बेहोश होकर चट्टान पर लेट गये और दोनों आदमियों को साथ लिये हलवाई इनकी खोपड़ी पर आ मौजूद हुआ।
हलवाई के साथ आये दोनों आदमियों ने बद्रीनाथ, ज्योतिषीजी और पन्नालाल की मुश्कें कस डालीं और कुछ सुंघा भैरोसिंह को होश में लाकर बोले, “वाह जी अजायबसिंह - आपकी चालाकी तो खूब काम कर गई! अब तो शिवदत्तगढ़ में आए हुए पांचों नालायक हमारे हाथ फंसे। महाराज से सबसे ज्यादे इनाम पाने का काम तो आप ही ने किया!”

 

 


 

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