लाजमी है खूबसूरती इस चाँद की
पर उसे महफ़िलों में ना बुलाया कर।
किस्से सुनाकर उसके मोहब्बत के
आशिकों के दिल ना जलाया कर ।
रोशनी काफी है मुझे चिराग की
यूँ रातों को रोशन ना किया कर ।
जख़्म सरेआम होते है उजालों में
कभी अंधेरेसे भी दोस्ती किया कर ।
उसे बादलों की आड़ में रहकर
मुस्कुराना बड़ा अच्छा लगता है ।
आवाज दे रहा है कोई हमे
ये वहेम भी कभी कभी सच्चा लगता है ।
इरादा तो था साथ तेरे ताउम्र
जिंदगी बिताने का मेरा ।
पर अक्सर तोड़ देता है ये ख्वाब
शाम को आकर सुबह लौट जाना तेरा ।
तुझसे नाराज नहीं हूँ ए चाँद
मैं ख़ुद ही खुद से खफा हूँ ।
मोहब्बत के हसीन शहर में
लूट गया कितनी दफा हूँ
हो सके तो ए चाँद
आशिको पे एक एहसान कर ।
गवाह ना बन तू किसी मोहब्बत का
बस इतना ही काम कर ।