अश्वत्थामा गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे। गुरु द्रोणाचार्य अश्वत्थामा को भगवान रुद्र का ग्यारह वे अवतार समझते थे। गुरु द्रोणाचार्य अश्वत्थामा को सात चिरंजीवओं मे से एक मानते थे। भीषण कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद अश्वत्थामा कौरवों मे से एकलौता जिवित बचा था।
कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान अश्वत्थामा की भुमिका
गुरु द्रोणाचार्य के अलावा समस्त कौरव सेना भीम के पुत्र घटोत्कच से भयभीत होकर पिछे हट गयी थी, तब यह अश्वत्थामा घटोत्कच के सैन्य का संहार बनके सामने आया था। अश्वत्थामा ने राक्षसों की एक अक्षौहिणी मतलब २१,८७० रथसेना, उतनीही हाथी सेना, ६५,६१० अश्वसेना और १ लाख पैदल सेना का वध किया था।
अपने पिता की छल से आयी हुई मृत्य कोई भी पुत्र सह नही पायेगा। वह इस अनुचित मृत्यु के बाद, अश्वत्थामा ने शक्तिशाली नारायणास्त्र का आह्वान किया। यह शस्त्र जल गया और फलस्वरूप पांडवों की १ अक्षौहिणी को पलक झपकते ही खत्म कर डाला।भीम द्वारा दुर्योधन की चीत के बाद अश्वत्थामाने दुर्योधन का बदला लेने की कसम खाई। दुशासन ने उसे सेनापति नियुक्त किया था।
अश्वत्थामा इस बदले की आग मे झ़ुलस रहा था। कृपा और कृतवर्मा के साथ अश्वत्थामा ने रात में पांडवों के शामियाने पर हमला किया था। उस हमले में पांडवों के पुत्र धृष्टद्युम्न, शिखंडी और अन्य शेष योद्धाओं का वध किया था। अश्वत्थामा ने ऐसा घृणास्पद कृत्य किया था। इस स्थान पर, कहानी के कई अलग-अलग संस्करण या पैलु हैं। कुछ में, अश्वत्थामा सोते हुए उपपांडवों को पांडव समझकर उनकी हत्या कर देता है। तो कई अलग कथाओं मे यह बताया गया है की, वह जानता था वह उपपांडवों को मार रहा है। ऐसा इसलिए किया क्योंकि, वह पांडवों को नहीं ढूंढ सका था।