अश्वत्थामा ने खुद को पांडवों की अभेद्य सेना से बचाने हेतु 'ब्रम्हास्त्र' का आव्हान किया था। इस ब्रम्हास्त्र को रोकने एवं निश्फल करने के लिये अर्जुन ने उसी अस्त्र को अश्वत्थामा की ओर छोडना चहा था। ब्रम्हास्त्र के प्रयोग से इस ब्रह्मांड का विनाश अटल था। उस विनाश से बचाने के लिए वेद व्यास ने दोनों अस्त्रों को रोकने का प्रयास किया|
अर्जुन अपने ब्रह्मास्त्र को वापस लेने में सक्षम था, जब कि अश्वत्थामा ऐसा नहीं कर सकता था। गुरु द्रोणाचार्य ने अपने बेटे को इसे वापस लेने का तरीका नहीं सिखाया था। इसलिये अश्वथामा की शक्ति को केवल एक ही बार ब्रम्हास्त्र का उपयोग करने के लिए सीमित कर दिया था। अश्वत्थामा को अपने ब्रम्हास्त्र को एक निर्जन स्थान की ओर मोड़ने का विकल्प दिया गया था। ईस ब्रम्हास्त्र से होनेवाली हानी कम हो सके अौर हानिविरहीत युग का निर्माण हो सके। क्रोध सदैव से मानव का शत्रु रहा है, ईसी क्रोध के आधीन हो कर अश्वत्थामा ने पांडवों के वंश को समाप्त करने का प्रयास किया था।
उसने अपना ब्रम्हास्त्र गर्भवती उत्तरा के गर्भ की ओर कर दिया था। ऐसा मानना है की, ब्रम्हास्त्र ने केवल उत्तरा के गर्भ को ही नही बल्कि आने वाली कई नस्लों को बरबाद कर दिया...! इसी कहानी के चलते आज भी 'आधा ज्ञान हानिकारक होता है।' यह वाक्य प्रचित है।