इस घृणास्पद कृत्य के बाद सजा के रूप में अश्वथामा को उसके माथे के मणि को समर्पित करने के लिए कहा गया था। यह कृत्य से यह प्रतित हुआ की, अश्वत्थामा ब्राम्हण धर्म के काबिल नही था। उसने युद्ध के समाप्ती के बाद छल से पांडवों पर हमला किया था। उसने ब्रम्हास्त्र विद्या के अभाव के चलते अपना ब्रम्हास्त्र उत्तरा की गर्भ को मारा था। यह कृत्य क्षमा के काबिल नही था। इसके प्रायश्चित्त हेतु कृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया था और उससे माठेप्र का मणी मांग लिया था।
“उस मणि को उसके माथे पर हटाने से जो घाव हुआ है वह कभी ठीक नहीं होगा और अश्वत्थामा कोढ़ से पीड़ित होगा| उसके माथे में घाव हमेशा खून और पस रिसता रहेग| इस प्रकार कलियुग के अंत तक वह एक दुर्गंध पैदा करता है"।
अब तक शांत लगनेवाली रात ने अचानक से भयावह अंधेरे का रुप लिया था।
कृष्ण ने कहा, "हे अश्वत्थामा, आज तुमने एक ब्राम्हण होने का धर्म त्याग दिया है। अपने इस दुष्कर्म के कारण अब तुम ब्राम्हण नही रहे अपितु एक राक्षस बन गये हो। आज तुम्हे वो दंड दिया जायेगा, जो एक राक्षस को दिया जाता है। तुम्हे अपने दुष्कर्मोंका परिणाम भोगना होगा। यह संकट जो उत्तरा के गर्भ कि ओर भेजा गया है, वह सिर्फ उसके संतान को नही अपितु सारे संसार के उत्पत्ती पर आयेगा।
अश्वत्थामा को ऐसा दंड मिलेगा की, आनेवाला संसार सदा स्मरण रखेगा। मुर्ख़ता और क्रोध मे किया गया कर्म सदा विनाशकारी होता है। तुम वीरगती पाने के योग्य नही हो। यह मणि मै तुमसे छीन रहा हुँ, तुम इसके काबिल नही हो।
मै तुम्हे श्राप देता हुँ, तुम सभी लोगों के पापों का बोझ अपने कंधों पर ढोओगे और कलियुग के अंत तक बिना किसी प्यार और करुणा के एक भूत की तरह अकेले घूमोगे| तुम्हारे पास न तो कोई आतिथ्य होगा और न ही कोई आवास| तुम मानव जाति और समाज से पूरी तरह से अलग और काटे-कटे हो जाओगे| तुम्हारा शरीर कई असाध्य रोगों से पीड़ित होगा जो घावों और अल्सर का निर्माण करते हैं| यह कभी ठीक नहीं होंगे।
तुम, गुरु द्रोणाचार्यपुत्र अश्वत्थामा, सबसे मनहूस जीवन व्यतीत करोगे, जिसे कोई भी कभी जी नही सकता है। तुम अपने जीवन में समय के अंत तक कभी भी प्यार या स्नेह प्राप्त न कर सकोगे।"
यह सुनकर अश्वत्थामा के पैरो तले की धरती हिल गयी।
उसने खुद को मारने की गुहार कृष्ण से लगायी थी। तब कृष्ण ने कहा, "नही गुरुपुत्र, अब से तुम्हारा जीवन ही तुम्हारा दंड है।"
तो इस तरह, अश्वत्थामा हर पल मौत की तलाश में रहेगा, और फिर भी वह कभी नहीं मरेगा। कलियुग के अंत में, अश्वत्थामा भगवान विष्णु के दसवें अवतार भगवान श्री कल्कि से मिलेगा।
कहते है की, अश्वथामा आज भी उसके रक्तरंजित घावों के साथ जंगलों में घूम रहा है। उसकी चोटें आज भी मौत के लिए गुहार लगाती हैं।