कुंअर इंद्रजीतसिंह इस छोटे-से दरबार से उठकर महल में गये और किशोरी के कमरे में पहुंचे। इस समय कमलिनी भी उसी कमरे में मौजूद किशोरी से हंसी-खुशी की बातें कर रही थी। कुमार को देखकर दोनों उठ खड़ी हुईं और जब हंसते हुए कुमार बैठ गए तो किशोरी भी उनके सामने बैठ गई मगर कमलिनी कमरे के बाहर की तरफ चल पड़ी। उस समय कुमार ने उसे रोका और कहा, ''तुम कहां चलीं बैठो-बैठो, इतनी जल्दी क्या पड़ी है?'
कम - (बैठती हुई) बहुत अच्छा बैठती हूं, मगर क्या आज रात को सोना नहीं है?
कुमार - क्या यह बात मेरे आने से पहले नहीं सूझी थी?
किशोरी - आपको देख के सोना याद आ गया।
किशोरी की बात ने दोनों को हंसा दिया और कमलिनी ने कहा -
कमलिनी - दलीपशाह के किस्से ने मेरे दिल पर एक ऐसा असर किया है कि कह नहीं सकती। देखा चाहिए दुष्टों को महाराज क्या सजा देते हैं! सच तो यों है कि उनके लिए कोई सजा है ही नहीं।
कुमार - तुम ठीक कहती हो, इस समय मैं महाराज के पास से चला आता हूं, वहां एक छोटा-सा निज का दरबार लगा हुआ था और कैदियों ही के विषय में बातचीत हो रही थी, बल्कि यों कहना चाहिए कि उन बदमाशों का फैसला लिखा जा रहा था।
कमलिनी - (उत्कंठा से) हां! अच्छा बताइये तो सही दारोगा और जैपाल के लिए क्या सजा तजवीज की गई?
कुमार - उन्हें क्या सजा दी जायगी इसका निश्चय गोपाल भाई करेंगे, क्योंकि महाराज ने इस समय यही हुक्म लिखवाया है कि दारोगा, जैपाल, शिखंडी, हरनाम, बिहारी, मनोरमा और नागर वगैरह जितने जमानिया और गोपाल भाई से संबंध रखने वाले कैदी हैं सब उनके हवाले किये जाएं और वे जो कुछ मुनासिब समझें उन्हें सजा दें।
कमलिनी - चलिए यह भी अच्छा हुआ, क्योंकि मुझे इस बात का बहुत बड़ा खयाल बना हुआ था कि हमारे रहमदिल महाराज इन कैदियों के लिए कोई अच्छी सजा नहीं तजवीज कर सकेंगे, अगर वे लोग जीजाजी के सुपुर्द किये गये हैं तो उन्हें सजा भी वाजिब ही मिल जाएगी।
कुमार - (हंसकर) अच्छा तुम ही बताओ कि अगर सजा देने के लिए सब कैदी तुम्हारे सुपुर्द किए जाते तो तुम उन्हें क्या सजा देतीं?
कमलिनी - मैं (कुछ सोचकर) मैं पहले तो इन सभों के हाथ-पैर कटवा डालती, फिर इनके जख्म आराम करवाकर बड़े-बड़े लोहे के पिंजड़ों में इन्हें बंद करके और सदर चौमुहानी पर लटकाकर हुक्म देती कि जितने आदमी इस राह से जायें वे सब इनके मुंह पर थूककर तब आगे बढ़ें।
कुमार - (मुस्कराकर) सजा तो बहुत अच्छी सोची है, तो बस अपने जीजा साहब को समझा देना कि उन्हें ऐसी ही सजा दें।
कमलिनी - जरूर कहूंगी बल्कि इस बात पर जोर दूंगी। यह बताइए कि नानक के लिए क्या हुक्म हुआ है?
कुमार - केवल इतना ही कि जन्म भर के लिए कैदखाने भेज दिया जाय। बाकी के और कैदियों के लिए भी यही हुक्म हुआ!
किशोरी - भीमसेन के लिए भी यही हुक्म हुआ होगा?
कुमार - नहीं, उसके लिए दूसरा ही हुक्म हुआ।
किशोरी - वह क्या?
कुमार - वह तुम्हारा भाई है इसलिए हुक्म हुआ कि तुमसे पूछकर वह एकदम छोड़ दिया जाय, बल्कि शिवदत्तगढ़ की गद्दी पर बैठा दिया जाय।
किशोरी - जब उसे छोड़ देने ही का हुक्म हुआ तो मुझसे पूछना कैसा!
कुमार - यही कि शायद तुम उसे छोड़ना न चाहो तो कैद ही में रखा जाय।
किशोरी - भला मैं इस बात को कब पसंद करूंगी कि मेरा भाई जन्म-भर के लिए कैद रहे मगर हां इतना खयाल जरूर है कि कहीं वह छूटने के बाद पुनः आपसे दुश्मनी न करे।
कुमार - खैर अगर पुनः बदमाशी करेगा तो देखा जायगा।
कमलिनी - (मुस्कराती हुई) उसके विषय में तो चपला चाची से पूछना चाहिए, क्योंकि वह असल में उन्हीं का कैदी है। अगर सूअर के शिकार में उन्होंने उसे गिरफ्तार किया था।1 तो तरह-तरह की कसमें खिलाकर छोड़ा था कि भविष्य में पुनः दुश्मनी पर कमर न बांधेगा।
कुमार - बात तो ऐसी ही थी मगर नहीं, अब वह दुश्मनी का बर्ताव न करेगा। (किशोरी से) अगर कहो तो तुम्हारे पास उसे बुलवाऊं जो कुछ तुम्हें कहना-सुनना हो कह-सुन लो।
किशोरी - नहीं-नहीं, मैं बाज आई, मैं स्वप्न में भी उससे मिलना नहीं चाहती जो कुछ उसकी किस्मत में बदा होगा, भोगेगा।
कुमार - आखिर उसे छोड़ने के विषय में तुमसे पूछा जायगा तो क्या जवाब दोगी?
किशोरी - (कमलिनी की तरफ देखकर और मुस्कराकर) बस कह दूंगी कि मेरे बदले चपला चाची से पूछ लिया जाय क्योंकि वह उन्हीं का कैदी है।
कुमार - खैर इन बातों को जाने दो, (कमलिनी से) जमानिया तिलिस्म के अंदर मायारानी और माधवी के मरने का सबब मुझे अभी तक मालूम न हुआ। इसका पता न लगा कि वे दोनों खुद मर गईं या गोपाल भाई ने उन्हें मार डाला! और अगर भाई साहब ने ही उन्हें मार डाला तो ऐसा क्यों किया?
कमलिनी - इसका असल हाल तो मुझे भी मालूम नहीं है, मैंने दो दफे जीजाजी से इस विषय में पूछा था मगर वह बात टालकर बतोला दे गए।
कुमार - मैंने भी एक दफे उनसे पूछा था तो यह कहकर रह गये कि फिर कभी बता देंगे।
किशोरी - बहिन लक्ष्मीदेवी को इसका हाल जरूर मालूम होगा।
कमलिनी - उन्हें बेशक मालूम होगा, उन्होंने भुलावा देकर जरूर पूछ लिया होगा। इस समय तो वे अपने रंगमहल में होंगी नहीं तो मैं जरूर बुला लाती।
कुमार - नहीं, आज तो अकेली ही अपने कमरे में बैठी होंगी क्योंकि इस समय गोपाल भाई इंद्रदेव को साथ लेकर कहीं बाहर गए हैं, मुझसे कह गए हैं कि कल पहर दिन तक आवेंगे।
कमलिनी - तब तो कहिए, मैं जाकर बुला लाऊं?
कुमार - अच्छा जाओ।
कमलिनी उठकर चली गई और थोड़ी देर में लक्ष्मीदेवी को साथ लिए हुए आ पहुंची।
1. देखिए चंद्रकान्ता संतति, पहला भाग, आठवां बयान।
लक्ष्मी - (मुस्कराती हुई) कहिए क्या है जो इतनी रात गए मेरी याद हुई है?
कुमार - मैंने सोचा कि आज आप अकेली उदास बैठी होंगी अतएव मैं ही बुलाकर आपका दिल खुश करूं।
लक्ष्मी - (हंसकर) क्या बात है! बेशक आपकी मेहरबानी मुझ पर बहुत ज्यादे रहती है। (बैठकर) यह बताइये कि आप लोगों में किसी तरह की हुज्जत-तकरार तो नहीं हुई है जो मुझे फैसला करने के लिए बुलाया है।
कुमार - ईश्वर न करे ऐसा हो, हां इतना जरूर है कि माधवी और मायारानी की मौत के विषय में तरह-तरह की बातें हो रही हैं क्योंकि उन दोनों के मरने का असल हाल तो किसी को मालूम नहीं है और न भाई साहब ने पूछने पर किसी को बताया ही, इसलिए आपको तकलीफ दी है क्योंकि मुझे पूरा विवास है कि आपने किसी-न-किसी तरह यह हाल जरूर पूछ लिया होगा।
लक्ष्मी - (मुस्कराकर) बेशक बात तो ऐसी ही है, मैंने जिद करके किसी-न-किसी तरह उनसे पूछ तो लिया मगर सुनने से घृणा हो गई। इसीलिए वे भी यह हाल किसी से खुलकर नहीं कहते और समझते हैं कि जो कोई सुनेगा उसी को घृणा होगी। इसी खयाल से आपको भी उन्होंने टाल दिया होगा।
कुमार - आखिर उसमें क्या बात है कुछ भी तो बताओ।
लक्ष्मी - माधवी को तो उन्होंने नहीं मारा मगर मायारानी को जरूर मारा और इस बेइज्जती और तकलीफ से मारा कि सुनने से रोंगटे खड़े होते हैं। यद्यपि माधवी को उन्होंने कुछ भी नहीं कहा मगर मायारानी की मौत की कार्रवाई वह देख न सकी जो उसके सामने की जाती थी और उसी डर से वह बेहोश होकर मर गई। इसमें कोई ऐसी अनूठी बात नहीं है जो सुनने लायक हो। मुझे वह हाल बयान करते लज्जा और घृणा होती है अस्तु...।
कुमार - बस-बस मैं समझ गया, इससे ज्यादा सुनने की मुझे कोई जरूरत नहीं है केवल इतना ही जानना था कि उनकी मौत के विषय में कोई अनूठी बात तो नहीं हुई है।
लक्ष्मी - जी नहीं। अच्छा यह तो बताइए कि कल कैदी लोगों के विषय में क्या किया जायगा दलीपशाह का किस्सा तो समाप्त हो गया और अब कोई ऐसी बात मालूम करने लायक भी नहीं रह गई है।
कुमार - कैदियों का मामला तो कब का साफ हो गया, इस समय तो महाराज ने उनके विषय में हुक्म भी लिख दिया है जो कल या परसों के दरबार में सभों को सुना दिया जाएगा।
लक्ष्मी - किस-किस के लिए क्या हुक्म हुआ है?
इसके जवाब में कुमार ने फैसले का सब हाल बयान किया जो थोड़ी देर पहले किशोरी और कमलिनी को सुना चुके थे।
लक्ष्मी - बहुत अच्छा फैसला हुआ है।
किशोरी - (हंसकर) क्यों न कहोगी। तुम्हारे दुश्मन तुम्हारे कब्जे में दे दिए गये, अब तो दिल खोलकर बदला लोगी।
लक्ष्मी - बेशक! (कुमार से) हां, यह तो बताइए कि भूतनाथ ने अपनी जीवनी लिखकर दे दी या नहीं?
कुमार - नहीं, आज देने वाला है?
लक्ष्मी - और हम लोगों को उस तिलिस्मी मकान का तमाशा कब दिखाया जायगा जिसमें लोग हंसते-हंसते कूद पड़ते हैं।
कुमार - परसों या कल उसका भेद भी सभों पर खुल जाएगा।
लक्ष्मी - अच्छा यह तो बताइये कि आपके भाई साहब कहां गए हैं?
किशोरी - (हंसकर ताने के ढंग पर) आखिर रहा न गया! पूछे बिना जी न माना!
इतने में ही बाहर की तरफ से आवाज आई, ''इसमें भी क्या किसी का इजारा है ये अपनी चीज की खबरदारी करती है किसी दूसरे की जमा नहीं छीनती! बहुत दिनों के बाद जो खोई चीज मिलती है उसके लिए अकारण पुनः खो जाने का खटका बना ही रहता है इसलिए अगर इन्होंने पूछा तो बुरा ही क्या किया!''
इस आवाज के साथ ही कमला पर सभों की निगाह पड़ी जो मुस्कराती हुई कमरे के अंदर आ रही थी।
किशोरी - (हंसती हुई) यह आई लक्ष्मी बहिन की तरफदार बीबी नक्को। तुमको यहां किसने बुलाया था?
कमला - (मुस्कराती हुई) बुलावेगा कौन क्या मेरा रास्ता देखा हुआ नहीं है यह तो बताओ कि तुम लोग इस आधी रात के समय इतना गुल-शोर क्यों मचा रही हो?
किशोरी - (मसखरेपन के साथ हाथ जोड़कर) जी हम लोगों को इस बात की खबर न थी कि इस शोर-गुल से आपकी नींद उचट जायगी और फिर सादी चारपाई पर पड़े रहना मुश्किल होगा।
कुमार - यह क्यों नहीं कहतीं कि अकेले जी नहीं लगता, लोगों को खोजती फिरती हूं।
कमला - जी हां, आप ही को खोज रही थी।
कुमार - अच्छा तो फिर आओ बैठ जाओ और समझ लो कि मैं मिल गया।
कमला - (बैठकर किशोरी से) आज तुम्हें कोई आराम न करने देगा। (कुमार से) कहिए दलीपशाह का किस्सा तो खतम हो गया, अब कैदियों को कब सजा दी जाएगी।
कुमार - कैदियों का फैसला हो गया, उसमें किसी को ऐसी सजा नहीं दी गई जो तुम्हारे पसन्द हो।
इतना कहकर कुमार ने पुनः सब हाल बयान किया।
कमला - तो मैं बहिन लक्ष्मीदेवी के साथ जरूर जमानिया जाऊंगी और दारोगा वगैरह की दुर्दशा अपनी आंखों से देखूंगी।
थोड़ी देर तक इसी तरह की हंसी-दिल्लगी होती रही, इसके बाद लक्ष्मीदेवी और कमला अपने-अपने ठिकाने चली गईं।