रात आधी से कुछ ज्यादे जा चुकी है। महाराज सुरेन्द्रसिंह के कमरे में राजा वीरेन्द्रसिंह, राजा गोपालसिंह, कुंवर इंद्रजीतसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, तारासिंह, भैरोसिंह, भूतनाथ और इंद्रदेव बैठे आपस में धीरे-धीरे बातें कर रहे हैं। वृद्ध महाराज सुरेन्द्रसिंह मसहरी पर लेटे हुए हैं।
सुरेन्द्र - दलीपशाह की जीवनी ने दारोगा की शैतानी और भी अच्छी तरह झलका दी।
जीत - बेशक ऐसा ही है, सच तो यों है कि ईश्वर ही ने इन पांचों कैदियों की रक्षा की, नहीं तो दारोगा ने कोई बात उठा नहीं रखी थी।
भूत - साथ ही इसके यह भी है कि उससे ज्यादे दलीपशाह के किस्से ने दरबार में मुझे शर्मिन्दा किया, मगर क्या करूं लाचार था कि चालबाज दारोगा ने दलीपशाह की चीठियों का मुझे ऐसा मतलब समझाया कि मैं अपने आपे से बाहर हो गया, बल्कि यों कहना चाहिए कि अंधा हो गया!
तेज - वह जमाना ही चालबाजियों का था और चारों तरफ ऐसी ही बातें हो रही थीं। भूतनाथ, तुम अब उन बातों को एकदम से भूल जाओ और जिस नेक रास्ते पर चल रहे हो उसी का ध्यान रखो।
जीत - अच्छा तो अब कैदियों के बारे में जो कुछ फैसला हो, कर ही देना चाहिए जिससे अगले दरबार में उन्हें हुक्म सुना दिया जाय।
सुरेन्द्र - (गोपालसिंह से) कहो साहब, तुम्हारी क्या राय है, किस-किस कैदी को क्या-क्या सजा देनी चाहिए?
गोपाल - जो दादाजी (महाराज) की इच्छा हो, हुक्म दें, मेरी प्रार्थना केवल इतनी ही है कि कम्बख्त दारोगा मेरे हवाले किया जाय और मुझे हुक्म हो जाय कि जो मैं चाहूं, उसे सजा दूं।
सुरेन्द्र - केवल दारोगा ही नहीं बल्कि तुम्हारे और कैदी भी तुम्हारे हवाले किये जायेंगे।
गोपाल - और दलीपशाह, अर्जुनसिंह, भरतसिंह, हरदीन और गिरिजाकुमार भी मुझे दे दिये जायं क्योंकि ये लोग मेरे सहायक हैं और इनके साथ रहकर मेरा दिन बड़ी खुशी के साथ बीतेगा!
सुरेन्द्र - (जीतसिंह से) ऐसा ही किया जाय।
जीत - बहुत अच्छा, मैं नंबरवार कैदियों के बारे में जो कुछ हुक्म होता है लिखता हूं।
इतना कहकर जीतसिंह ने कलम-दवात और कागज ले लिया और महाराज की आज्ञानुसार इस तरह लिखने लगे -
(1) कम्बख्त दारोगा सजा पाने के लिए राजा साहब गोपालसिंह के हवाले किया जाय, राजा साहब जो मुनासिब समझें उसे सजा दें।
(2) शिखण्डी (दारोगा का चचेरा भाई), मायाप्रसाद, जैपालसिंह, हरनामसिंह, बिहारीसिंह, हरनामसिंह की लड़की, लीला, मनोरमा, नागर, बेगम, नौरतन और जमालो वगैरह भी जिन्हें जमानिया से घना संबंध है राजा गोपालसिंह के हवाले कर दिया जाय।
(3) बेगम के घर से निकली दौलत जो काशीराज ने यहां भेजवा दी है बलभद्रसिंह को दे दी जाय।
(4) गौहर और गिल्सन शेर अली खां के पास भेज दी जायं।
(5) किशोरी से पूछकर भीमसेन छोड़ दिया जाय। और उसे पुनः शिवदत्त की गद्दी पर बैठाया जाय।
(6) कुबेरसिंह, बाकरअली, अजायबसिंह, खुदाबख्श, यारअली, धर्मसिंह, गोविंदसिंह, भगवनिया, ललिता और धन्नूसिंह, तथा वे कैदी जो कमलिनी के तालाब वाले मकान से आये थे सब जन्म भर के लिए कैदखाने में भेज दिये जायं इसके अतिरिक्त और भी जो कैदी हों, (नानक इत्यादि) कैदखाने में भेज दिए जायं।
(7) दलीपशाह, अर्जुनसिंह, हरदीन, भरतसिंह और गिरिजाकुमार को राजा गोपालसिंह ले जायं और इन सभों को बड़ी खातिर और अरमान के साथ रखें।
कैदियों के विषय में इस तरह का हुक्म देकर महाराज चुप हो गये ओैर फिर आपस में दूसरे ढंग की बातें होने लगीं। थोड़ी देर के बाद दरबार बर्खास्त हुआ और सब कोई अपने-अपने ठिकाने चले गये।